(8 Nov 2019 सुप्रीम कोर्ट का फैसला विवादित जमीन रामलला को)
अमित तोमर , देहरादून :
“हर साल यह अमर गाथा सुनाता हूँ।
6 दिसंबर को कोठारी बजरंगियों के चित्र सजाता हूँ।
पटाखे फोड़ हिन्दू शौर्य दिखाता हूँ
पर हर सांस घुट-घुट मरता जाता हूँ।
ना राम ना कृष्ण की याद रही
सत्ता के गलियारों में कोई हिन्दू फ़रियाद ना रही
जूझ रहा हूँ खुद को इस भ्रम से बचा निकलूँ
वर्ना लाशों की इस मंडी में मेरी भी औकात नही होगी”
नहीं ज्ञात आप में से कितनो ने कलकत्ता बजरंग दल के कोठारी बन्धुओ के बलिदान की अमर गाथा सुनी होगी। 23 वर्ष का राम कोठारी और 21 वर्ष का शरद कोठारी 22 अक्टूबर 1990 को श्री राम जन्मभूमि कारसेवा हेतु कलकत्ता से अयोध्या के लिए चले। बहन पूर्णिमा, जिसका विवाह 8 दिसम्बर को होना था, माता सुमित्रा और पिता हीरा लाल को यह कह दोनों बजरंगी घर से निकले के 2 नवम्बर को कार सेवा समाप्त कर घर लौट आएंगे। परिवार ने दोनों को विजय तिलक लगा धर्म मार्ग पर भेज दिया।
27 अक्टूबर को राम कोठारी द्वारा लिखित पत्र परिवार को मिला जिसमे लिखा था के अधिकाँश कारसेवको को मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन पर ही मुलायम सिंह की समाजवादी सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया परन्तु भाग्यवश दोनों कोठारी भाई पुलिस को चकमा दे पैदल ही अयोध्या की ओर बढ़ चले है। कोठारी बंधू ही पहले थे जिन्होंने पहली बार बाबरी मस्जिद पर भगवा लहराया था।
6 दिन बाद,2 नवम्बर, को कोठारी परिवार को उत्तर प्रदेश पुलिस ने सूचना दी कि दोनों कोठारी बन्धुओ- राम और शरद को उन्होंने गोलियों से छलनी कर मार डाला है और दोनों का दाह संस्कार अयोध्या के सरयू तट पर किया जा रहा है। जब कोठारी बन्धुओ के बलिदान की सूचना कोलकत्ता पहुंची तो पूरा बंगाल उमड़ पड़ा और दोनों बलिदानी भाइयो को छलकते नैनो से विदा किया।
क्या आप विश्वास करेंगे !!! 6 दिसम्बर 1992 को जब पवित्र श्री राम जन्म भूमि स्थित बाबरी मस्जिद को मिटटी में मिलाया गया तो कोठारी बन्धुओ की माता सुमित्रा देवी और पिता हीरा लाल अयोध्या में कारसेवा कर रहे थे। शत – शत प्रणाम कोठारी परिवार के श्री चरणों में।
2 नवम्बर को इसी कारण बजरंग दल – बलिदान दिवस मनाता है जिसमे असंख्य हिन्दू बलिदानी कारसेवको के बलिदान की स्मृति में रक्त दान करते है। विश्वास है कि इस वर्ष आप भी रक्त दान करेंगे। 2 नवंबर को 26 वां हुतात्मा दिवस है।