धरती गोल है और इतिहास दोहराया जा रहा है
के के शर्मा : भौगोलिक दृष्टिकोण से पृथ्वी गोल है | पृथ्वी एक जगह से घूमती हुई वापस अपने स्थान पर आ ही जाती है | वही हमारी दशा है | पहले लोग (स्त्री/पुरुष) नंगे घुमते थे | उसके बाद वे शरीर को ढंकने के लिए पेड़ों के छाल और पत्तों का प्रयोग करने लगे | फिर कपड़ों का निर्माण शुरू हुआ और स्त्री/पुरुष पूरे शरीर ढक कर रहने लगे | फैशन का प्रचलन चला, खुद को खूबसूरत दिखाने के लिए नए-नए परिधानों का इस्तेमाल होने लगा | और आज का फैशन उस मुकाम पर है कि फैशन अब अंग प्रदर्शन बन चूका है | स्त्रियाँ फिर से उसी दौर में जा रही हैं | कपड़ो का साइज़ छोटा हो रहा है और महीन वस्त्रों का इस्तेमाल होने लगा है, जिससे की उनके अंग दिखते रहते हैं | अब उनको अर्धनग्न घूमना ही बहुत पसंद आ रहा है | और कहती हैं सोच बदलो देश बदलेगा…
लड़कियों के अर्धनग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रीयां ये कहती हैं कि कपडे नहीं सोच बदलो….
उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है ?
हम सोच क्यों बदले ? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है ? आपने लोगो की सोच का ठेका लिया है क्या ?
आप उन लड़कियों की सोच का आकलन क्यों नहीं करते ? उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने, जिसमे स्तन, पीठ, जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है… इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी ? एक निर्लज्ज लड़की चाहती है कि पूरा पुरुष समाज उसे देखे, वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी कि कोई उसे देखे |
अगर सोच बदलनी ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए ? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए… सोच बदलिये… वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती… आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए… उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये…
कोई लड़का रास्ता चलते किसी लड़की से हल्का सा भी टकरा जाये तो बहुत बड़ा बखेड़ा शुरू कर देती हैं और कुछ सभ्य लोग बिना कुछ समझे, बिना कुछ जाने उसको उसकी ही गलती मानकर पीटने लगते हैं जैसे उस व्यक्ति ने कोई जघन्य अपराध कर दिया हो | और वही लड़की अपने बॉयफ्रेंड के बाँहों में बाहें डाले, अधनंगे कपड़ों में सरेआम सड़कों पर, ट्रेनों में kiss करती हुई चलती हैं | क्या यही है हमारी सोच ? बेवजह लड़के ही दोषी क्यूँ होते हैं ?
आये दिन रेप के न्यूज़ आते रहते हैं | इसके पीछे का कारण क्या है ? क्या कभी, आप लोगों ने सोचने की कोशिश की है… लड़कों की गन्दी सोच या लड़कियों का नंगापन…. जरुर सोचियेगा…… जो माँ-बाप अपनी बेटी/बहू को ऐसे ही अधनंगे कपड़ो में देखना पसंद करते हैं वह अपनी बेटी/बहू के सुरक्षा की उम्मीद भारत सरकार से क्यूँ करते हैं ?
कुछ लड़कियां कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे… पुरुष नहीं… जी बहुत अच्छी बात है… आप ही तय करे… लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रियाँ नहीं… और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे |
फिर कुछ विवेकहीन लड़कियां कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की… जी बिल्कुल आज़ादी है, ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस, गंजा, ड्रग्स, ब्राउन, शुगर लेने की आज़ादी हो, गाय-भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो, वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो, पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो… हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।
लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाली कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा कि क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है कि एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने नीजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे ? क्या ये लड़कियां पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ? जब ये खुद पुरुषों को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है कि “हमें माँ/बहन की नज़र से देखो”
कौन सी माँ या बहन अपने भाई/बेटे के आगे नंगी होती है? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था… सत्य ये है कि अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है । और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह समय दूर नहीं जब सड़कों पर लड़कियां कपड़ों के नाम पर केवल बिकनी में नज़र आएँगी |
मस्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता (सेक्स) भी है। चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है। अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रियाँ अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती ? गली-गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है । और ये अपराध तब तक नहीं ख़त्म होंगी जब तक फैशन का भूत सर से उतर नहीं जाता, नहीं तो कोई चाहे लाख कोशिश कर ले, ये अपराध कभी ख़त्म नहीं होंगे…