चण्डीगढ़। 25 May ज्यों-ज्यों भारतीय उपमहाद्वीप में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है, त्यों-त्यों डिजेनरेटिव न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामलों में भी वृद्धि हो रही है। अनुमान हैं कि पूरे विश्व में 6.3 मिलियन लोग पार्किसंस डीसीस ( पीडी ) से प्रभावित हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) के मुताबिक प्रति एक लाख लोगों में से 160 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं जबकि हर वर्ष प्रति एक लाख लोगों में से 16 नए पीड़ित इसमें जुड़ रहे हैं। इससे स्थिति की गंभीरता का पता चलता है।
पार्किंसन क्या है व किसे होती है ?
इस बीमारी में बुजुर्गों के हाथ-पाँव या पूरा शरीर असामान्य ढंग से कांपता रहता है। पुरुषों से ज्यादा महिलायें पीडी से पीड़ित होतीं हैं। 60 वर्ष से ज्यादा की आयु के लोगों में इस बीमारी का प्रसार ज्यादा होता है परन्तु कई बार 50 वर्ष के आयु वर्ग वालों को भी इससे प्रभावित पाया गया है। जुवेनाइल पीडी तो 20 से 25 वर्ष की आयु वालों को भी चपेट में ले लेता है। एक अनुमान के मुताबिक़ 60 वर्ष व 80 वर्ष से ऊपर की क्रमश: 1% व 4% आबादी पीडी पीड़ित है।
पार्किंसन का नया इलाज : डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन यानी डीबीएस
अभी तक ये बीमारी लाइलाज थी व केवल दवाइयों के सहारे ही मरीज का इलाज किया जाता था जोकि अधिक असरकारी नहीं था। मायो हेल्थकेयर के न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉ. दीपक त्यागी ने डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन यानी डीबीएस नामक एक डिवाइस के जरिये यहां मरीजों का इलाज शुरू किया जोकि पीडी के मरीजों के लिए एक वरदान की भांति है।
आज यहां चण्डीगढ़ प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता में पत्रकारों को इस उपलब्धि की जानकारी देते हुए डॉ. त्यागी ने बताया कि डीबीएस एक रियल टाइम इमेज गाइडेड प्रक्रिया है जिसके तहत पीडी से प्रभावित रोगी के दिमाग में इलेक्ट्रोड्स इम्प्लांट कर दिए जातें हैं जो इलेक्ट्रिकल तरंगें स्पंदित करते हैं जिससे शरीर की असामान्य हलचल नियंत्रित करने में मदद मिलती है। उन्होंने जानकारी दी कि अति विकसित देश अमेरिका में लम्बे अर्से से डीबीएस एफडीए से मंजूरशुदा थेरेपी है व वहां इसके जरिये इलाज उपलब्ध था, परन्तु अब पहली बार देश के इस हिस्से में इस कल्याणकारी डिवाइस के जरिये इलाज सुलभ हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि आम भाषा में कहा जाए तो डीबीएस ब्रेन के लिए एक पेसमेकर की तरह है जो शरीर के असामान्य हलचल को नियंत्रित करने में मददगार साबित होता है। ये डिवाइस रिमोट कंट्रोल से संचालित होती है व इसे मरीज की जरूरत के हिसाब से विभिन्न स्टिम्युलेट मोड्स में इस्तेमाल किया जा सकता है।
डॉ. त्यागी ने बताया कि वह स्वयं एवं उनके साथी डॉ. अनुपम जिंदल अब तक पीडी पीड़ित पांच मरीजों का उपचार डीबीएस के जरिये कर चुकें हैं व इसके नतीजे शानदार रहे, वह भी बिना किसी अड़चन या साइड इफेक्ट के। उन्होंने इसे बेहद उपयोगी थेरेपी करार देते हुए कहा कि जहां दवाइयां काम नहीं करतीं वहां ये डिवाइस अवश्य काम करती है।
मायो की न्यूरोसर्जरी टीम ने जरूरतमंदों को यह सुविधा मुफ्त प्रदान करने का निर्णय लिया है