लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उर्दू साहित्य में दिलचस्पी बढ़ी। यूँ तो मैं बेमन से वाणिज्य पढ़ रहा था पर मन Literature, Poetry, Theology में रमा था। इस दौरान सादत हसन मंटो से मुख़ातिफ हुआ, वो तो 1955 में ही कब्र में सो गए थे पर उनका साहित्य जीवित है। लगभग उनकी सभी छोटी- बड़ी रचनाएं पढ़ी, अधिकांश कहानियां वैश्याओं के जीवन से जुड़ी थी। वो समाज को वैसे ही देखते थे जैसे समाज किसी वैश्या को देखता था- बिकाऊ। कहीं ना कहीं आज भी अपने नज़रिये में मंटो के शब्दों की छाप को महसूस करता हूँ। शायद कुछ वैसे ही मैं भी इस समाज को देखता हूँ। घिनोने को घिनोना कहता हूं और दलाल को दलाल। अकसर लोग मेरी शब्दों से आहात होते रहते है पर “नीम के पत्ते कड़वे तो होते है पर खून भी साफ करते है”।
कुछ समय पूर्व मंटो नामक फ़िल्म आयी थी जो बिना चले ही सिनेमा घरों से लौट गई। आज थोड़ा समय चुराया और कांवली रोड की एक दुकान पर पहुंचा जिसका मालिक डाउनलोड फिल्में 10 रुपये में दे देता है। कानूनी रूप से मेरा यह कृत्य गलत था पर मन मे इच्छा थी तो पहुंच गया। बस साथ मे pendrive ले जाओ। मेरी pendrive में अभी फ़िल्म कॉपी ही हो रही थी कि लगभग 8-9 साल की बच्ची हाथ मे एक पर्ची लिए पहुंची। शायद किसी बिहारी मज़दूर की बेटी होगी। मुझे लगा उस पर्ची में कोई नम्बर होगा जिसे रिचार्ज कराने के लिए वो आयी होगी। साथ मे कोई चीन मेड सस्ता मोबाइल था। दुकानदार ने पर्ची खोली तो उसमें लिखा था “20 रु भेज रहे है, 2 नंगी फ़िल्म डाल दो”। दुकानदार मुझसे भली भाँती परिचित था और उसे आभास हो गया कि मैंने पर्ची पढ़ ली है। उसने बात पलटते हुए कहा कि “बेटा आज कोई नया भोजपुरी गाना नही आया है, पापा को कहना आधे घण्टे बाद आ जाये”। मेरी आँखें दुकानदार को घूर रही थी और वो खामोश हो गया। इतने में ही वो मासूम बच्ची बोल उठी, “अरे भैया पापा ने भोजपुरी गाने नही मंगवाए, फ़िल्म मंगवाई है जो रोज़ आप देते हो।”
लगभग हर दिन उत्तराखंड में एक मासूम बच्ची से बलात्कार हो रहा है और ऐसे में हर मोबाइल में porn। क्या यह बच्ची सुरक्षित है?? क्या इसका पिता अपनी हवस मिटाने के लिए इसका इस्तेमाल नही कर सकता?? देश मे आटा 25 रु किलो और फ्री पोर्न 10 रु में।
पता नही क्या करूँ। सोचा लिख कर भड़ास निकाल लूँ।
(अमित तोमर, प्रदेश अध्यक्ष उत्तराखंड, राष्ट्रीय बजरंग दल)