नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार व जन आंदोलनकारी स्व0 शमशेर सिंह बिष्ट को 28 सितम्बर की सायं प्रैस क्लब में आयोजित शोकसभा मे पत्रकारों, साहित्यकारो, लेखको, विभिन्न पार्टियों से जुड़े राजनितिज्ञयो, उघमियो व सामाजिक सस्थाओं से जुड़े प्रबुद्ध जनो ने उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर भावभीनि श्रद्धाजंलि दी।
वक्ताओं मे अवतार नेगी, श्याम सिंह रावत, महेश चंद्र, चन्दन डांगी, पुरुषोत्तम शर्मा, गिरिजा पाठक, सी एम पपनै, उमाकांत लखेड़ा, एस के शर्मा, सुनील नेगी, देव सिंह रावत, चारु तिवारी, प्रो0 प्रकाश उपाध्याय, हवीब, प्रताप शाही, धीरेंद्र प्रताप व राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा मुख्य थे।
अन्य उपस्थित पत्रकारों मे मंगलेश् डबराल, के सी धुलिया, हरीश लखेड़ा, विनोद ढोंडियाल इत्यादि मुख्य थे।
वक्ताओं ने अपने संबोधन मे डॉ शमशेर सिंह बिष्ट के जीवन पर्यन्त समाज के कमजोर व वंचित वर्ग के साथ-साथ राज्य व देश के उत्थान के लिए निहिस्वार्थ भाव से उनके द्वारा किए जन आंदोलनों पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्हे सामाजिक सरोकारों से छात्र जीवन से जुड़ा जनआंदोलनकारी व संकल्पकारी बताया। रोजगार, बन अधिनियम, पृथक राज्य, कुमाऊँ विश्वविघालय, स्टार पेपर मिल की खिलाफत, चिपको, नशा नही रोजगार दो, खनन माफियाओं व शराब माफियों की खिलाफत, बड़े बाधो की खिलाफत, हिमालयन कार रैली, ब्रॉन्ज फैक्ट्री, रेल रोको व टोगी जैसे आंदोलनों मे उनके यादगार नेतृत्व को याद किया व उनकी कथनी व करनी मे समानता की बात कही।
कहा वे नए भारत के लिए नया उत्तराखंड चाहते थे। इसीलिए उन्होंने उत्तराखंड जन संघर्ष वाहिनी बनाई जिसके वे पहले अध्यक्ष बने व जंगलो की पड़ताल व चेतना जगाने के लिए अल्मोड़ा से साप्ताहिक अखबार प्रकाशित किया ‘जंगल के दावेदार’। राष्ट्रीय हिंदी अखबार ‘जनसत्ता’ से जुड़ कर राज्य व राष्ट्र की पीड़ाओं को प्रमुखता से पाठको तक वेदना स्वरूप पहुचाया।
राजनैतिक विकल्प की तलाश मे उनके द्वारा आईपीएफ़ के गठन हेतु उनकी जूझारू भूमिका को याद किया गया व देश की व्यवस्था की लड़ाई लड़ने के लिए उन्हे सदैव प्रतिबद्ध बताया गया। वक्ताओं ने कहा वे मानते थे लोगो को एक जुट करके ही लड़ाई राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर जीती जा सकती है। उन्होंने अपने जीवन मे कभी मूल्यो से समझौता नही किया। स्व0 शमशेर को उन्होंने सत्ता से दूर रहने व चट्टान की तरह खड़े रहने वाला आंदोलनकारी बताया।
अपने दुःख भूल उत्तराखंड के गावो मे छात्रों व युवाओं के द्वारा चेतना जगाने हेतु अस्कोट से अराकोट की 800 किमी की पैदल यात्रा के उनके नेतृत्व व जज्बे को उदाहरण के रूप मे स्रोताओं को बताया गया। देश के अन्य जन आंदोलनकारियों के साथ उनकी भूमिका को सत्यनिष्ठा से अग्रणी रूप से उनकी चेतना को विकल्प व बदलाव की राजनीति की तलाश के रूप में देखा गया। उनके द्वारा राज्य व देश के उत्थान हेतु युवा चेतना को आगे बढाने के कार्यो पर भी वक्ताओं ने अपने विचार रखे। कहा शमशेर जैसा व्यक्तित्व मिलना मुश्किल होता है जिसने मानव के लिए अपनी दृष्टि से लड़ाई लड़ी। वंचितों को आवाज दी। जिसकी बातों में स्पष्टता थी। जिसकी बाते सुन जीवन की दिशा ही बदल जाती थी।
वक्ताओं ने बताया कि देश के बड़े आंदोलनकारियों से शमशेर जी का नाता रहा। जिस कारण उन्हे उग्र वामपंथी या नक्सलाइट कहा गया। फिर भी वे बिना डिगे सामान्य रूप से संघर्षरत रहे लोगो को उनकी पीड़ा से निजात दिलाने के लिए। वक्ताओं ने कहा कि गैरसैड़ राजधानी न बन पाने का शमशेर जी को अंतिम स्वाश तक दुःख रहा।
यह भी व्यक्त किया गया कि कोइ भी राजनेता उनके बराबर नाम नही कमा पाया जितना शमशेर ने कमाया।
कहा गया कि स्व0 शमशेर सिंह बिष्ट को व्यक्ति नही संस्था का दर्जा देना ज्यादा उचित होगा, क्योकि उनके विचारों से संघर्ष की सीख मिलती है जिससे समाज, राज्य व देश का उत्थान होता है। उनके किए कार्यो पर चर्चा करना सूर्य को दिया दिखाने वाली बात होगी।
वक्ताओं ने कहा कि जन नायक स्व0 शमशेर सिंह बिष्ट को सच्ची श्रधांजलि यही होगी की हम सब उनकी सोच व सिद्धांतो के डगर पर चले व आगामी पंचेश्वर से उत्तरकाशी यात्रा स्व0 शमशेर जी को समर्पित करे। प्रतिवर्ष उनकी याद मे एक कार्यक्रम आयोजित करे, जिससे उनके अधूरे कार्यो को पूरा किया जा सके व उनके बताए मार्ग का अनुसरण किया जा सके।
शोकसभा का संचालन व सयोजन अवतार सिंह नेगी ने खुशाल जीना, अनिल पंत, महेंद्र रावत व एम एम सी शर्मा के सानिध्य मे सम्पन्न किया।