गौरव चौहान रे मूरख हिन्दू जाग ज़रा,
पहचान सत्य खो जायेगी,
ये धरा इन्ही षणयंत्रों से,
हिन्दू विहीन हो जायेगी,
बेवजह नही मैं कहता हूँ,
तस्वीर सरासर सम्मुख है,
खंडित भारत का स्वप्न लिए,
पापी हमलावर सम्मुख है,
भगवान् ! वाह री दलित सोच!
अंग्रेज विजय पर ताम झाम?
पेशवा,महारों ने मारे?
है जश्न इसी का?
राम राम!
ये नीच सियासत है जिसका
जिग्नेश मोहरा बन बैठा,
मौका पाकर वो जेहादी खालिद भी
हम पर तन बैठा,
वामन,राजपूत,बनीटों के मटके फोड़े,
क्या मतलब है?
दलितों का मंच बना उसमे,मुस्लिम जोड़े
क्या मतलब है?
खालिद का ख्वाब नही भूलो,
इस्लाम समूचा करना है,
जिग्नेश कहे मोदी घटिया,
राहुल को ऊंचा करना है,
दुर्भाग्य देश का देखो तो,
अभिव्यक्ति बनी आज़ादी है,
अब दलित-मुस्लिमो के मुंह पर बस
भारत की बर्बादी है,
अब तुर्क और मंगोलों से,
केवट ने यारी कर डाली,
शबरी ने खाकर राजभोग,
भगवान राम को दी गाली,
यह तेवर दलित समूहों के,
गहरी साजिश के हिस्से हैं,
नफरत की खुली किताबों में,
अलगाववाद के किस्से हैं,
हम आज़ादी के साथ चले,
हाथों में लेकर हाथ चले,
बाबा का संविधान माना,
लेकर उनके जज़्बात चले,
हमने ही छोड़ ज़मीदारी,
भू हीनों को भू दान दिए,
ज्योतिबा फुले को पूजा है,
जगजीवन को सम्मान दिए,
हमने कुरीतियों के पन्ने
अपने हाथों से फाड़े हैं,
पुरखों के पाप धुलाये हैं,
समता के झंडे गाढ़े है,
दलितों की उन्नति बनी रहे,
वंचित पिछड़ों को मान दिया,
आरक्षण नीति असमता की,
रख मौन,सदा सम्मान दिया,
आरक्षण को स्वीकार किया,
भाईचारे का भाव रखा,
हड़ताल,रैलियां,आगजनी,
ऐसा कोई ना चाव रखा,
हम झुके तभी तुम उठ पाये,
ये समरसता की धारा है,
मीरा कुमार,कोविंद राम,
जय मायावती,पुकारा है,
कुछ एक बुराई के बदले,
गौरव गाथा को मत कोसो,
मोदी से नफरत खूब करो,
भारत माता को मत कोसो,
कब माँ अपने ही बेटो में
अंतर का भाव सजाती हैं,
अपनी छाती से दुग्धपान
सबको इक साथ कराती है,
मैं कोई नेता,पक्ष नही,
भारत का आम निवासी हूँ,
मैं कवि गौरव चौहान यहाँ
हर बेटे का अभिलाषी हूँ,
हम जैसे कितने लाख युवा,
समरसता के परिचायक हैं,
इक थाली में खाने वाले,
इक सुर में गाते गायक हैं,
ना ऊंच नीच की सोच रखें,
पढ़ते लिखते हैं साथ यहाँ,
होटल,दफ्तर,मंदिर,राहों में
सब दिखते हैं साथ यहाँ,
दो चार घटी घटनाओं को,
यूं अत्याचार नही बोलो,
बहुवर्ग तुम्हारे साथ खड़ा,
तुम तिल का ताड़ नही बोलो,
तुम कुछ लोगों की बातों में
संस्कृति सम्मान भुला बैठे,
कुछ पंडों की मक्कारी में,
अपने भगवान भुला बैठे,
हम दलित नही कहते तुमको,
ये शब्द सियासत वाले हैं,
हम तुमको हिन्दू कहते हैं,
हम सारे भारत वाले हैं,
गर हमने खींची तलवारें,
तो ख्वाब सफल हो जाएंगे,
कासिम गजनी गौरी बाबर
तब घर घर में घुस आएंगे,
जो खालिद तुम्हे सगे लगते,
वो इक दिन रूप दिखाएंगे,
जेहादी कभी नही सुधरे,
तुम पर भी छुरी चलाएंगे,
जिग्नेश भीम के बेटे ने,
खालिद की भुजा संभाली है,
ये कीचड भीम नाम पर है,
भगवान् बुद्ध को गाली है,
आओ मिलकर संकल्प करें,
अस्तित्व न खोने देना है,
षणयंत्र आधुनिक मुगलों के
अब पूर्ण न होने देना है,
हम एक रहें,हम नेक रहे,
हर मन गूंजे फरियादों से,
श्री राम-बुध्द न हारेंगे
इन बाबर की औलादों से,
——————————–कवि गौरव चौहान, इटावा उ प्र
गौरव चौहान रे मूरख हिन्दू जाग ज़रा,
पहचान सत्य खो जायेगी,
ये धरा इन्ही षणयंत्रों से,
हिन्दू विहीन हो जायेगी,
बेवजह नही मैं कहता हूँ,
तस्वीर सरासर सम्मुख है,
खंडित भारत का स्वप्न लिए,
पापी हमलावर सम्मुख है,
भगवान् ! वाह री दलित सोच!
अंग्रेज विजय पर ताम झाम?
पेशवा,महारों ने मारे?
है जश्न इसी का?
राम राम!
ये नीच सियासत है जिसका
जिग्नेश मोहरा बन बैठा,
मौका पाकर वो जेहादी खालिद भी
हम पर तन बैठा,
वामन,राजपूत,बनीटों के मटके फोड़े,
क्या मतलब है?
दलितों का मंच बना उसमे,मुस्लिम जोड़े
क्या मतलब है?
खालिद का ख्वाब नही भूलो,
इस्लाम समूचा करना है,
जिग्नेश कहे मोदी घटिया,
राहुल को ऊंचा करना है,
दुर्भाग्य देश का देखो तो,
अभिव्यक्ति बनी आज़ादी है,
अब दलित-मुस्लिमो के मुंह पर बस
भारत की बर्बादी है,
अब तुर्क और मंगोलों से,
केवट ने यारी कर डाली,
शबरी ने खाकर राजभोग,
भगवान राम को दी गाली,
यह तेवर दलित समूहों के,
गहरी साजिश के हिस्से हैं,
नफरत की खुली किताबों में,
अलगाववाद के किस्से हैं,
हम आज़ादी के साथ चले,
हाथों में लेकर हाथ चले,
बाबा का संविधान माना,
लेकर उनके जज़्बात चले,
हमने ही छोड़ ज़मीदारी,
भू हीनों को भू दान दिए,
ज्योतिबा फुले को पूजा है,
जगजीवन को सम्मान दिए,
हमने कुरीतियों के पन्ने
अपने हाथों से फाड़े हैं,
पुरखों के पाप धुलाये हैं,
समता के झंडे गाढ़े है,
दलितों की उन्नति बनी रहे,
वंचित पिछड़ों को मान दिया,
आरक्षण नीति असमता की,
रख मौन,सदा सम्मान दिया,
आरक्षण को स्वीकार किया,
भाईचारे का भाव रखा,
हड़ताल,रैलियां,आगजनी,
ऐसा कोई ना चाव रखा,
हम झुके तभी तुम उठ पाये,
ये समरसता की धारा है,
मीरा कुमार,कोविंद राम,
जय मायावती,पुकारा है,
कुछ एक बुराई के बदले,
गौरव गाथा को मत कोसो,
मोदी से नफरत खूब करो,
भारत माता को मत कोसो,
कब माँ अपने ही बेटो में
अंतर का भाव सजाती हैं,
अपनी छाती से दुग्धपान
सबको इक साथ कराती है,
मैं कोई नेता,पक्ष नही,
भारत का आम निवासी हूँ,
मैं कवि गौरव चौहान यहाँ
हर बेटे का अभिलाषी हूँ,
हम जैसे कितने लाख युवा,
समरसता के परिचायक हैं,
इक थाली में खाने वाले,
इक सुर में गाते गायक हैं,
ना ऊंच नीच की सोच रखें,
पढ़ते लिखते हैं साथ यहाँ,
होटल,दफ्तर,मंदिर,राहों में
सब दिखते हैं साथ यहाँ,
दो चार घटी घटनाओं को,
यूं अत्याचार नही बोलो,
बहुवर्ग तुम्हारे साथ खड़ा,
तुम तिल का ताड़ नही बोलो,
तुम कुछ लोगों की बातों में
संस्कृति सम्मान भुला बैठे,
कुछ पंडों की मक्कारी में,
अपने भगवान भुला बैठे,
हम दलित नही कहते तुमको,
ये शब्द सियासत वाले हैं,
हम तुमको हिन्दू कहते हैं,
हम सारे भारत वाले हैं,
गर हमने खींची तलवारें,
तो ख्वाब सफल हो जाएंगे,
कासिम गजनी गौरी बाबर
तब घर घर में घुस आएंगे,
जो खालिद तुम्हे सगे लगते,
वो इक दिन रूप दिखाएंगे,
जेहादी कभी नही सुधरे,
तुम पर भी छुरी चलाएंगे,
जिग्नेश भीम के बेटे ने,
खालिद की भुजा संभाली है,
ये कीचड भीम नाम पर है,
भगवान् बुद्ध को गाली है,
आओ मिलकर संकल्प करें,
अस्तित्व न खोने देना है,
षणयंत्र आधुनिक मुगलों के
अब पूर्ण न होने देना है,
हम एक रहें,हम नेक रहे,
हर मन गूंजे फरियादों से,
श्री राम-बुध्द न हारेंगे
इन बाबर की औलादों से,
——————————–कवि गौरव चौहान, इटावा उ प्र