पंडित नीरज मिश्र:
मै ‘बाबरी मस्जिद’ हूँ…..
मुझे नफरत ने बनाया,
नफरत ने तोडा,
इस ज़माने ने मुझे विवाद से जोड़ा,
अगर मुझे कोई ना बनाता,
बना दिया तो ना गिराता,
कोई मोहब्बत से मुझमे चार ईंट लगाता,
अजाने होतीं, नमाज़ होता,
काश मै सियासत से आज़ाद होता…….
मै बाबरी मस्ज़िद हूँ……
मंदिर बनाओ या मस्ज़िद बनाओ,
मोहब्बत से बनाओ, मोहब्बत से सजाओ,
यहाँ ना बना सको तो कही और बना दो,
फिर से अमन चैन का एक दौर बना दो,
आज मोहब्बत और सुकून बर्बाद है,
और मुझपर सियासतदारों की सियासत आबाद है,
मुझे इतिहास के पन्नो में मुकम्मत जगह मिल गया होता….
काश मै खुद ही गिर गया होता….
मै बाबरी मस्जिद हूँ…..
-पंडित नीरज मिश्र