कहानी- ‘धर्म और जाति : पंडित नीरज मिश्र
अब्दुल्ला अपनी झोपडी में बैठा सुर्ती रगड़ रहा था कि तभी हारून आया और अब्दुला के बगल रखी खाट को बिछा के बैठ गया। ‘चचा सुबेरे क बरसात ठंढी बढ़ाई देहेस….’
हारून ने मानो दुखती राग पे हाथ रख दिया हो। अब्दुल्ला बोला – ठंढी त ठंढी, ससुर इ बरसात त अउर परेसान कइ दिहेस, जहां देख, उंही चुवत बा। अबे त माना चलि जाए, बरसात में कइसे होए। अब्दुल्ला की आँखे कही शून्य में ताक रहीं थी, मानो मन ही मन वो ऊपरवाले से कह रहा हो….
रहम कर….
रहम कर….
हारून बोला- चचा मौलवी साहब आइ रहेन, कहत रहेन कि तोहका लोगन के जौन कमी होइ हमसे बताव, हम पूरा कराउब। ई सब धर्म परिवर्तन क का चक्कर बा। चचा मौलवी साहेब इहो कहत रहेन कि इस्लाम दुसरे धर्म में जाइ क इजाजत नाहीं देत। और बोलेन्ह कि अगर फिर भी गय त समझे रह्या, लोग बहुत नाराज़ हयेन। कुछ भी कइ सकत हएन, कुछ भी। मौलवी साहेब का दै देहेन आज तक? अब्दुल्ला का बदन क्रोध से काँप उठा। जीवन भर जोलहा जोलहा कहेन। हाँ जोलहा हइ। गरीब हइ, त आज तक एक रुपिया क केउ मदत केहे स का? तोर चाची मरि गइ। एनही मौलवी साहेब से उधार मागइ ग रहे, देहे होतेन त का इलाज न कराई लेहे होइत। का वापस न करे होइत? केउ कबहु मदत नाही करत। कबहु नाइ।
तभी हारून अब्दुल्ला के कानो के पास आया और बोला – चचा राधेश्याम भैया आवत हएन।
राधेश्याम उपाध्याय एक पार्टी के नेता थे और अब्दुल्ला के गाँव के ही थे। राधेश्याम जी ने अपने साथ के लोगों को बाहर रोकते हुए, खुद अन्दर आये। पास बिछी खटिया पर जैसे ही बैठे, हारून उठ खड़ा हुआ। हारून का हाथ खीच कर अपने पास बिठाते हुए राधेश्याम जी बोले- क्या भाइ अब्दुल्ला, तो क्या सोचा तुमने? देखो दुनिया हो सकता है तुम्हे तमाम सपने दिखाए, हो सकता है तुम्हे तुम्हारे लोग धमकाए भी, पर मै ना तुम्हे सपने दिखाऊंगा और ना ही धमकाऊंगा। कुछ हो न हो पर बच्चो को अच्छे संस्कार मिलेंगे, अच्छा माहौल मिलेगा। और यार हिन्दू धर्म तुम्हारे लिए नया नहीं है, तुम्हारे पूर्वज हिन्दू ही थे, तुम लोग, तुम्हारे बच्चे गाँव की रामलीला करते आये हो, चन्दा देते आये हो। तुम तो लगभग हिन्दू ही हो, अब पूरे हो जाओ हाहाहा…..
साहेब आप सही कह रहे है, हम तौ हिन्दुओ हइ, मुसलमान भी। लेकिन न हिन्दू हमार रहेन न मुसलमान….
अब्दुल्ला की बात सुन राधेश्याम जी बोले- अरे भई अब तो हिन्दू तुम्हारा जी जान से साथ देंगे। तुम्हारे लड़के पढेंगे, शांति से रहेंगे, श्रीराम के आदर्शों पर चलेंगे, एक अच्छा जीवन गुजारेंगे, हम साथ देंगे तुम्हारा, मै साथ दूंगा तुम्हारा।
अब्दुल्ला ने बात को बीच में ही काटते हुए बोला- साहेब ऊ तो हमको पता है कि कउन साथ देइ, एक बात पूछे के रहा साहेब के हमन लोगन के ‘जात’ कवन देवउब। देखा हम लोग गरीब हईं, गरीब क जियब बहुत मुस्किल बा। बाभन ठाकुर बनि जाबइ त मरि जाब। अपने गाँव में रहेन न दया पाणे, बेचारे केतना बढ़िया आदमी रहेन, केतना पढ़ा लिखा रहेन । सब लड़िकन के फिरी में पढ़ावत रहेन, हमारौ लौंडवा पढ़े रहा। ओनकर लडिका रहेन परकास, कच्छा दस में टाप करे रहेन, पता बा साहेब, आज कल ओ लेबरइ करत हएन। का करइ , पैसा नाहीं रहा कि आगे पढ़ावइ। उन्ही जगहां बुधइ हरिजन क लड़कवा के कुछु नाइ आवत रहा, सूना ह ऊ अधिकारी बनि ग। हे साहेब हम हिन्दू बनत हई, हम चाही थ कि हमार लड़िकन आगे बढ़े। गरीब हइ, नाहीं चाहित कि लड़िकन घर घर भीख मांगइ और भटकइ। साहेब हमे ‘मुसहर’ बना द, एस टी बना द, ताकी लड़िकन नौकरी पा जाई।
राधेश्याम जी ने कहा देखो मै बिलकुल प्रयास करूँगा। अच्छा मै चलता हूँ। राम राम कह के बड़ी जोर से ठहाका मार के हँसे। राधेश्याम जी बाहर जाते हुए सोच रहे थे कि शायद इस बार ‘बिधायकी’ का टिकेट अब मिल जाएगा। हारून सोच रहा था कि मेरा नया नाम क्या होगा और अब्दुल्ला अपने ख़याल में अल्लाह और राम के आगे खडा होकर देख रहा था अब किसके हाथों में क्या है, किधर जाने से ज्यादा फायदा है…