तुम लिखते हो भगवा जलेगा,
हां अब ये भगवा जलेगा।।
जो दीप की तरह ज्ञान प्रकाश दिखाये,
वह दावानल बनकर जलेगा।
हां अब ये भगवा जलेगा।।
इसकी लपटो मे जो आयेगा,
वह धधकती चिता समान जलेगा।
हां अब ये भगवा जलेगा।।
शिक्षा के मन्दिर को, वैश्यालय बना डाला,
वह पूरा का पूरा JNU परिसर जलेगा।
हां अब ये भगवा जलेगा।।
जो भगवा शान्ति सिखाता है,
अब तांडव करता हुआ जलेगा ।
हां अब ये भगवा जलेगा।।
एक नरेंद्र की प्रतिमा खंडित की,
सत्ता में बैठे दूजे का हृदय जलेगा।
हां अब ये भगवा जलेगा।।
और ऐसा जलेगा जिसकी आग में तुम राष्ट्र द्रोहियो की हड्डिया भी खाक हो जायेंगी।।
अभिनव सिंह “सौरभ” चरण सेवक भीमेश्वर महादेव
पुठरी वालो के।।