राज उजागर होने लगे सब धीरे धीरे “सौरभ”
यह खेल अब सबको खुलकर नज़र आने लगा
कुछ संपोलो की दुम पे ज़रा पैर क्या रखा गया,
हर नाग फुन्फकार कर बिल से बाहर आने लगा
निकलो निकलो ज़ितने भी हो तुम सब निकलो,
हम भी बीन लिये बैठे हैं वह बड़ी मधुर बजायेंगे
बहुत दिनो से हमने भी नागिन नृत्य नहीं देखा,
अब नागिन लहरी पर तुमको नृत्य वही करवायेंगे
अक्लमन्द हो बहुत बड़े पर अक्ल तुम्हारी बहुत मन्द है,
पड गये JNU चक्कर मे अब पिक्चर चलना पक्का बंद है
खाते-पीते भारत का हो और साथ गद्धारो का निभाते हो,
जब इतनी दिक्कत है यहाँ तो देश छोड़ चले क्यू नहीं जाते हो ?
✍अभिनव सिंह “सौरभ”
चरण सेवक भीमेश्वर महादेव पुठरी वालो के