रामगोपाल : कभी-कभी इंसान की सोच और लगन उस बात को सच में तब्दील कर देती है जो लगभग असंभव सी होती है। रेतीले मैदान में हरियाली की चादर बिछाना थोड़ा अजीब लग सकता है, मगर यह संभव है। जोधपुर से 100 किलोमीटर दूर स्थित ओसियां क्षेत्र के एकलखोरी गाँव में रहने वाले राणाराम बिश्नोई ने रेतीले मैदान को हरियाली के चादर से ढकने के लिए पूरी निष्ठा के साथ अपने प्रयास को परिणाम में बदलने की कोशिश की है। 77 वर्षीय राणाराम ने पिछले 40 वर्षों से वृक्षारोपण का काम शुरू किया है और वह सिलसिला बदस्तूर जारी भी है। घर से स्कूल दूर होने की वजह से बचपन में वह पढ़ाई नहीं कर पाए। पढ़ाई से दूर रहने वाले राणाराम ने प्रकृति से स्नेह की डोर बाँधी और 37 साल की उम्र से ही इसे निभा रहे हैं।
पौधों को लगाना फिर उनकी रख-रखाव करना उनके जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। बरसात शुरू होते ही खेत-खलिहान, स्कूल और मंदिर के आस-पास वृक्षारोपण करना शुरू कर देते हैं। पशुओं से बचाव करने के लिए उसके चारो तरफ बाड़ लगा देते हैं। बच्चों जैसे इन पौधों को जिंदा रखने के लिए राणाराम दूर-दूर से ऊंट गाड़ी पर पानी लाद कर लाते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अब तक ऐसे ही करीब 50 हजार से ज्यादा पौधे लगाए हैं।
राणाराम ने बार-बार पौधे लगाए लेकिन कई बार कई पौधे आँधियों में उड़ गए तो कई सूख गए। पांच सौ मीटर ऊंचे और तीन बीघा क्षेत्र में फैले टीले को हरियाली देने के लिए वह पिछले कई सालों से प्रयासरत हैं। साल 1998-99 के दौरान उन्होंने लगभग एक हजार वृक्षों को जमीन दी मगर बाद में आए आंधी में उनके जड़ उखड़ गए। मुश्किल से 10-15 ही अपने आपको बचा पाए। वही साल 2007 में दो सौ पौधों को जिंदगी देने की कोशिश की मगर आँधियों में करीब डेढ़ सौ पौधे उड़ गए। हर रोज घर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी तय करके टीले पर जाना और फ़िर पास के ट्यूबवेल से पाइप के जरिए पानी लाकर पौधों को सींचना राणाराम के जीवन का एक नित्यकर्म बन गया है।
इलाके में हरियाली की चादर बिछाने के संकल्प के साथ राणाराम को यह उम्मीद है कि एक दिन हरियाली यहां जरुर दस्तक देगी और उनका सपना सच होगा। इस कार्य में उन्हें ग्रामीणों का भी सहयोग मिलने लगा है। इन्हीं प्रयासों के लिए राणाराम साल 2002 में जिला स्तर पर सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा उनको केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के हाथों सम्मान मिल चुका है। बीकानेर में विश्नोई समाज के धार्मिक स्थान पर सबसे पहले पौधा लगाया था फिर वहीं से यह सिलसिला अपने मंजिल की तरफ़ बढ़ चला।
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