भोपाल,18 जून। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला का कहना है कि देश की लगभग 10 करोड़ जनसंख्या वाला जनजातीय समाज भारत में स्वतंत्रता से पूर्व से उपेक्षित रहा है। परन्तु पिछले 65 वर्षों में भी इस समाज को मुख्यधारा से समरस करने में सफलता प्राप्त नहीं हुई है। वे यहां पत्रकारिता विश्वविद्यालय, वन्या,आदिम जाति अनुसंधान एवं विकास संस्थान और वन साहित्य अकादमी की ओर से “जनजाति समाज एवं जनसंचार माध्यमः प्रतिमा और वास्तविकता” विषय पर रवींद्र भवन में आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी में अध्यक्ष की आसंदी से बोल रहे थे। इस आयोजन में 22 प्रांतों से आए जनजातीय समाज के लगभग 140 लोग सहभागी हैं तथा विविध विषयों पर संगोष्ठी में लगभग 105 शोध पत्र पढ़े जाएंगें। उन्होंने सवाल किया कि क्या भारत इस 10 प्रतिशत जनसंख्या की उपेक्षा करके विश्वशक्ति बन सकता है?
प्रो. कुठियाला ने कहा कि पूरी दुनिया को एक रंग में रंग देने की अधिनायकवादी मानसिकता रखने वाली विचारधारा ने ही यह स्थापित करने का प्रयास किया कि ‘धर्म’ वही है जो उनका ‘धर्म’ है। ‘विश्वास’ वही है जो उनका ‘विश्वास’ है। इसी अवधारणा से उन्होंने अपनी आस्था से पहले व्यापारिक शक्ति बढ़ाई फिर राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति हासिल की। यह एक ऐसा षडयंत्र था जिसका पर्दाफाश होना जरूरी है। हमें अपनी संस्कृति को देखने के लिए पश्चिम की आंखें नहीं चाहिए बल्कि अपनी आंखों से हमें अपने गौरवशाली इतिहास को देखना होगा। जनजातीय समाज की जैसी छवि पश्चिम के बुद्धिजीवियों द्वारा बनाई गयी वह एक विकृत छवि है। जबकि हमें जनजातियों से शेष समाज के रिश्तों को पुनः पारिभाषित करने की जरूरत है। जब संवाद बनेगा तो बहुत सारे संकट स्वतः हल होते नजर आएंगें। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज को लेकर मीडिया को एक अभियान चलाना चाहिए जिसमें जनजातीय समाज के प्रश्नों पर सार्थक संवाद हो सके और उनकी समस्याओं व विशेषताओं पर विमर्श हो।
उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय समाज में जनजातीय समाज का बहुत आदर था, सहसंबंध थे, सुसंवाद था और वे शेष समाज से सदा समरस रहे हैं, लेकिन आधुनिक ज्ञान-विज्ञान व विदेशी विचारों ने हमें भटकाव भरे रास्ते पर डाल दिया है।
कार्यक्रम के मुख्यअतिथि लेखक एवं मुख्यमंत्रीःमप्र सरकार के विशेष सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि हमें यह याद करने की जरूरत है कि आजादी की पहली लड़ाईयां तो आदिवासी संतों ने लड़ीं। यह लड़ाईयां सही मायने में स्वाभिमान, पहचान, और आत्मछवि के लिए लड़ी गयीं। एक शांतिप्रिय समाज अपनी स्वायत्तता और पहचान के बचाए और बनाए रखने के लिए ही विद्रोह करता है। मिशनरियों द्वारा थोपे जा रहे विचारों के प्रतिरोध में ये सारे संधर्ष हुए। हम ध्यान से देखें तो पूरा उपनिवेशवाद मतांतरण की एक प्रक्रिया ही था जिसके नाते जगह-जगह आदिवासी संतों ने प्रतिरोध किया। क्योंकि उन्हें यह बताने की कोशिशें हो रहीं थीं कि तुम्हारा कोई धर्म नहीं है। भारत की विशेषता रही विविधताओं को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया गया और उनमें संघर्ष खड़ा करने की कोशिशें हुयीं। उनका कहना था कि हम संघर्ष के सबक व जरूरी पाठ भूल गए हैं। मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि आज की मीडिया कवरेज से जनजातियां बाहर हैं, अगर हैं तो उन्हें कौतुक व कौतुहल जगाने के लिए ही दिखाया व बताया जाता है। सही मायने में वे हमारी प्राथमिकताओं से भी बाहर हैं क्योंकि मीडिया एक ‘नया जनजातिवाद’ रच रहा है जिसमें वास्तविक आदिवासी लगभग निर्वासित हो चुके हैं।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता वनवासी कल्याण आश्रम के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेव राम उरांव ने कहा कि पुराने संदर्भों के आधार पर धारणाएं बनी हैं। भारतीय समाज आपस में जुड़ा हुआ है, उसकी एकांतिक पहचान नहीं बन सकती। संवाद व सहकार की धाराएं आपस में बनी हुयी हैं। जड़ों से कटना कठिन है। यही अस्मिताबोध है। बांटने की कोशिशों के खिलाफ खड़ा होना होगा। मुक्तिवादी चिंतन ठीक नहीं है, हम कहां-कहां तक मुक्त होंगें। उनका कहना था विविधताएं ही हमारी संस्कृति का आकर्षण हैं, इसे अलगाव मानना भारी भूल है।
कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता विष्णुकांत ने कहा कि जनजातियों की स्थापित छवि को बदलने की जरूरत है। मीडिया को उनकी वास्तविक छवि और समस्याओं को उठाना चाहिए। छवि निर्माण क्योंकि मीडिया का काम है इसलिए उसे जनजातियों की श्रेष्ठ परंपराओं, प्रकृति-पर्यावरण के साथ उनके रिश्तों को बताना चाहिए। जनजातियों को लेकर पुर्नलेखन,पुर्नव्याख्या, पुर्नमूल्यांकन की जरूरत है जो जनजातीय समाज के लोगों के साथ मिलकर होना चाहिए। हमें ध्यान देना होगा कि आज जनजातियों के सामने उनकी अस्मिता व पहचान के सवाल ही महत्वपूर्ण हैं।
संचालन प्रो.रामदेव भारद्वाज ने किया तथा आभार दीपक शर्मा ने व्यक्त किया। कार्यक्रम के आरंभ में श्रीराम तिवारी,लक्ष्मीनारायण पयोधि ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे, अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिलीप सिंह भूरिया, मप्र भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं राज्यसभा के सदस्य नंदकुमार साय, विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष निवेदिता भिड़े, पत्रकार जगदीश उपासने, राजकुमार भारद्वाज सहित अनेक प्रमुख लोग सहभागी हैं। आयोजन का समापन 20 जून को दोपहर 2.30 बजे होगा। समापन समारोह के मुख्यअतिथि प्रदेश के उच्चशिक्षा एवं जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा होंगें तथा मुख्यवक्ता के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव उपस्थित रहेंगें।