गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा है कि सृजनात्मकता शोध का आधार है। सृजनात्मक सोच के अभाव में उच्च कोटि का शोध सम्भव नहीं है। जब तक शोध उच्चकोटि का नहीं होगा तब तक उस शोध को पेटेंट नहीं किया जा सकेगा तथा देश व समाज को उसका कोई फायदा नहीं होगा। प्रो. टंकेश्वर कुमार विश्वविद्यालय के बौद्धिक सम्पदा अधिकार व तकनीकी वाणिज्यकरण सैल द्वारा राजीव गांधी नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ इंटलैक्चूअल प्रोपर्टी मैनेजमैंट, नागपुर के सहयोग से ‘अविष्कार एवं बौद्धिक सम्पदा अधिकार’ विषय पर विश्वविद्यालय के चौधरी रणबीर सिंह सभागार के सेमीनार हाल-1 हुई एक दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह को बतौर मुख्यातिथि सम्बोधित कर रहे थे। कार्यशाला में पेटेंट ऑफिस दिल्ली के सहायक कंट्रोलर ऑफ पेटेंटस एंड डिजाइन्स डा. शंकर दयाल भटनागर मुख्य वक्ता थे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. एम.एस. तुरान बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे।
कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा कि उच्चकोटि का शोध तभी संभव है जब शोधकर्ताओं को पर्याप्त सुविधा व संरक्षण मिले। शोधकर्ताओं को उच्च स्तर की सुविधाएं उपलब्ध करवाना शैक्षणिक संस्थाओं का नैतिक दायित्व बनता है। उन्होंने कहा कि उद्योगों एवं शैक्षणिक संस्थानों में समन्वय स्थापित कर नई तकनीकों के शोध किए जा सकते हैं। यह शोध शोधार्थियों के साथ-साथ आने वाली पीड़ियों के लिए भी लाभदायक रहेंगे। उन्होंने कहा कि शोधर्थियों को शोध पेटेंट करवाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा ताकि संबंधित शोध पर हमेशा के लिए उनका अधिकार स्थापित हो सके। उन्होंने विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए इन्सेंटिव एवं अवार्ड को क्रियान्वित करने बारे सुझाव भी मांगे। साथ ही कहा कि विश्वविद्यालय में शोधों के लिए और अधिक उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा।
कुलसचिव प्रो. एम.एस. तुरान ने कहा कि किसी भी शोध कार्य को पेटेंट कराने के बाद भी हमें जागरूक रहना होगा। पेटेंट की समय सीमा होती है। इस समय सीमा के बाद बाजार में काफी विकल्प मौजूद हो जाते हैं। नए अविष्कार करते रहने से ही उद्योग निरन्तर प्रगतिशील रह सकते हैं। जो उद्योग इस ओर ध्यान नहीं देते वे बन्द हो जाते हैं। किसी भी शोध कार्य को करने में प्लेगरिज्म नहीं करनी चाहिए। प्रो. एम.एस. तुरान ने विद्यार्थियों से आहवान किया कि वे बाजार की मांग के अनुरूप नवीनतम शोध करें तथा शोध कार्य मूल रूप में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला प्रतिभागियों के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगी तथा पेटेंटिंग के अतिरिक्त शोध कार्य से सम्बंधित अन्य पहलुओं को भी छूएगी।
आईपीआर एंड टीसी सैल आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं फैकल्टी ऑफ इन्वायर्नमैंट एंड बायो साईंसिज एंड टैक्नॉलोजी के डीन प्रो. बी.एस. खटकड़ ने इस अवसर कहा कि शोध व बौद्धिक संपदा अधिकार के क्षेत्र में भारत में बहुत अधिक संभावनाएं हैं। फिलहाल इस क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इस दिशा में ध्यान दिए जाने की जरुरत है। हालांकि भारत में इस क्षेत्र में प्रगति करने के लिए संस्थानों की कोई कमी नहीं है। विश्वविद्यालय में शोध व पेटेंट की स्थिति काफी अच्छी है विश्वविद्यालय को लगातार तीसरी बार ए ग्रेड दिलवाने में शोध व पेटेंट की अहम भूमिका रही है।
आईपीआर एंड टीसी सैल के हैड प्रो. जे.बी. दहिया ने कहा कि कार्यशाला में 150 प्रतिभागियों ने भाग लिया। उन्होंने प्रतिभागियों को कार्यशाला से सम्बंधित विस्तृत जानकारी दी। उन्हेंने कहा कि शोध के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं साथ ही नई-नई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। उन्होंने शोधर्थियों को इन संभावनाओं का फायदा उठाने तथा चुनौतियों से निपटने के बारे में भी बताया।
आईपीआर एंड टीसी सैल आयोजन समिति के सदस्य एवं विश्वविद्यालय के फार्मास्युटिकल विभाग के प्रो. सुनील शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस अवसर पर कार्यशाला से संबंधित ई-बुकलेट का विमोचन भी किया गया। कार्यशाला के विभिन्न सत्रों को विषय विशेषज्ञों एचएससीएसटी पंचकुला के राहुल तनेजा व सुशांत दास ने सम्बोधित किया। इस अवसर पर दिल्ली के आईपीआर अटार्नी रजनीश कुमार शर्मा उपस्थित थे।
कार्यशाला तकनीकी सत्रों को सम्बोधित करते हुए मुख्यवक्ता डा. शंकर दयाल भटनागर ने कहा कि विश्वविद्यालय अविष्कार का मुख्य आधार होते हैं जो कि उद्योगों की समस्याओं का निवारण करने की क्षमता रखते हैं। बौद्धिक सम्पदा अधिकार व्यापारिक संगठनों तथा शैक्षणिक एवं शोध संस्थान के लिए औजार का काम करता है। शैक्षणिक संस्थान तथा शोध एवं विकास संस्थान बौद्धिक सम्पदा अधिकार को सबसे अधिक बढ़ाते हैं जिससे तकनीक को ऊंचे आयाम मिल जाते हैं।