ये हैं सूरत के स्वयंसेवक आशीष सूर्यवंशी। जिन्होंने अपनी बेटी को स्कूल के क्रिसमस फंक्शन में संघ का गणवेश पहनाकर भेजा। आप खुद देखिए इन जोकरों के बीच में यह बच्ची किसी सूर्य की तरह चमक रही है
मुझे समझ में नहीं आता जब स्कूल का मालिक हिंदू है उस स्कूल के टीचर हिंदू हैं उस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हिंदू हैं फिर यह आजकल के इंग्लिश मीडियम वाले स्कूल इस तरह से क्रिसमस स्कूलों में क्यों मनाते हैं ? क्या किसी मदरसे में कोई हिंदू त्यौहार मनाया जाता है ? क्या किसी ईसाई स्कूल में कोई हिंदू त्यौहार मनाया जाता है ?फिर आखिर सेकुलरिज्म का चूल हिंदुओं को ही क्यों मचलता है ?
इस नन्ही स्वयंसेवक से सीखिए। सेकुलर सैंटाओं के बीच में सेंटा मत बनिये, हिन्दुत्व की लाठी पकड़ लीजिए, आप अलग ही चमककर आएंगे। जैसे इन सेंटाओं में ये बच्ची चमक रही है।
पहले ही तुम पहचान चुके यह पथ तो है काँटों वाला।
पग पग पर पड़ी शिलाएं हैं, कंकड़ मय काँटों वाला।
दुर्गम पथ अंधियारा छाया, उस पथ पर फिर डरना कैसा?
यह रुक रुक कर बढ़ना कैसा?