जांजगीर – चांपा , 16 दिसंबर (छत्तीसगढ़), राज्य में शिशु सरंक्षण माह मनाया जा रहा है |लेकिन स्वास्थ्य विभाग से मिले शिशुओं और जननी की मौत के आंकड़ों से कुछ और ही कहानी सामने आती है | यहाँ हम सिर्फ सरकारी रिकार्ड में दर्ज आंकड़े देख रहे हैं |
केन्द्र एवं राज्य सरकार ने शिशुओं का सरंक्षण और महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये कई योजनाएं चला रखी हैं | जिले के स्वास्थ्य विभाग द्वारा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के सभी बच्चों को मीजल्स टीकाकरण के माध्यम से स्वास्थ्य सुरक्षा अभियान चलाये जाते हैं |वहीं 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को विटामिन ऐ की खुराक , कृमिनाशक दवा , तथा कुपोषण की जांच किये जाने का प्रावधान है | गर्भवती महिलाओं की जांच के लिये अस्पतालों में तमाम इंतजाम होने के दावे भी किये जाते हैं |
लेकिन जांजगीर चांपा जिले में , स्वास्थ्य विभाग में दर्ज आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2007-2008 में 636, 2008-09 में 530, 2009-10 में 763 तथा 2010-11 में दिसंबर माह तक 391 शिशुओं की मौत हो चुकी है | कुल मिलाकर इन चार वर्षों में 2320 की मौतों के आंकड़े स्वास्थ्य विभाग ने दर्ज किये हैं | वहीं इन चार वर्षों में 39 माताएं भी काल कवलित हो गई हैं | अगर सरकार द्वारा शिशु सरंक्षण और जननी सुरक्षा पर सही तरीके से सर्वेक्षण कराया जाए , तो इसका खुलासा हो सकता है कि शासकीय अस्पतालों में लापरवाही और मनमानी इतना ज्यादा बड गई है कि सरकारी अस्पतालों से ज्यादा लोगों का भरोसा निजी क्लीनिकों पर बड गया है | लोग निजी अस्पतालों में हजारों रुपया खर्च कर अपना इलाज कराना ज्यादा मुनासिब समझते हैं | ऐसा नहीं है कि स्वास्थ्य सुविधाओं का ज़रा भी लाभ क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल पा रहा है , लेकिन अधिकारियों के मनमाने व्यवहार व कर्मचारियों के उदासीन रव्वैये से आम लोगों का मोहभंग हो रहा है | यहाँ सरकारी अस्पताल में पदस्थ सभी डाक्टरों ने अपने अपने निजी क्लीनिक खोल रखे हैं और वहीं से सारा कामकाज निपटाते हैं | यहाँ के जनप्रतिनिधि भी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाते |