के के शर्मा : प्रातः की बेला थी, श्रीमुख शांडिल्य गोत्रीय ब्राह्मणों की तरह कश्मीर में सूर्य आज भी प्रतिदिन की भांति मुस्कुरा कर उगा था। हिम की कश्मीरी शॉल ओढ़े पहाड़ों पर पड़ती किरणों की पवित्र आभा को देख कर लगता था, जैसे युगों पुराने सूर्य मंदिर को स्वयं सूर्य की किरणें प्रणाम करने उतरी हों। कुल मिला कर प्राचीन स्वर्ग में स्वर्गिक आभा पसरी हुई थी।
अचानक गाँव की मस्जिद के अजान वाले भोंपे से चेतावनी के स्वर गूंजे – “सभी हिन्दुओं को आगाह किया जाता है कि अपनी संपत्ति और महिलाओं को हमें देकर आज ही कश्मीर छोड़ दें, वरना अपने अंजाम के जिम्मेवार वे खुद होंगे।”
राजेन्द्र कौल की इकलौती बेटी शीला अपनी कोई पुस्तक ढूंढ रही थी कि ये स्वर उसके कानों को जलाते हुए घुसे। वह आश्चर्यचकित हो कर मस्जिद को निहारने लगी। उसके अंदर मस्जिद के प्रति भी उतनी ही श्रद्धा थी जितनी6 मन्दिर के प्रति थी। मस्जिद से आती ध्वनि सदैव उसे ईश्वर की ध्वनि प्रतीत होती थी। वह समझ नहीं पायी कि एकाएक अल्लाह ऐसी भाषा कैसे बोलने लगा।
वह अभी सोच ही रही थी कि धड़धड़ाते हुए राजेन्द्र कौल घर मे घुसे और पागलों की तरह चीखते हुए बोले – बेटा अपना सामान समेटो, हमें शीघ्र ही यहाँ से जाना होगा।
शीला ने आश्चर्यचकित हो कर कहा – कहाँ पिताजी ?
राजेन्द्र कौल ने हड़बड़ाहट में ही कहा – ईश्वर जाने कहाँ, पर यह स्थान हमें शीघ्र ही छोड़ना होगा।
शीला – यह हमारा घर है पिताजी! हम अपना घर छोड़ कर कहाँ जायेंगे ?
राजेंद्र कौल – ज्यादा प्रश्न मत कर बेटी, हम जीवित रहे तो पुनः अपने घर आ जायेंगे पर अभी यहां से जाना ही होगा। सारे मुसलमान हमारे दुश्मन बने हुए हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं।
शीला – किंतु पिताजी, हम आजाद देश मे रहते हैं। हम इतना क्यों डर रहे हैं ? यहाँ कोई व्यक्ति किसी अन्य को अकारण ही कष्ट कैसे दे सकता है ?
राजेंद्र कौल – यह मस्जिद का ऐलान नहीं सुन रही हो ? वे लोकतंत्र के मुह में पेशाब कर रहे हैं। व्यर्थ समय न गँवाओ, अपने सामान समेटो।
शीला – पर पिताजी, हम तो वर्षों से साथ रह रहे हैं और यह तो धर्मनिरपेक्ष देश है न ?
राजेंद्र कौल – व्यर्थ बात मत कर बेटा, धर्मनिरपेक्षता इस युग का सबसे फर्जी शब्द है। कश्मीर ने आज इस शब्द की सच्चाई जान ली, शेष भारत भी अगले पचास वर्षों में जान जाएगा।
शीला अब और प्रश्न न कर सकी, क्योंकि राजेन्द्र कौल पागलों की तरह इधर उधर से उठा-पटक कर समान की गठरी बनाने लगे थे। घण्टा भर में राजेंद्र कौल और उनकी पत्नी ने ले जाने लायक कुछ महंगे सामानों की गठरी बनाई और शीला का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खींचते हुए बाहर निकले। शीला के पास कोई गठरी नहीं थी। वह समझ ही नहीं पाई कि इतने बड़े घर से वह क्या ले जाये और क्या छोड़े। राजेन्द्र कौल ने द्वार पर खड़ी अपनी खुली कार में गठरी फेंकी, पत्नी और बेटी को लगभग धकियाते हुए बैठाया और गाड़ी स्टार्ट कर बाहर निकले।
गाड़ी घर की चारदीवारी के बाहर निकली तो राजेंद्र ने देखा, बाहर बीसों मुश्लिम युवक खड़े ठहाके लगा रहे थे। एक ने छेड़ते हुए कहा – कौल साब! जा रहे हैं तो समान ले कर क्यों जा रहे हैं, यह गठरी हमें देते जाइये।
राजेंद्र कौल सर झुका कर चुपचाप गाड़ी बढ़ाते रहे। बाहर खड़ी भीड़ में कोई ऐसा नहीं था, जिसकी अनेकों बार राजेन्द्र कौल ने सहायता न की हो।
अचानक किसी ने शीला का दुपट्टा खींचा, उसने मुड़ कर देखा तो आंखे जैसे फट गयीं। उसने दुप्पटे को खींचते हुए कहा – रहीम भाई आप ?
रहीम ने झिड़क कर कहा – अबे चुप! मैं तेरा कैसा भाई ? तू काफ़िर है।
राजेंद्र कौल ने तेजी से गाड़ी बढ़ा दी, शीला का दुपट्टा रहीम के हाथ मे ही चला गया। उसने पीछे से ठहाका लगाते हुए कहा – अरे कौल साब! अपनी बेटी को तो हमें दे जाइये, वह आपके किस काम की…
शीला रो पड़ी थी। वह बचपन से ही रहीम को राखी बांधती आयी थी और आज पल भर में ही रहीम ने! उसने पीछे मुड़ कर देखा, महलों जैसा उसका घर पीछे छूट रहा था।
राजेंद्र कौल चुपचाप गाड़ी भगाते जम्मू की ओर निकल पड़े।
गाँव के बाहर निकलने पर शीला ने कहा – पिताजी! आपको नहीं लगता कि आप नपुंसक हैं ?
राजेंद्र कौल कोई उत्तर नहीं दे सके। पच्चीस वर्ष बीत गए। महल जैसे घर में रहने वाले राजेंद्र कौल का जीवन किराए की एक कोठरी में कट गया, पर वे कभी अपने गांव नहीं लौट सके। वे जब भी शीला को देखते तो उन्हें लगता कि शीला की आंखे उनसे पूछ रही हैं – “क्या यही जीवन जीने के लिए भागे थे पिताजी ? इससे अच्छा तो लड़कर मर गए होते।”
इन पच्चीस वर्षों में शीला का ब्याह हुआ और समय के साथ उनकी पत्नी का देहांत भी हो गया, पर राजेंद्र कौल जलते ही रहे।
अब…
शीला ने पिता के मुँह में गंगाजल की दो बूंदे डाली, और दो बूंदे उसकी आँखों से टपक पड़ी।
उसने मन ही मन कहा – क्या कहूँ पिताजी, थे तो सब नपुंसक ही।
राजेन्द्र कौल अंतिम बार बुदबुदाए – मैं…. नपुंसक….
पर इससे अधिक न बोल सके। यमराज अपना कार्य कर चुके थे।
हिन्दुओं यह आवश्यक नहीं कि तुम और तुम्हारी बहन बेटियां भी राजेंद्र कौल और शीला की तरह सौभाग्यशाली निकलें, इस्लामिक जिहादी जिस दिन तुम्हारे बराबर हो गये दुनिया की कोई ताकत तुम्हें नहीं बचा सकती क्योंकि कायर अर्थात हिजड़ों का कोई सारथी नहीं होता इसलिये अब भी समय है राजेंद्र कौल की तरह हिजड़े बनकर स्वयं अपनी बहन बेटियों को इस गर्त में मत धकेलो जहाँ उन्हें मंडी में बिकना पड़े। राजनीतिक महत्वकांक्षाओं और हिजड़ेपन को त्यागकर आतंकीयो के विरुद्ध इस अंतिम लड़ाई में एकजुट हो जाओ..।
कड़वा लेख है पर मीठा बोलना मुझे नहीं आता ।
#नोटा दबाकर वापस #मुस्लिम_परस्त #कांग्रेस को वापस देश की सत्ता सौंपने वाले #नपुंसको को #समर्पित
कांग्रेस आयी तो यह कहानी देश के हर कोने में लिखी जाएगी