चंडीगढ़ : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य श्री महावीर ने कहा है कि दुनिया में भारत की पहचान एक आध्यात्मिक देश के रूप में है। हमारे यहां आचरण की बातें धार्मिक ग्रंथों में कही गई हैं। हम महापुरुषों के प्रवचन सुनकर उनकी वाणी जीवन में उतारते हैं। महावीर ने कहा कि हमारी संस्कृति अहिंसावादी है, परंतु हिंसा का मुकाबला करने व निर्बल की रक्षा करने के लिए शस्त्र उठाना सबसे बड़ी अहिंसा है। इन कार्यों के लिए हमारे देवी-देवताओं व गुरुओं ने भी शस्त्र उठाए थे।
आज विजयदशमी पर्व पर सेक्टर 21 के वेरका बूथ पार्क में एकत्रित स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए श्री महावीर ने कहा कि मनुष्य है तो गलती होगी ही, जो गलती नहीं करते उन्हें ईश्वरमाना जाता है। हम गलती करते हैं, यह हम जानते हैं। हम अपनी गलती मानते हैं, उसे स्वीकार करते हैं तो यह हमारे संस्कार हैं। उन्होंने कहा कि हमारी धार्मिक, सामाजिक परम्परा में क्षमा का बड़ा महत्व है। क्षमा करना और क्षमा मांगना दोनों हृदय से होना चाहिए। यह आचरण हमारी सामाजिक समरसता के लिए जरूरी है। क्षमा याचना उसी के पास हो सकती है जो अहंकार से मुक्त हो। उन्होंने कहा कि किसी की गलती माफ करना बड़े हृदय का प्रमाण है परंतु बार-बार व जानबूझ कर गलती करने वाले को माफ नहीं किया जाना चाहिए। उसको माफ करना उसकी गलतियों को प्रोत्साहन देना होगा।
संघ के गणवेश में बदलाव पर बोलते हुए श्री महावीर ने कहा कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए समय के साथ परिवर्तन किसी भी जीवंत संगठन का लक्षण है। इन 90 वर्षों में केवल गणवेश ही नहीं, संघ की प्रार्थना, आज्ञाएं, घोष की रचनाएं, सेवा-संपर्क-प्रचार जैसे कार्य विभाग, अन्यान्य गतिविधियां ऐसी अनेक बाते हैं जो बदली हैं या नई जुड़ी हैं। उसी परंपरा में गणवेश में भी बदलाव हो रहा है। उन्होंने विश्वास जताया कि इससे संघ के साथ काम करने में समाज के लोगों को अधिक सहजता रहेगी। युवाओं का संघ से जुडऩा तो लगातार बढ़ ही रहा है। उसमें और अधिक सहजता आएगी।
उन्होंने कहा कि हर पीढ़ी में कुछ लोग यथास्थितिवादी रहते हैं। वे परिवर्तन का सहजता से स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं। पर, जब अधिकांश लोग स्वीकारते हैं तो ये भी उनके साथ हो जाते हैं। ऐसा ही इस समय भी होगा। संघ की एक विशेषता है कि चर्चा के समय सब अपना-अपना मत अवश्य व्यक्त करते हैं, पर निर्णय होने के बाद उसे सभी स्वीकार करते हैं। श्री महावीर ने कहा कि संघ की पहचान उसका अनुशासन, सादगी, देशभक्ति तथा सेवा-भाव है। शारीरिक तो कार्यक्रम मात्र है। प्रदर्शन के लिए सभी शारीरिक कार्यक्रम इस नए वेश में भी आसानी से हो सकेंगे। इसी तरह से इसे डिजाइन किया गया है। यह गणवेश केवल समारोह या शिविर, वर्ग आदि विशेष कार्यक्रम में ही पहनना होता है। रोज की शाखा में तो शारीरिक कार्यक्रम, खेल आदि के अनुरूप कोई भी वेश (निकर भी) पहनकर आ सकते हैं।
पथसंचलन को समाज को संगठित करने का साधन बताते हुए श्री महावीर ने कहा कि स्थापना के समय से ही संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करने की बात संघ ने की है और वैसा ही इसका प्रयास भी रहा है। इसलिए 1934 मेें वर्धा के संघ शिविर में जाकर महात्मा गांधी ने खास इस बात की ही पूछताछ की कि यहां जातिगत भेदभाव रखा जाता है या नहीं। उनके पूछने पर शिविर में भाग लेने वाले तब हरिजन कहे जाने वाले बंधुओं ने बताया कि यहां सभी के साथ समान एवं सम्मानपूर्वक व्यवहार होता है। छुआछूत का कोई सवाल ही नहीं उठता। इस पर गांधीजी ने प्रसन्नता व्यक्त की थी। इसका उल्लेख महात्मा गांधी के प्रकाशित समग्र वांग्मय में है। समरसता का भाव लेकर हम वर्षों से कार्य कर रहे हैं। यही कारण है कि अनुसूचित जाति के लोग तथा अन्य जाति-बिरादरी के नेता अधिक विश्वास औरआशा से संघ के पास आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि संचलन के दौरान कदम मिलने से आपस में मनमिलता है और मिले हुए मन से ही सांझे उद्देश्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
इससे पूर्व चंडीगढ़ महानगर के संघचालक श्री त्रिलोकी नाथ एवं महानगर सह-संघचालक श्री राजेन्द्र गोयल ने शस्त्रपूजन कर भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। स्वयंसेवकों ने सैक्टर 21 से प्रारंभ करते हुए सैक्टर 22 तक भव्य पथसंचलन निकाला। मार्ग में लोगों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा कर पथसंचलन का स्वागत किया।