चंडीगढ़, 29 नवंबर : संयुक्त राष्ट्र में जम्मू एवं कश्मीर के नागरिकों के हितों की आवाज़ उठा चुके जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के मार्गदर्शक अरुण कुमार ने स्थानीय स्तर पर धारा 370 पर डिबेट शुरू किये जाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हाल ही में कश्मीर दौरे पर गयी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोगों से कहा की हम अब तक राज्य में खाद्य सुरक्षा और एससी/एसटी आरक्षण जैसे कानून नहीं लागू करा पाये हैं। ये कानून पूरे देश में लागू हैं और जम्मू एवं कश्मीर में इन कानूनों के लागू ना होने से संविधान में उल्लिखित अवसर की समानता और सामाजिक न्याय की भावना की अवहेलना हो रही है। वह शनिवार को पंजाब यूनिवर्सिटी में ‘जम्मू-कश्मीर में लागू धारा-370 के सांस्कृतिक, सामाजिक और कानूनी पहलू’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा की धारा 370 की वजह से ही राज्य में लोक कल्याणकारी कानून लागू नहीं हो पा रहे हैं। अब वक़्त आ गया है कि हम राज्य में इस बात की बहस शुरू कराएं कि धारा 370 से राज्य के लोगों को क्या नुकसान हो रहे हैं और क्या लाभ। इसके अलावा उन्होंने कहा कि अभी हाल में जम्मू-कश्मीर में आयी बाढ़ में केंद्र सरकार ने जिस प्रकार यहां राहत अभियान चलाया और राज्य को आर्थिक पैकेज जारी किया उससे यहां के लोगों को यह अहसास हुआ है कि आपदा के समय में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर की सरकार पर केंद्र की राहत योजनाओं को राजनीतिक फायदों के लिए अपनी तरफ से तोड़-मरोड़ कर दिखाने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि समस्या के समाधान के लिए सरकार को राज्य के लोगों से सीधे बात करनी चाहिए ना की मध्यस्थों और एजेंटों के माध्यम से बात होनी चाहिए।
गोष्ठी में आये पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड के उपाध्यक्ष डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने प्रश्न उठाया कि देश की आजादी के समय 562 रियासतों के राजाओं ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर खुद को भारतीय गणराज्य में शामिल किया था। लेकिन देश में जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर अन्य किसी रियासत के बारे में ऐसा नहीं बोला जाता कि इस रियासत का भारत में विलय हुआ है। इन रियासतों में जींद, कपूरथला, पटियाला, ग्वालियर, हैदराबाद आदि रियासतें भी शामिल थीं, लेकिन इनको लेकर इस प्रकार का जिक्र नहीं होता। उन्होंने प्रश्न किया कि यदि ये रियासतें विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करतीं तो क्या भारत का अभिन्न अंग नहीं होतीं। उन्होंने कहा, ‘धारा 370 और अरुणाचल प्रदेश की विवादास्पद स्थिति के लिये जितने जिम्मेदार पड़ोसी देश हैं उतना ही देश के अंग्रेजी मीडिया द्वारा प्रयोग की जाने वाली टर्मिनोलॉजी (शब्दकोश) है। उन्होंने बताया कि रियासतों द्वारा हस्ताक्षर का अर्थ यह नहीं था कि उनसे पूछा जा रहा था कि आप भारत संघ में शामिल होना चाहते हैं या नहीं बल्कि इसका अर्थ यह था कि एक समान संविधान को ये सभी रियासतें एक साथ स्वीकार कर लें, ताकि क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर अन्य रियासतों को अलग-अलग संविधान न बनाने पड़ें। उसी तर्ज पर जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा हरी सिंह ने हस्ताक्षर किये थे। इन सभी रियासतों के विलय का फार्मेट भी एक ही तरह से डिजायन किया था, जिसको राजाओं द्वारा सिर्फ भरा जाना था। दरअसल, जब रियासतों का विलय हो रहा था, तब संविधान के 2 प्रारूप बनाने की बात चल रही थी। एक फॉर्मेट में वित्त, रक्षा, विदेश और संचार विषय शामिल किये जाने थे और दूसरे में रियासतों के स्थानीय मुद्दे जैसे कानून-व्यवस्था, कृषि, स्थानीय कर आदि। दूसरा प्रारूप रियासतों को बनाना था, लेकिन बाद में यह विचार रखा गया कि संघ और रियासतों का अलग संविधान न बनाकर एक संघीय संविधान बनाया जाये। जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के हमले के कारण यह राज्य संविधान निर्माण की प्रक्रिया में पिछड़ गया था, जिसे अन्य रियासतों की तरह इसे मुख्य धारा में लाने के लिये धारा-370 को अस्थायी प्रबंध के रूप में स्वीकार किया गया था।’ उन्होंने बताया कि राज्य में रह रही अधिकतर मुसलमान जनजातियां और वहां की जनता भारत के साथ रहना चाहती हैं बशर्ते सरकार को उनकी समस्याओं को लेकर लोगों से बात करनी चाहिये न कि सैयद, गिलानी और हुर्रियत आदि से। उन्होंने बताया कि राज्य में रहने वाला शिया समुदाय देश और उसके नियमों, संस्कृतियों के प्रति आस्था रखता है।
दिल्ली स्थित जम्मू-कश्मीर स्टडीज सेंटर के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि कश्मीर के कुछ हिस्से जैसे गिलगित, बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद पर पाकिस्तान के कब्जे के बाद भारत की तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष ने इसे अनुपजाऊ और अनुपयोगी करार दिया था, लेकिन असलियत यह है कि इस हिस्से के पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद भारत का यूरोप से सड़क मार्ग का संयोजन समाप्त हो गया है। इसके संयोजन से हमारा यूरोप से व्यापार कई गुना बढ़ सकता है। इसके अलावा दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में से एक यहां स्थित है, जो पानी का अकूत भंडार है। आने वाले समय में यहां पेयजल व्यवसाय के लिये अकूत कच्चा सामान उपलब्ध होगा और पाकिस्तान इससे अरबों रुपये कमायेगा। विचार गोष्ठी को इनके अलावा कॉमनवैल्थ के चंडीगढ़ स्थित आफिस के प्रोग्राम डायरेक्टर तेनजिंग दावा ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि लद्दाख पर्यटन के लिये बेहद अनुकूल क्षेत्र है। लेकिन सरकारें यहां के लोगों की शिक्षा और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही हैं। उन्होंने पर्यटन के लिये लद्दाख जाने वाले लोगों को उनसे जुड़ने की सलाह दी। इस मौके पर जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के चंडीगढ़ चैप्टर के अध्यक्ष डा. टंकेश्वर, महासचिव जय कुमार, पंजाब के पूर्व डीजीपी पीसी डोगरा और शहर के गणमान्य लोग मौजूद थे।