देखो भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
फिर आ गया 23 मार्च
तुम्हारे बलिदान का दिन
वहीँ दिन जब देश के लिए मर मिटे
फांसी पर लटकाकर तुम्हारे सांस घोटे
बोटी-बोटी कर टुकड़े तुम्हारे
मिटटी के तेल से जलाए गए
फांसी पर झूले जैसे सावन का झूला
रंग दे बसंती गाते झूमा तुम्हारा टोला
जवानी की क़ुरबानी कर दी देश के हवाले
आज़ादी का सपना आंखों में लेकर
बोल गए देश रहा अब तुम्हारे हवाले
तुम्हारा ही खून खौला था
आज़ादी के उन नजरानों पर
तान के सीना तुमने गुलामी को ललकारा
हौंसले की बुलंदी से ब्रिटिश सरकार को लताड़ा
इंकलाब जिंदाबाद के लगाकर नारे
राजगुरु, सुखदेव भी आज़ादी-आज़ादी पुकारे
अत्याचार पर कर प्रहार
पहन लिया था बसंती चोला
नमन है देश की मिटटी को
तुम जैसे होनहारों पर
हर मां की कोख पैदा करे
ऐसे वीर बलिदानों को
तुम रहे तो बनी देश की पहचान
तुम से ही देश की आन, बान और शान ।।
कर्तज्ञता से परिपूर्ण कविता….