जो घाटी पार पडोसी बैठा
अपनी आँखों को ताने,
ध्यान मगन शिव भूमि को
वो अपना ना जाने।
आज राष्ट्र की प्रहरी बन
भारत की संतान खड़ी है,
देश अश्मिता की रक्षा में
जो बारम बार लड़े है।
मधुर बांसूरी वाले कान्हा
कुरुक्षेत्र भी जाते हैं ,
गंगा सी मर्यादा वाले
राम सिंधु सुखाते है।
अब भी प्रताप बन कर
बच्चा बच्चा शौर्य दिखा देगा,
मोहम्मद गोरी से कह दो
अंधा पृथ्वी भी प्राण सुखा देगा।
शिव वरदान प्राप्त कर कोई
भष्मासुर ना बनने पाये,
भिक्षुक बना रावण कोई
हमें ना छलने आये।
जाओ दुश्मन से कह दो
अर्जुन अब भी गाँडीव उठाता है,
शोणित को प्यासे कुरुक्षेत्र में
जब चाहो पाञ्चजन्य बज जाता है।
नानक के जीवन अमृत से सिंचित
ये भूमि ना खंडित होने देंगे,
राष्ट्रपुरुष इस भारत को
कश्मीर से न वंचित होने देंगे।
बटवारे की आग जल रहे
ओ नादान पडोसी सुन ले,
सावन की बरखा या तपन ज्येठ की
जो तू चाहे चुनना चुन ले।
यदि रहे करबद्ध अनुग्रह की स्तिथि में
नीलकंठ बन तेरा विष भी पी लेंगे,
खंडित रंजित करने की शाजिश पे तेरी
कर तांडव महाप्रलय मचा देंगे।
नीरज पंत , कवि एवं लेखक ,पंजाब विश्विद्यालय
बहुत सुंदर भाई. प्रशंसनीय
बहुत ही सुंदर रचना है।
नीरज आपने बहुत ही सुन्दर कविता लिखी हे , भारत माता की जय
बहुत सुन्दर भाई श्री