रुद्रपुर ललित मोहन : रुद्रपुर और उसके आस पास के शहरों में आजकल रसोई गैस की भारी किल्लत है. पहले गैस घर भेजी जाती थी, परन्तु पिछले कुछ समय से गैस की आपूर्ति में कमी के चलते, होम डिलीवरी बंद कर दी गई थी. कई लोग पहले होम डिलीवरी का इन्तेज़ार न कर, गैस ऑफिस जा कर ही गैस सिलेंडर प्राप्त कर लिया करते थे. बाद में लोगों को घंटों लाइन में लगने के बाद गैस मिलने लगी. परन्तु पिछले कुछ समय से गैस की किल्लत बहुत अधिक बड़ गई है.
जिसका कारण शहर में तेजी से बढ़ती आबादी है. आबादी ने व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया, और लोग घरेलू गैस को होटलों आदि में इस्तेमाल करने लगे. ब्लैक में तो सिलेंडर रुपये 800-900 में उपलब्ध है, परन्तु बुकिंग करवाने पर 15-20 दिन के बाद भी डिलीवरी नहीं मिल पा रही है. लोगों की परेशानी को देखते हुए शहर के अलग-अलग इलाकों में सप्ताह में एक बार गैस वितरण की बात तय की गई, तो लोग सुबह 4 बजे से ही पंक्ति बना कर गैस का इन्तेज़ार करने लगे. अक्सर लोग सुबह चार बजे से दिन में ढाई-तीन बजे तक लाइन में खड़े रहते हैं. इतने इन्तेज़ार के बाद भी जब गैस नहीं बंटती है, तो परेशान होकर उन्हें वापस लौटना पड़ता है. कई बार निर्धारित दिन जब तय स्थान पर गैस वितरण नहीं होता है, तो लोग अगले दिन भी उम्मीद के साथ उसी स्थान पर आ कर खड़े हो जाते हैं, और तीन चार घंटे गैस वितरण की राह देख कर वापस चले जाते है.
इस परेशानी के चलते अक्सर गुस्से में आकर लोगों का सड़क जाम करने और नारेबाजी का सिलसिला भी चलता रहता है. एक तरफ़ गर्मी कहर बरसा रही है. लोगों का हलक हो या खाल, गर्मी किसी पर रहम नहीं कर रही है. और बेचारी जनता को, आठ-दस घंटे लाइन में खड़े रहने के बाद भी, गैस नहीं मिल पा रही है. लोग तरह -तरह की बातें कहते हुए पाए जाते हैं. कोई कहता है- ‘सरकार चोर है!’ तो कोई गैस विभाग के कर्मचारियों को भ्रष्ट कहता है, कुछ लोग कहते हैं- ‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, आने वाले समय में क्या होगा?’ जो लोग शहर से हट कर गाँव में रहते है, वह तो लकड़ी जला कर भी काम चला रहे हैं, शहर वाले क्या करें? ना मिट्टी का तेल मिलता है, ना हर समय बिजली आती है, ना ही रसोई गैस मिल रही है. सौर ऊर्जा का उपयोग अभी चलन में नहीं है. यह तमाम परेशानियां आम आदमी के नाक में दम करने के लिए काफी हैं. जनता को इन सभी परेशानियों से उबारने की जिम्मेवारी सरकार की है, मगर अफ़सोस! सरकार समस्याओं को सुलझाने के मामले में , लगातार असफलता के झंडे गाड़ते हुए आगे बढ़ रही है. सरकार के उदासीन रवय्ये से लगता है- सरकार अपना काम भूल गई है! उसे लगने लगा है, वह सिर्फ़ सत्ता सुख भोगने के लिए चुनी गई है.
बिना सोचे समझे, एक शराब की बोतल, और कुछ रुपयों में बिकने वाले मतदाता जब तक साँसों की माला जप रहे हैं, तब तक शरीफों का चुनाव जीतना मुश्किल है, ईमानदार आदमी चुनाव नहीं जीतेगा तो समस्स्याएँ भी जीवित रहेंगी.
veryy good lalit ji……………..