संविधान के कत्ल की 29वी बरसी
अमित तोमर, देहरादून : 18-19 जनवरी 1990 की वो काली रात कश्मीर घाटी के हिन्दू कभी नहीं भुला सकेंगे। रात 11 बजे कश्मीर घाटी की मस्जिदों से ऐलान हुआ कि सभी हिन्दू अगले 24 घंटे में कश्मीर घाटी छोड़ दे अन्यथा मार दिए जायेंगे। टीवी पर तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधान मंत्री बेनज़ीर भुट्टो कश्मीरी मुसलमानो को हिन्दुओ का कत्लेआम करने के लिए उकसा रही थी। उसी रात और अगले दिन तक श्रीनगर और कश्मीर घाटी से करीब 3 लाख कश्मीरी हिंदुओं ने कश्मीर घाटी को छोड़ दिया। यूँ तो हिंदुओ पर जिहादी आतंकी 1981 से ही जुल्म बरपा रहे थे, चुन-चुन कर कश्मीरी नेताओं की हत्या की जा रही थी परंतु 19 जनवरी 1990 को आतंक का
ऐसा नंगा नाच हुआ जिससे पूरी मानवता शर्मसार है।जो हिन्दू नहीं गए उनके साथ जो हुआ वो पूरे विश्व में किसी भी नस्ल के साथ नहीं हुआ था। बहन-बेटियों को जिहादियों ने बलात्कार किया, उनके शरीर पर -आज़ाद कश्मीर के नारे चाकुओं से गोद दिए गए। मासूम बच्चों बूढो औरतों को भी निर्ममता से क़त्ल कर दिया। भारत की धर्म निरपेक्ष सरकार चुप रही, मानवाधिकार आयोग चुप रहा। संयुंक्त राष्ट्र चुप रहा। शर्म आती है क्योकि उस दिन मैं भी चुप रहा था। आज 28 वर्ष बाद भी कश्मीर घाटी में मात्र 3000 कश्मीरी हिन्दू है। हज़ारो मंदिरों को तोड़ दिया गया है। कश्यप ऋषि की कश्मीर घाटी आज पाकिस्तान नज़र आती है।
आज केंद्र और जम्मू कश्मीर राज्य में भाजपा का राज है परंतु आज 28 वर्ष बाद भी कश्मीरी हिंदुओ को बसाने की कोई ठोस योजना धरातल पर नही है। आज समय है जब देश के सभी हिंदुओं को कश्मीर घाटी से विस्थापित हिंदुओ को पुनः उनके घर दिलाने के लिए संघर्ष करना होगा।