अमित तोमर, देहरादून : इंदिरा गांधी की हत्या पर पागल हुए थे बंगाल-केरल-यूपी में क्यों पत्नी के पेटीकोट में घुस जाते हो ? हिजडों जिन्होंने तुम्हारी 300 साल रक्षा की थी उन्हें ही तुमने चुन-चुन कर जलाया था।
31 अक्टूबर 1984 का वो दिन भारत के इतिहास में काले अक्षरों से लिखा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारत की सड़कों पर जो हुआ था वो आज भी दिल दहला देता है। कांग्रेसी नेताओं के नेत्रेत्व में भारत के हर शहर में दरिंदों की फ़ौज सड़कों पर थी। उनका निशाना हर वो मकान-दूकान-घर था जो सिखों का था। सरेबाज़ार बहन-बेटियों की इज़्ज़त लूटी जा रही थी, गले में टायर डाल किसी सिख भाई को चौक पर जलाया जा रहा था तो उसके घर में तेल छिड़क बाकी बचे परिवार को भी दरिंदे आग लगा रहे थे। हर और वहशी पागल कुत्ते सिख भाई-बहनों को नोच रहे थे। सरेबाज़ार सिख संपत्तियों को लूट कर उनमे आग लगायी जा रही थी। सिर्फ मौत थी…सिर्फ मौत।
अगले 4 दिनों में 10 हज़ार निर्दोष सिखों की निर्मम हत्याएं की गयी। 20 साल पंजाब आतंकवाद की चपेट में रहा। भारत के संविधान की हत्या होती रही पर सब खामोश थे, सरकार-विपक्ष खामोश थे, भारत का कानून मौन था, भारत की मीडिया खामोश थी, और तो और नपुंसक जनता भी मौन थी।
32 साल बाद भी आज तक दंगो में मरे सिखों के परिजनों को न्याय नही मिला है। टाइटलर, सज्जन जैसे बड़े नेता सरकार ने बरी कर दिए। CBI फिर कुछ ना कर सकी।
धिक्कार है !