आशीष आशी बिष्ट कि एक रचना :
ये अवार्ड भी ले लो , पुरस्कार भी ले लो ,
भले छीन लो मुझ से मेरी कहानी
मगर मुझको लौटा दो यूपीए के भ्रष्ट दिन ,
वो हवाला का पैसा , फ़्री का दाना पानी
वो चौरासी में सिखों का ख़ून बहाना ,
कश्मीरी पंडितों को बेघर बनाना ,
अबलाओं का उघड़ना , वो बच्चों का रोना ,
बेगुनाहों के ख़ून से , रंगा कोना कोना ,
ये अवार्ड भी ले लो ….
वो बुढ़िया जिसे सारे कहते थे मैडम ,
था जिसने बनाया इक पुतले को पीएम ,
वो पीएम जो करता था जम के घोटाले ,
उन घोटालों से मिलते हमें भी निवाले ,
ये अवार्ड भी ले लो ….
वो नार्थ ब्लॉक के जलवे , भागलपुर के बलवे ,
वो साउथ दिल्ली के बंगले , रणथम्भोर के जंगले
वो शराबों कबाबों की महफ़िलों के क़िस्से ,
तू ही बता अब बचा क्या हमारे हिस्से ,
ये अवार्ड भी ले लो …
टेलीफ़ोन पर राडिया की मीठी मीठी बातें ,
मिनिस्टरों को हमने दिखा दी औक़ातें ,
कहाँ है वो हलचल , वो गरमी कहाँ है ,
मुल्क के दलालों की बेशर्मी कहाँ है ,
ये अवार्ड भी ले लो ….
ये काहे का मोदी,और कौन सी जम्हूरियत ,
हमीं से जवाँ है इस मुल्क की हुकूमत ,
हैं जब तक हम ज़िन्दा चलेगी सियासत ,
लिखेंगे हमीं अब भी ग़रीबों की क़िस्मत ….
ये अवार्ड भी ले लो …