“जी रये, जागि रये,यो दिन और यो मास भेटनैं रय पनपिये, दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये।
हिमाल में ह्यूं छन तक, गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन
और यो मास भेटनैं रये। अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये, स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो।”
‘हरेला’ उत्तराखण्ड के आर्य किसानों का
कृषिवैज्ञानिक आविष्कार॥
हरेला बोने और काटने की परंपरा उत्तराखंड को हरित
क्रांति से जोड़ने वाले आर्य किसानों का भारतीय कृषि
विज्ञान के क्षेत्र में किया गया एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार है।…
‘हरेले’ के अवसर पर किसी बर्तन में सात तरह के बीज बोए
जाते हैं और फिर लगातार नौ दिन तक उन्हें पानी से सींचा
जाता है। बीजों से जो हरियाली उग आती है उसे ही हरेला
कहते हैं। इसी हरेला से लोग उस साल की फसल का अंदाजा
भी लगाते हैं। मान्यता है कि अगर हरेला लंबा है तो फसल भी अच्छी होगी। यानी फसल बोने से पहले ही लोग अनुमान
लगा लेते हैं कि मौसम साथ देगा या नहीं।