By Ravinder Padliya, Ninital : तुलसीदास जी ने कहा था “कोऊँ होवे नृप्प हमहुँ का हानि”. आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व कवि ने दस हजार वर्ष पहले की परिस्थिति के संदर्व में यह बात कही थी. उस समय केवल राजा और उसके दरबारी ही राजनैतिक व्यक्ति होते थे. लेकिन आज लगभग हर व्यक्ति ही राजनैतिक प्राणी हो गया है. अपनी प्रकृति के खिलाफ यदि कोई अराजनैतिक संस्था भी राजनैतिक व्यवहार करने लगे तो देश को नुकशान उठाना पड़ सकता है. विशेष कर जब वह जानबूझ कर किसी राजनैतिक पार्टी के पक्ष या विपक्ष में बोलता है तो देश को होने या हो सकने वाला नुकशान गंभीर भी हो सकता है. जी हाँ, मैं आजकल सर्वाधिक देखे जाने वाले समाचार चैनलों की ही बात कर रहा हूँ. यहाँ पर कुछ उदहारण देना आवश्यक हो जाता है. वर्तमान सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हो जाने के उपलक्ष में इन चैनलों का व्यवहार कुछ इस प्रकार है:-
१. एक चैनल किसानों की आत्महत्या पर इस प्रकार टिप्पणी करता है जैसे ये आत्महत्याएं वर्तमान सरकार के समय में ही हो रही हैं और पूर्ववत सरकारों के कार्यकाल में ऐसा कुछ भी नहीं होता था.
२. किसानों के लिए नया टीवी चैनल प्रारम्भ करने की खबर का विश्लेषण करते हुवे एक अन्य चैनल कहता है की वर्तमान सरकार ने किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया. तो क्या यह चैनल मानता है कि यह नया चैनल किसानो के भले के लिए नहीं है?
३. वर्तमान सरकार के द्वारा बहुत ही काम कीमत में दो लाख का बीमा उपलब्ध करवाये जाने के समाचार के साथ साथ एक चैनल कहता है कि वर्तमान सरकार ने गरीबों से वादे तो बहुत किये थे पर अब तक किया कुछ भी नहीं.
४. इसी प्रकार के एक चैनल को आपत्ति है कि अभी तक वर्तमान सरकार ने राम मंदिर क्यों नहीं बनाया? जैसे यह चैनल बहुत बड़ा राम भक्त हो.
५. पाकिस्तान ने सीमा पर अभी तक फायरिंग बंद क्यों नहीं की? कितनी अतार्किक बात है ऐसा कहना? लेकिन यह चैनल इस सत्य को नहीं बताता है कि अब भारतीय सेना भी मुहतोड़ उत्तर दे रही है जिसके पहले हाथ बंधे हुवे थे.
इसी प्रकार अनगिनित उदहारण हैं जो इन चैनलों कि पोल खोलते हैं. परन्तु देश की जनता के साथ साथ मुझे भी लगता है कि ये चैनल किसी व्यक्ति या राजनैतिक पार्टी का प्रचार कर रहे होते हैं. विशुद्ध रूप से जनता तक होने वाली घटनाओं कि खबर पहुँचाना ही समाचार चैनलों का कार्य है न कि खबर को बदइरादे से तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना.
वर्तमान सरकार एक ताकतबर और मजबूत इरादे वाली सरकार है जैसा कि पिछले एक वर्ष में देखने को मिला है. उसके गलत फैसलों की आलोचना तो होनी ही चाहिए परन्तु अच्छे कार्यों को सराहा भी जाना चाहिए. इसके साथ साथ उस बिल्ली की भी आलोचना होनी चाहिए जो सौ चूहे खा कर अब हज को जा रही है. उस बिल्ली को फूलों की माला न पहनाई जाये.