सुनील प्रभाकर : आजकल जो राजनीती चल रही है वह समझ से बाहर है,एक रिटायर्ड फौजी ने आत्महत्या कर ली,इतना तो निश्चित है के वो साधारण या मंदबुद्धि नहीं था अगर हम उसके रिटायर होने के बाद ग्राम पंचायत में कार्य को देखें और यदि मजबूर ना किया होता तो देश का सिपाही इतना बड़ा कदम नहीं उठाता। चाहे सरकारी कर्मचारियों ने तंग किया हो,उसके द्वारा ऐसा कदम उठाना या इसके लिए उसे मजबूर करना निंदनीय है।
विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को लपक लिया या यूं कहे कफ़न की राजनीती शुरू हो गई, दिल्ली पुलिस के जल्द बाजी कहे या ना तजुर्बेकारी,इसको हॉस्पिटल के काम में रूकावट का नाम दे कर मुद्दा और बड़ा कर दिया।
अपने आपको देश के भविष्य निर्माता बताने वाले कांग्रेस और आप नेता भी तवा प्रान्त ले कर पहुँच गए,आनन फानन में केजरीवाल जी ने 1 करोड़ रुपये और परिवार के सदस्य को नौकरी का एलान कर दिया,पहले तो सोचो की सुपर मुख्य्मंत्री जिन्हें लोकतंत्र का कला इतिहास लिखने के लिए बिठाया लेफ्टिनेंट गवर्नर वोह पैसा देने देंगे,उनके अपने कानून है की जनतंत्र की चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने देना,फिर केजरीवाल जी आपको इतना हक़ भी नहीं है लोगो के टैक्स से जमा खजाना इस तरह लुटाया जाये इतने पैसे में कई और मजबूर फौजियों की मदद हो सकती थी 1 करोड़ कम नहीं होते ऐसे रोजगार पैदा करो ,यह लोग औरो का सहारा बने,पहले ही आरक्षण ने हिन्दुस्तानियो को बेकार कर दिया है,राहुल जी को तो मौका चाहिए।
इसके बाद आते है हमारे भाजपा नेता और मंत्री इनका भी हाजम खराब है, सरकार की छवि बनाने के जगह बिगड़ने की कोशिश हमेशा रहती है,लोग चुप रहते हैं इसका मतलब यह नहीं वो बेवक़ूफ़ है,येही कारण है सत्ता सुख 5 साल से ज्यादा नहीं मिलता ,पब्लिक तो वही है फिर बदल क्यों जाती है संभल जाओ जनता में बहुत देश भक्ति है। धर्म भरष्टाचार और झूठ की राजनीती पर फिर कोई चाणक्य आएगा और लिखेगा।