जालंधर। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य तथा पर्यावरण दोनों एक दूसरे के परस्पर पूरक है कि उन्हें अलग करना कठिन है। पूरे सौर-मंडल में केवल हमारी पृथ्वी पर ही जीवन संभव है। परंतु यह तभी संभव रहेगा जब हम पर्यावरण को संरक्षित करेंगें। पर्यावरण अगर नष्ट हो जाएगा तो जीवन भी संभव नही होगा। भविष्य में धरती पर जीवन यापन करने के लिए हमें आज पर्यावरण को बचाना ही होगा। उपरोक्त शब्द ‘प्रकृति वंदन’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने फेसबुक पर लाइव सन्देश देते हुए कहे।
हरियावल पंजाब और हिन्दू आध्यात्मिक और सेवा फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में हुए इस कार्यक्रम में पंजाब के सभी जिलों के लगभग 60 हज़ार से भी अधिक परिवारों के ढाई लाख से अधिक सदस्यों ने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण व संवर्धन का संकल्प लेते हुए प्रकृति का वंदन किया।
इस कार्यक्रम के लिए प्रान्त के विभिन्न पंथ सम्प्रदाय व गुरुओं के आशीर्वचन तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों व मीडिया के सहयोग के लिए हरियावल पंजाब की तरफ से रामगोपाल जी ने उनका भी धन्यवाद् किया।
*सरसंघचालक जी ने अपने संबोधन में कहा कि पर्यावरण और मनुष्य परस्पर पूरक है, पर्यावरण की रक्षा का अर्थ है अपनी सुरक्षा। उन्होंने आगे कहा कि अस्तित्व के सत्य को हमारे पूर्वजों ने उसकी पूर्णता में समझ लिया था और तब से उन्होंने ये समझा, कि हम भी पूरे प्रकृति के एक अंग हैं। शरीर में जैसे शरीर के सब अंग काम करते हैं, तब शरीर चलता है और जब तक शरीर चलता है, तब तक ही शरीर का कोई अंग चल पाता है। शरीर, अंगों के कार्य पर निर्भर है और अंग शरीर से मिलने वाली प्राणिक ऊर्जा पर निर्भर है। यह परस्पर संबंध सृष्टि का हमसे है, हम उसके अंग हैं, सृष्टि का पोषण हमारा कर्तव्य है। अपनी प्राण धारणा के लिए हम सृष्टि से कुछ लेते हैं, शोषण नहीं करते, सृष्टि का दोहन करते हैं। यह जीने का तरीका हमारे पूर्वजों ने समझा और केवल एक दिन के नाते नहीं, एक देह के नाते नहीं तो पूरे जीवन में उसको रचा बसा लिया।*
उन्होंने आगे कहा कि पर्यावरण को बचाने का अर्थ है, हरियाली को बढ़ाना, वृक्षों की सुरक्षा करना और पर्यावरण को दूषित होने से बचाना। पर्यावरण की रक्षा के लिए हमे पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों की सुरक्षा करनी होगी। हमे वृक्षों, जानवरों, पक्षियों, पौधों और पानी को बचाना होगा। अगर समय रहते हम नहीं चेते और पर्यावरण को बचाने के बारे में नहीं सोचा तो, इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। आज के समय में हमारे वातावरण और जलवायु में बहुत से बदलाव हो रहें हैं। यह बदलाव पृथ्वी पर जीवन के लिए नुकसानदायक है। हमें अपने ग्रह को बचाने के लिए और मानव जीवन की सुरक्षा के लिए एक साथ काम करना होगा।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रसिद्ध गोसेवक संत स्वामी कृष्णनन्द जी ने अपने आशीर्वाद वचन में कहा कि गो माता भी प्रकृति का ही एक स्वरूप है उनकी सेवा भी भगवान की सेवा है। आज इस कार्यक्रम में हम सबने प्रकृति और गो सेवा का जो संकल्प लिया है उसे पूरा करने का सामर्थ्य हम सब में ईश्वर दें यही प्रार्थना है।