एन.जे.राव : क्रिकेट के भगवान् को सब कुछ मिलने के बाद कुछ और मिलना था तो भारत सरकार ने उसकी भी विधिवत घोषणा कर दी| सचिन के चाहने वाले खुश हैं, अच्छी बात है| उन्हें खुश होना भी चाहिए| पर, एक खेल प्रेमी के हिसाब से जब में सोचता हूँ, तो मुझे भारत सरकार का रवैय्या गलत लगता है| खेल प्रेमियों को सर्वाधिक हताशा तब हुई जब मेजर ध्यानचंद का नाम पहले न होकर क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर का नाम पहले आया| खेल प्रेमियों को अत्यधिक ख़ुशी होती जब हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के साथ-साथ सचिन तेंदुलकर का नाम भी लिस्ट किया जाता|
मेजर ध्यानचंद जिनकी हॉकी स्टिक के ड्रिब्लिंग और कलात्मक खेल को पूरी दुनिया ने देखा और सराहा| 1936 की बर्लिन ओलिंपिक में हिटलर जैसे तानाशाह भी ध्यानचंद की हॉकी का मुरीद हो गया था| भारत, 1928 से 1960 तक हॉकी का ओलिंपिक चैंपियन रहा और इसमें मेजर ध्यानचंद के योगदान को भारतीय कभी भुला नहीं सकते| यह भारतीय हॉकी का स्वर्णिम काल था और इसका अधिकाँश हिस्से में ध्यानचंद बतोर नायक शामिल रहे हैं| आज के दौर में इन बातों की कोई अहमियत नहीं है, लेकिन फिर भी समय की किताब में इस बात का लिखा जाना ज़रूरी है| भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है, इस बात को हमने सामान्य ज्ञान की किताबों में पढ़ा था, सूचना के अधिकार से खुलासा हुआ कि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल नहीं है|
क्रिकेट को जेंटलमेनों का खेल कहा जाता है| इस खेल के जनक और खेलने वाले ब्रिटिशर्स थे| इस देश के साम्राज्य के सूर्य को इतिहास के अतीत में किसी ने अस्त होते नहीं देखा| बिना शक कहा जा सकता है कि अपने गुलाम देशों में ब्रितानियों ने पूंजीवाद की स्थापना के साथ साथ ही क्रिकेट के रूप में भव्य पूंजीवादी मनोरंजन की स्थापना भी की, ताकि तब के राजे महाराजाओं के लिए शालीन मनोरंजन उपलब्ध हो सके| आज 65 साल बाद क्रिकेट का पूंजीवादी चरित्र पूरी तरह उजागर होकर सामने आ गया है| आईपीएल इसका सबसे बड़ा उदाहरण और सबूत है| आज भी क्रिकेट उन्हीं देशों में खेला जाता है, जो कभी ब्रिटेन के उपनिवेश रहे| ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, वेस्ट इंडीज, अविभाजित भारत में इंग्लैंड के सफेदपोश संपन्न तबके ने क्रिकेट की लोकप्रियता को अपने गुलामों के दिलो-दिमाग में रोपित किया|
एक समय था जब इस खेल को जेंटलमेनों का ही खेल कहा जाता था क्योंकि आम आदमी न तो इसके लम्बे चौड़े खर्चे को बर्दाश्त कर सकता था और न ही उसके पास जाया करने को इतना समय ही रहता था| कहने को जेंटलमेन खेलते थे लेकिन सारी कूटनीति के लक्षण और गुर अंग्रेजो ने अपनी जीत के लिए सीखे और दुनिया को सिद्धान्तः सिखलाये| आमिर खान की फिल्म लगान में इस अंग्रेजी खेल की राजनीतिक कूटनीतियों की बारीकी को खूबसूरत तरीके से फिल्माया गया| इस फिल्म ने इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विदेशी फिल्मो के केटेगरी में मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे के बाद अपनी धमाकेदार एंट्री की, यद्यपि, आमिर वांछित पुरस्कार नहीं प्राप्त कर पाए| अंग्रेजी हुकूमत ने जिन देशों को यह खेल सिखाया और कालांतर में उनकी गुलामी के चंगुल से निकलने के बाद उन्हीं देशों के खिलाडियों ने जब उनका बैंड बजाना शुरू किया तब इतिहास बॉडी लाइन सीरीज से कलंकित हुआ| जीतने के लिए फेयरगेम, फेयरप्ले के सिद्धांतो को धता बताकर स्लेजिंग, बल्लेबाजों को चोटिल करना, नग्न होकर मैदान में दर्शकों के समक्ष दौड़ना इत्यादि इसी जेंटलमेन खेल क्रिकेट की देन है |
भारत रत्न दिए जाने के लिए व्यक्तियों के चुनाव को लेकर हमेशा ही विवाद रहा है| विशेषकर अनेक ऐसे राजनीतिज्ञों को भी ये पुरस्कार दिया गया है, जिसका औचित्य समझ से बाहर है| पर, दो बार यह सीधे सीधे विवाद में आया| पहली बार तब, जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गयी पर इस पर दाखिल पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी| दूसरी बार, भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी अबुल कलाम आज़ाद के लिए भारत रत्न की पेशकश की गई तब अबुल कलाम आज़ाद ने लेने से इनकार इस वजह से किया कि चयन समिति में स्वयं रहकर सर्वोच्च सम्मान कैसे लें? 1992 में अबुल कलाम आजाद को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया| यह सीधे सीधे तीसरी बार होगा, जब क्रिकेट के मीडिया निर्मित भगवान सचिन को भारत रत्न दिए जाने का चयन, विवाद को आमंत्रित करेगा| उसकी वजह भी साधारण नहीं है, 19 जुलाई 2013 को खेल मंत्री ने प्रधानमंत्री को हॉकी के लीजेंड मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने के लिए पत्र लिखा| पर, खेल मंत्री के उस सिफारिश पर न तो कोई सरकारी प्रतिक्रिया आई और न ही बाद में खेल मंत्रालय या खेल मंत्री ने इस पर कोई आगे पहल की|
पिछले तीन वर्षों से सचिन को भारत रत्न देने के लिए मीडिया, क्रिकेट कारपोरेट और राजनीतिज्ञों की एक लाबी काम कर रही थी| पर, चूँकि ध्यानचंद पर कोई निर्णय नहीं हुआ था, इसलिए कयास यही लगाया गया कि भारत रत्न देने की अवधारणाओं में खेल शामिल नहीं है, इसलिए अभी यह पुरस्कार किसी खिलाड़ी को नहीं दिया जाएगा| खेलों में भारतरत्न देने की नीति कब बनी और इसकी घोषणा कब हुई, यह कोई नहीं जानता| यद्यपि, ऐसा कोई निर्धारण करने से पहले सरकार को इसे पब्लिक डोमेन में चर्चा के लिए अवश्य रखना था, क्योंकि सचिन के लिए तीन वर्षों से चल रही चर्चा के कारण यह विषय समर्थन और विरोध दोनों का हो गया था| चलो ऐसा नहीं हुआ, कोई बात नहीं, पर जब किसी खिलाड़ी को भारत रत्न देने का सवाल आया तो हॉकी के महानायक ध्यानचंद को क्यों छोड़ दिया गया, यह किसी की भी समझ से परे है|
खेलों में फिक्सिंग के प्रकरण सिर्फ क्रिकेट में देखे गए है | फटाफट 20-20 क्रिकेट इंडियन प्रीमियर लीग से इंडियन पोलिटिकल लीग की फटाफट खेल रन-नीति (रणनीति) से क्रिकेट के खेल प्रेमी अवश्य प्रसन्न होंगे क्योंकि इस देश में खेल के भगवान को देश का सर्वोच्च सिविलियन सम्मान दिया गया है| कारण स्पष्ट है “तुझमें रब दिखता है यारा मैं क्या करूँ”| मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि कुछ ही दिनों में मीडिया और क्रिकेट कारपोरेट के पंडित भारत सरकार या बीसीसीआई से मांग करने लगें कि जिस तरह इतिहास का उल्लेख ईसा पूर्व अथवा ईसा के बाद से जाना जाता है, अब भगवान के रिटायर होने के बाद क्रिकेट का इतिहास “सचिन से पूर्व (BS) और सचिन के बाद (AS)” से जाना और लिखा जाए|
रिकार्ड बनाने में माहिर सचिन ने दो और रिकार्ड बनाये हैं| देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले अनेक बहादुरों को यह मरने के अनेकों साल बाद मिला और सचिन को रिटायरमेंट लेने के दूसरे दिन, सबसे कम उम्र में मिला| तो, एक रिकार्ड और बन गया| जिस देश में रिटायर्ड होने के बाद एक बाबू को अपने भविष्यनिधी के पैसों को पाने के लिए अपनी बची जिन्दगी का आधा हिस्सा गुजारना पड़ता हो, वहां दूसरे दिन भारत रत्न की घोषणा होना रिकार्ड तो है ही| दूसरा रिकार्ड भी साथ-साथ ही बना है| हिंदुस्तान के राजनीतिक इतिहास में पहली बार किसी राज्यसभा सांसद को “भारत रत्न” की उपाधि से पहली बार नवाज़ा गया है, “न भूतो न भविष्यति” का सिद्धांत संभवतः ईश्वर के लिए ही लागू होता है|