ललित मोहन, मुंबई, 9 मार्च 2012. हिंदी फिल्मों के सुहाने युग का हिस्सा रहे, 1960 के दशाक के अभिनेता, जॉय मुखर्जी गुज़र गए हैं. उन्होंने ने ‘हमसाया’, ‘एक मुसाफिर एक हसीना’, ‘लव इन शिमला’, ‘लव इन टोक्यो’ और ‘शागिर्द’ जैसी कई यादगार फिल्मों में अभिनय किया.
उनके हिस्से में हिंदी फिल्मों के स्वर्ण युग का बेहतरीन संगीत भी आया. उन पर फिल्माए गए कुछ कर्णप्रिय गीत इस प्रकार हैं- फ़िल्म; ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ – ‘हमको तुम्हारे इश्क ने क्या-क्या बना दिया जो कुछ न बन सके तो तमाशा बना दिया’, ‘फिर तेरे शहर में लुटाने को चला आया हूँ’, ‘बहुत शुक्रिया बहुत मेहरबानी मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आए’, फ़िल्म; फिर वही दिल लाया हूँ- ‘बंदा परवर थाम लो जिगर बन के प्यार फिर आया हूँ’, ‘लाखों हैं निगाह में ज़िंदगी की राह में’, फ़िल्म; ‘शागिर्द’- ‘बड़े मियाँ ऐसे न बनो हसीना क्या चाहे हमसे सुनो’, ‘दुनिया पागल है या फिर में दीवाना’
जॉय मुखर्जी अभिनेता अशोक कुमार व गायक-अभिनेता किशोर कुमार के भांजे, अभिनेता शोमू मुखर्जी के रिश्ते के भाई और अभिनेत्री काजोल, रानी मुखर्जी और निर्देशक अयान मुखर्जी के ‘अंकल’ थे. वह काफी समय से बीमार चल रहे थे. उनके जाने से हिन्दी फिल्मों के स्वर्ण युग का एक और चिराग बुझ गया. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे!
धन्यवाद!
हिंदी फिल्म उद्योग की सुनहरे दौर की बुज़ुर्ग पीढ़ी ज़र्द हुए पत्तों की तरह ज़िंदगी के पेड़ से जुदा हुई जा रही है..एक तरफ ग़म और नम आँखें हैं तो दूजी तरफ वो अमरता जो वे अपनी यादगार कलाकारी से सदा के लिए अमर्त कर गए हैं. एक बार फिर, ललित जी को सहृदय धन्यवाद श्रद्धांजली लेखन के लिए!