विजय तिवारी, भवाली नैनीताल, उत्तराखणड : आज प्रसिद्द लोक पर्व ”हरेला/हर्याव का पावन दिवस है। इस पर्व की आप सभी को हार्दिक व अनन्त शुभकामनायें। उत्तराखंड में मनाये जाने वाले त्यौहारों में एक प्रमुख त्यौहार है हरेला यह कर्क संक्रांति को मनाया जाता है। वैसे यह त्यौहार हर वर्ष सोलह जुलाई को होता है।पर कभी कभी इसमें एक दिन का अंतर हो जाता है।
इस पर्व के लिये आठ दस दिन पहले घरों में पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछा कर सात प्रकार के बीज जैसे- गेंहूँ, जौ, मूँग, उरद, भुट्टा, गहत, सरसों आदि बोते हैं और नौ दिनों तक उसमें जल आदि डालते हैं। बीज अंकुरित हो बढ़ने लगते हैं। हर दिन सांकेतिक रूप से इनकी गुड़ाई भी की जाती है हरेले के दिन कटाई। यह सब घर के बड़े बुज़ुर्ग या पंडित करते हैं।
पूजा नैवेद्य आरती का विधान भी होता है। कई तरह के पकवान बनते हैं। इन हरे-पीले रंग के तिनकों को देवताओं को अर्पित करने के बाद घर के सभी लोगों के सर पर या कान के ऊपर रखा जाता है घर के दरवाजों के दोनों ओर या ऊपर भी गोबर से इन तिनकों को सजाया जाता है। कुँवारी बेटियां बड़े लोगो को पिठ्या (रोली) अक्षत से टीका करती हैं और भेंट स्वरुप कुछ रुपये पाती हैं। बड़े लोग अपने से छोटे लोगों को इस प्रकार आशीर्वाद देते हैं।
जी रया जागि रया
आकाश जस उच्च, धरती जस चाकव है जया
स्यावै क जस बुद्धि, सूरज जस तराण है जौ
सिल पिसी भात खाया जाँठि टेकि भैर जया
दूब जस फैलि जया…
दीर्घायु, बुद्धिमान और शक्तिमान होने का आशीर्वाद और शुभकामना से ओतप्रोत इस गीत का अर्थ है- जीते रहो जागृत रहो। आकाश जैसी ऊँचाई, धरती जैसा विस्तार, सियार की सी बुद्धि, सूर्य जैसी शक्ति प्राप्त करो। आयु इतनी दीर्घ हो कि चावल भी सिल में पीस के खाएँ और बाहर जाने को लाठी का सहारा लो,दूब की तरह फैलो. हरेले के दिन पंडित भी अपने यजमानों के घरों में पूजा आदि करते हैं और सभी लोगो के सर पर हरेले के तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। लोग परिवार के उन लोगों को जो दूर गए हैं या रोज़गार के कारण दूरस्थ हो गए हैं उन्हें भी पत्रद्वारा हरेले का आशीष भेजते हैं.