शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
शिष्य
मूलतः गुरु से 4 प्रमुख प्रश्न पूछता है
और उसका समाधान चाहता है
प्रथम : कौन शिव सत्ता है ?
दूसरा : जिसके वाणी से कर्मेन्द्रिय और चक्षु अपना अपना कार्य करते है
तीसरा : उन्हें अपने कार्य में प्रवृत्त करने वाला सर्वशक्तिमान चेतन है ; वह कैसा है और यह मन किस प्रेरणा से संसारिक विषयो पर टूट पड़ता है ?
इसका उत्तर जानने के लिए
केनोपनिषद का ज्ञान होना आवश्यक है ||
अतः इस उपनिषद के अनुसार
जो मन का भी मन है
अर्थात कारण है
प्राण का प्राण है
वाक् इन्द्रिय का वाक् है
श्रोत्र इन्द्रिय का श्रोत्र है
चक्षु इन्द्रिय का चक्षु है
वही प्रेरक परमात्मा है ||
ज्ञानीजन इसे जानकर इन्द्रियों को विषय वासनाओं से हटा देते है
और मृत्यु के पश्चात भी अमृत हो जाते है ||
शिष्य के प्रश्नो का सक्षिप्त उत्तर
जो श्रोत का श्रोत है
जो मन प्राण और इन्द्रियों एवं समस्त जगत का परमकारण है
जिससे यह सब शक्तियां मनुष्य में उत्पन्न हुई है
जिस शक्ति को पाकर सभी अपना अपना कार्य कर रहे है
परब्रह्म ही इन सबका प्रेरक है ||
जो इस बात को समझ लेता है वह इस लोक से प्रयाण करने बाद भी अमृत स्वरूप होकर अपने जीवन को पूर्ण बना देता है ||