चंडीगढ़ : संवत 2073 ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि शनिवार कृतिका नक्षत्र सुक योग शश नामकरण 11.45 के बाद अमावस्या प्रारंभ 4 जून 2016 को वट सावित्री व्रत व शनि जयंती का पर्व मनाया जाएगा । जेष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या को वट सावित्री व्रत मनाया जाता है । इस दिन बड़ के पेड़ की सत्यवान और सावित्री की यमराज सहित पूजा करनी चाहिए या ब्रत केवल औरतों को ही करना चाहिए । उन्हें 1 थाल में जल रोली मोली हल्दी रखे एवम् कच्चे सूत से बड़ के पेड़ को लपेटें फिर उसकी पूजा करें । एवं अपने अखंड सोभाग्य के लिए वट सावित्री व्रत कथा करनी चाहिए या सुननी चाहिए ।
वट सावित्री व्रत कथा
मद्र देश के राजा अश्वपति के पुत्री रुप में सर्वगुण संपन्न सावित्री का जन्म हुआ । राजकन्या ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पति रूप में बरण कर लिया इधर यह बात जब ऋषिराज नारद को ज्ञात हुआ तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे आप की कन्या ने वर खोजने में निसंदेह भारी भूल किया है सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा भी है परंतु वह अल्प आयु है और 1 वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी .. नारद की यहा बात सुनते ही राजा अश्वपति उदास हो गए ..।वृथा न होहि देव ऋषि वाणी …। ऐसा विचार करके उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है इसलिए कोई अन्य बार चुन लो इस पर सावित्री बोली पिताजी आर्य कन्यायें अपना पति एक बार ही वरण करती है अब चाहे जो हो मैं सत्यवान को ही वर स्वरूप स्वीकार करूंगी । सावित्री ने नारद से सत्यवान की मृत्यु का समय मालूम कर लिया था । अंतोगत्वा उन दोनों का पानी ग्रहण संस्कार में बांधा गया सावित्री ससुराल पहुंचते ही सास ससुर की सेवा करने लगी समय बदला दुश्मन राजा ओ ने राज्य क्षिन लिया सास-ससुर नेत्रहीन हो गई नारद का वचन सावित्री को दिन प्रति दिन अधीर करता रहा उसने जब जाना कि पति के मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है तब 3 दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया नारद द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पित्रों का पूजन किया नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला सावित्री साथ चलने को तैयार हो गई सत्यवान बन में जाकर लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़ गया पेड पर चढ़ते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वृक्ष के ऊपर से नीचे उतर आया सावित्री ने सत्यवान को अपनी गोद में बैठा लिया उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यंत प्रभावशाली महिषासुर यमराज ने उसे श्रीदेवी विधान सुनाया परंत उसकी निष्ठा देकर वर मांगने को कहा सावित्री ने सावित्री ने सावित्री ने तीन वरदान मांगे प्रथम मेरे सास-ससुर की आंखें ठीक हो जाएं दूसरा वरदान हमारा राजपाठ मिल जाए मेरे पति को आप मृत्यु के मुख से लौटा दे यमराज दो वरदान देने के लिए तैयार हो गए परंतु तीसरा वरदान देने को मना कर दिया यमराज ने कहा सावित्री आपको वरदान लेकर चले जाइए परंतु सावित्री नहीं मानी और यमराज के साथ में अपने पति के पीछे पीछे चली गई और यमराज से सावित्री बोली आपने मुझे पुत्रवती का वरदान दिया परंतु आप तो मेरे पति को अपने साथ ले जा रहे सावित्री को यह वरदान देकर जब यमराज को अपनी भूल का ज्ञात्वा हुआ तो सत्यवान का जीवन वापस कर दिया सावित्री को यह वरदान देकर धर्मराज अंतर्ध्यान हो गये सावित्री वटवृक्ष के नीचे आई जहाँ पति का मृत शरीर पड़ा था ईश्वर की कृपा से जीवन सत्यवान उठ गये दोनों हर्ष से प्रेम आलिंगन करके अपनी राजधानी लौट गई तथा माता पिता को भी दिव्य ज्योति मिल गई इस प्रकार सावित्री सत्यवान चिरकाल तक राज्य का सुख भोगकर के अंतिम समय तक सुख भोग कर वैकुठ चले गए जो पतिव्रता स्त्री वट सावित्री का व्रत भक्ति और श्रद्धा के साथ में प्रेम से विश्वास के साथ में व्रत करती है उसकी पति की लम्बी आयु होती है और वह हमेशा सोभाग्यवती होती है अंतिम समय में अपने पति के साथ बैकुंठ में निवास करती है