डॉक्टर हर्षद पंडित : पश्चिम के देशों ने आधुनिकता एवं शोध के नाम पर भारत में भयंकर भ्रामकता खडी कर दी है । भ्रामकताओं पर चर्चा करने के पूर्व योरप एवं अमरिका की वास्तविकता समझ लेनी चाहिए ।
योरप, अमरिका में वर्ष में ८ महिने बर्फिला वातावरण होता है । शेष चार महीनें में भी ऋतु कब बिग‹डेगी यह
निश्चित नहीं होता । सूर्य कभी-कभार ही दिखाई देता है । खि‹डकियाँ और दरवाजे खुले रखना संभव नहीं अतः खुंली हवा
का आना-जाना नहीं होता । छोटे-ब‹डे सभी की दशा कैदखाने के कैदी जैसी होती है । कार के बिना बाहर जाना संभव
नहीं । बर्फिले वातावरण के कारण ताजे फल और सब्जियाँ उगते नहीं है । ताजा भोजन मिलता नहीं है । घर की
गरमागरम रसोई सहज नहीं है । परिणामतः डिब्बे में बंद बासी और प्रिजर्वेटिववाली खुराक पर जीना प‹डता है । यह उनकी
मजबूरी है । ताजे कुदरती खुराक की कमी, जंक फूड पर जीना, सूर्य प्रकाश का अभाव तथा खुली हवा के अभाव में
उनकी रोगप्रतिराक शक्ति कमजोर है । कृत्रिम दवा पर जीना प‹डता है ।
हमारे यहाँ कुदरत की मेहरबानी है । तीन ऋतुएँ हैं, पूर्ण सूर्यप्रकाश एवं घर में हवा का आना-जाना है । ताजे,
कुदरती एवं प्रत्येक ऋतु के फल और सब्जियाँ हर समय मिलते हैं । घर में भी गरमागरम ताजी रसोई मिलती है ।
सुव्यवस्थित दिनचर्या है । परिणाम स्वरूप हमारी रोग प्रतिकारक शक्ति ऊँची है । असंख्य कुदरती घरेलु उपाय तथा ‘रसोई-घर ही औषधालयङ्क जैसी सुविधा है । दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, मामा-मामी इत्यादि के अनुभवों का लाभ मिलता है । अब हम जो भ्रामकता फैली है उसे क्रमशः देखेंगे ।
भ्रामकता (१) : विटामिन्स
विटामिन-इ उोश्रिशु तथा तळीं. उ पानी में द्राव्य हैं और इन विटामिनों का महदंश भोजन पकाने से, गरमी से,
प्रकाश से तथा हवा से अस्थिर हो जाता है । यह विटामिन्स एसिड तथा आल्कलाइन झक में अस्थिर होते हैं ।
हमारे मुँह की लार आल्कलाइन झक है । पेट के अन्दर जठर का एसिड झक है जठर के तुरंत बाद शुरू होने वाले
आंत में आल्कलाईन झक है । अगर यह विटामिन आल्कलाइन झक में अस्थिर होता है तो शरीर के आल्कलाइन में
अस्थिर क्यों नहीं होता ? शरीर में वह कैसे हजम (शोषण) होता है ?
* हमारे शरीर में रहे उपयोगी बेक्टेरिया, यिस्ट इत्यादि विटामिन्स को बनाते हैं । यह बेक्टेरिया अन्य कई तरह से भी
शरीर को उपयोगी हैं ।
* हमारे यहाँ जरूरी विटामिन्स/मिनरल्स कुदरत द्वारा प्रत्येक ऋतु के फलों और सब्जियों में तथा दही, छाछ इत्यादि
में से मिलते ही हैं । अतः अकुदरती (कृत्रिम) विटामिन्स की गोलियाँ लेने का सवाल ही ख‹डा नहीं होता ।
* हमारा आयुर्वेद हजारों वर्ष से कह रहा है कि शरीर के पांचनतंत्र को व्यवस्थित रखेंगे तो जीवनभर तंदुरस्त रहेंगे ।
* विटामिन अऊएघ चरबी में द्राव्य विटामिन्स हैं, हमारा शरीर इसका संग्रह भी करता है । यह विटामिन १-२ महिने ना मिले तो भी उसकी कमी तत्काल महसूस नहीं होती । यह विटामिन हमारे यहाँ मिलनेवाले ताजे फल और सब्जियों में तथा दूध, दही, छाछ आदि में भी मिलते हैं । विटामिन अगर अधिक मात्रा में शरीर में ब‹ढ जाए तो भी नुकसान होता है । जैसे शरीर के बाल झ‹ड जाते हैं । हड्डियाँ अकारण ब‹ढने लगती हैं या अत्यंत सख्त हो जाती है । गर्भ से रक्तस्राव होने लगता है । पेट में लिवर पर सूजन आ जाती है । हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए की शरीर में विटामिन्स की मात्रा ब‹ढ ना जाये, वरना जहरीली असरें होंगी अतः समझे बिना अकुदरती-कृत्रिम
विटामिन्स क्यों लें ?
टिप्पणी :
(१) रिफाइन तेल (जो पेट्रोकेमिकल के द्वारा रिफाइन होता है) तथा वेजिटेबल घी, दोनों हमारे शरीर में चरबी द्राव्य
विटामिन्स का शोषण (हजम) नहीं होने देते । अवरोध उत्पन्न करते हैं ।
२
(२) घर का ताजा खाना छो‹ड हम जो पेqकगवाला फूड खाने लगे हैं (मेगी, टोेटो केचप इत्यादि), परन्तु हम जानते
नहीं है कि उसमें रहे प्रिझर्वेटिव केमिकल हमारे पाचन तंत्र के उपयोगी बेक्टेरिया का नाश करते हैं जो हमारी
तंदुरस्ती तथा पाचन के लिए आवश्यक हैं । परिणाम स्वरूप अपच, कब्ज, एसीडीटी आदि होते हैं ।
भ्रामकता (२) : मिनरल्स (क्षार)
केल्शियम : दही, छाछ, दूध, मूली, पालक, मेथी, तिल इत्यादि में से केल्शियम मिल जाता है । विटामिन ऊ
सूर्यप्रकाश में से पूर्ण मात्रा में मिल जाता है । जहाँ पूर्ण सूर्यप्रकाश हो वहाँ के लोगों में विटामिन ऊ की खामी नहीं होती ।
इसके लिए चूने का पानी भी बहुत उपयोगी है । आयर्न (लोह) शरीर को हररोज १ ास से अधिक नहीं चाहिए । इतना
लोह तत्त्व तो दलहन, हरेपत्तेवाली सब्जियाँ, सूखे फल, हाथ से तैयार किया गया अनाज, गु‹ड आदि में से मिल जाते हैं ।
हमारा शरीर अधिक से अधिक १४ ास से ज्यादा लोहतत्त्व का शोषण नहीं करता ।
टिप्पणी :
(१) मिनरल्स का अधिक उपयोग हानिकारक है ।
(२) अधिक मिनरल्स और विटामिन्स कितने हानिकारक यह दर्शाया नहीं जाता । इनके न लेने के कारण क्या-क्या
तकलीफें होगी यह बिनचूक और आग्रहपूर्वक कहा जाता है ।
भ्रामकता (३) : टॉनिक
बोर्नविटा, कॉम्प्लान, बूस्ट, प्रोटिनेक्स इत्यादि को दूध में डालकर लेने को कहा जाता है । दूध स्वयं एक संपूर्ण
टॉनिक है । उसमें ऐसे बासी, प्रिझर्वेटिववाला महँगा टॉनिक डालकर दूध की ताकत क्यों कम करें ? उसके बदले खजूर,
बादाम इत्यादि से दूध की ताकत ब‹ढाई जा सकती है ।
भ्रामकता (४) : प्रिडायजेस्टेड प्रोटिन
प्रोटिनेक्स, प्रोटिन्युल इत्यादि की १०० ग्राम की कीमत रु. १२०/- से अधिक है । यह भी प्रिझर्वेटिव तथा अन्य
केमिकल से युक्त होता है । इसके बदले प्रिझर्वेटिव रहित ताजे दही, छाछ, मठ्ठा, पनीर आदि मामूली कीमत पर हमारे यहाँ
मिलते हैं । इसके उपरांत गुजराती ‹ढोकला, इडली, ढोसा (डोसा) इत्यादि प्रिडायजेस्टेड प्रोटिन ही है । महंगी, बासी,
लेक्टोबेसिल्स केपस्युल्स या प्रोटिन तथा विटामिन की केपस्युल्स की जरूरत नहीं है । ताजा सस्ता दही, छाछ आदि
उपयोगी लेक्टोबेसिल्स से तो भरपूर है ही उसके उपरांत भी अन्य उपयोगी और जरूरी टॉनिक उसमें उपलब्ध है ।
भ्रामकता (५) : रिफाईन खुराक
रिफाईन प्रत्येक चीज के लिए सात्त्विक नहीं है । वह उपयोगी विटामिन, क्षार, प्रोटिन इत्यादि तत्त्वों का भी नाश
करता है । शक्कर के बदले गुड, रिफाईन के बदले कोल्हू का तेल या फिल्टर किया हुआ तेल का उपयोग करना चाहिए ।
हानिकारक बेजिटेबल घी क्यों खाएँ ? उसके बदले शुद्ध घी खाएँ, तिल का तेल खाएँ जो बहुत ही उपयोगी रहेगा ।
रिफाइन नमक के बदले समन्दर का नमक खाना चाहिए । सिन्धालूण (सैंधव-काला नमक) खाना चाहिए जो सस्ता भी है
और अनेक उपयोगी क्षारों (ाळपरीरश्री) से युक्त है । महंगे रिफाइन नमक में मात्र सोडियम क्लोराइड होता है । जिससे
रक्तचाप (इ.झ.) को ब‹ढा सकता है । कुदरती नमक में अन्य क्षारों के अतिरिक्त मेग्नेशियम एवं पोटेशियम होते हैं जिससे
रक्तचाप (इ.झ.) ब‹ढने का सवाल ही नहीं होता ।
भ्रामकता (६) : एन्टीओक्सिडन्ट
ओेगा ६ हमारे यहाँ सहज प्राप्य है । लगभग तमाम रंगीन साग-भाजी एन्टीओक्सिडन्ट युक्त है । हमें तो यह ध्यान
रखना चाहिए कि एन्टीओक्सिडन्ट अधिक तो नहीं हो रहे ? केमिकल एवं प्रिजर्वेटिववाला बासी महंगा पेकेजफूड खाकर
कैंसर, डायाबिटीस (मधुप्रमेह), किडनी (गुर्दा, वृक) आदि असंख्य रोगों को नियंत्रण क्यों दें ? बासी फूड पैकेट जब हम
यात्रा-प्रवास में हों तथा अन्य कोई विकल्प न हो तब ही खाना चाहिए । कभी-कभी घर में माता, बहन, पत्नी, बेटी
उपस्थित न हो ऐसी स्थिति में, या घर में कोई पकाने वाला न हो ऐसी स्थिति में खाना प‹डे तो बात अलग है । योरप
और अमरिका में वयस्क बालक माता-पिता के साथ नहीं होते, पत्नी खाना पकाए ऐसा कोई रिवाज वहाँ नहीं है तथा
३
इतना समय भी वहाँ नहीं होता । अतः उनको मजबूरन बासी और प्रिझर्वेटिववाला खुराक खाना प‹डता है ।
टिप्पणी :
(१) हमारे यहाँ हमें प्रतिदिन ताजे फल तथा साग-सब्जियाँ मिलते हैं तब हम बासी तथा प्रिजर्वेटिववाला टोेटो-
केचअप, जाम, शरबत आदि खाकर तबियत क्यों बिगा‹डे ?
(२) बालकों को दूध में टोनिक डालकर देने के बदले बादाम, पिस्ता, खजूर, इलाइची (एलाइची) डालकर देना चाहिए ।
शीरा, सुखडी आदि देने चाहिए ।
चाकलेट, पीपरqमट आदि महंगे और हानिकारक हैं उसके बदलेसुखा-मेरवा, खजूर, खारीशींग, मूंगफल्ली के छूआरे,
किशमिश, भूंजेचने, इत्यादि जो ताजे और टॉनिक युक्त होते हैं देने चाहिए । मैगी के बदले आलूपोहा बना देने चाहिए जो
दो मिनट में बनते हैं ।
भ्रामकता (७) : नमक
‘नमक से रक्तचाप (इ.झ.) ब‹ढ जाएगा तथा नमक हृदय के लिए हानिकारक है ।ङ्क
शोध (ीशीशरीलह) के नाम पर पश्चिम ने यह भ्रामकता फैलाई है ।
भ्रामकता का निवारण
दो वर्ष पहले योरप में ३६०० लोगों पर शोध कार्य हुआ । जिसमें ग्रुप १ में कम नमक खानेवालों में से ५० लोगों
को हार्टएटेक आया जबकि ग्रुप २ में योग्य मात्रा में नमक खानेवालों में से २४ लोगों को हार्टएटेक आया और ग्रुप ३ में
अधिक नमक खानेवाले में केवल १० लोगों को ही हार्टएटेक आया । निष्कर्ष यह निकला कि कम नमक खानेवालों से
योग्यमात्रा में नमक खानेवालों में से ५०% कम लोगों को हृदय रोग हुआ और जो अधिक नमक का सेवन करते थे उन
में केवल १२% लोगों को ही हृदय रोग हुआ । अंतिम निष्कर्ष यह निकला कि नमक हृदय के लिए हानिकारक नहीं है ।
फायदेकारक है । ३० वर्षों से जो झूठ फैलाया गया था वह सबके सामने आ गया । इसका एक अर्थ यह भी हुवा कि
हमारे यहाँ हृदय रोग से ३० लाख में जो मृत्यु हुई उसमें से ५० से ८०% लोग नमक का योग्य उपयोग करके बच गए
होते । क्योंकि हमारे यहाँ अचार, चटनी, पाप‹ड, नमकिन आदि में सहज ही नमक ज्यादा पडता है । पश्चिम का शोधकार्य
सही ही होता है यह गलत मान्यता है क्या यह समझाने की अब जरूरत है ? आयुर्वेद हजारों वर्ष से कहता है कि नमक
हृदय के लिए हितकारी है । हम तो रिफाइन नमक खाते हैं वह रक्तचाप (इ.झ.) ब‹ढा सकता है क्योंकि उसमें केवल
सोडियमक्लोराइड ही है । सिन्धालूण (सैन्धव) में ८४ तत्त्व है जो कैंसर में उपयोगी होने की संभावना है । सादे नमक में
मैग्नेशियम और पोटेशियम क्षार होने से वह रक्तचाप (इ.झ.) ब‹ढने नहीं देंगे । इन क्षारों का गुण खून को पतला करने का है
जबकि एटेक तो खून घट्ट हो तब आता है, ऐसा कहा जाता है ।
टिप्पणी : नमक का अतिरेक हानिकारक नहीं है ।
भ्रामकता (८) : आयोडिन
आयोडिन एक महत्त्वपूर्ण क्षार हैैं । उसके अभाव में अनेक तकलीफें होने की संभावना है । अतः आयोडिन युक्त
नमक ही खाइए ।
भ्रामकता का निवारण
आयोडिन अगर शरीर में ब‹ढ गया तो क्या होगा यह कोई बताता नहीं है । हमारे देश में आयोडिन की कमी नहीं
है । आयोडीन समंदर के पानी में से मिलता है । हमारे देश की तीन ओर समंदर है । आयोडिन ऐसा रसायण है जो गरमी
सहन नहीं कर सकता । जब गरमी लगती है तब वह उ‹ड कर आकाश में जाता है । वहाँ बादलों के साथ मिलकर बारिस
के द्वारा पूरे देश में छि‹डक जाता है । वहाँ से वह साग-सब्जी के द्वारा हमें मिलता है । शरीर में आयोडिन की जरूरत
अति अल्प होती है । हमें तो रिफाइन्ड नमक मिलता है उसमें १० किलोग्राम नमक में १ ग्राम सोडियम/पोटेशियम
आयोडाईज छि‹डका जाता है । मतलब कि १० कि.ग्रा. नमक में ७६ मि.ग्रा. आयोडिन छि‹डका जाता है । आयोडिन गरमी
सहन न कर सकने के कारण हमारे पास आए तब तक तो वह काफी मात्रा में उ‹ड जाता है । सबसे ब‹डी बात यह है कि
हम नमक का उपयोग उबलते दाल-सब्जी में करते हैं । तो क्या वहाँ आयोडिन उ‹ड नहीं जायेगा ?
४
भ्रामकता (९) : कोलेस्ट्रोल
कोलेस्ट्रोल से हार्टएटेक आता है ।
भ्रामकता का निवारण
कोलेस्ट्रोल के बिना जीवन संभव नहीं । हमारे शरीर का प्रत्येक कोष (मांसपेशी-लशश्रश्र) कोलेस्ट्रोल बनाता है । तीन
वर्ष तक घी तेल इत्यादि खाया न हो और फिर जाँच कराए तो भी कोलेस्ट्रोल तो आएगा ही । शरीर में चरबी के अनेक
कार्य हैं । उसके बिना चलनेवाला नहीं है ।
अमरिका में ५००० ओपन हार्ट सर्जरी करनेवाले डॉ. ड्वाईट लुन्डेले हृदयरोग विशेषज्ञ हैं तथा हृदयरोग के बारे में
आथोरिटी माने जाते हैं । आप गत २५ वर्ष से ओपन हार्ट सर्जरी से जु‹डे हैं । डॉ. ड्वाईट लुन्डेले ने कबूलातनामा जैसा
निवेदन देकर स्वीकार किया है कि हृदयरोग कोलेस्ट्रोल से होता है यह मेरी धारणा गलत है । मैंने अपने मरीजों को
कोलेस्ट्रोल कम करने की दवाई दी तथा चरबीयुक्त खुराक कम करने की सलाह दी यह मेरी गलती थी । कोलेस्ट्रोल ब‹ढने
से हार्टएटेक आता नहीं है लेकिन शिराओं में सूजन हो तो आता है । कोलेस्ट्रोल कम करने की दवा ज्यादा खतरनाक
है । कम चरबी शिराओं में सूजन, रक्तचाप (इ.झ.), डायाबिटीस, एल्झमेट इत्यादि का कारण बनती है । रूक्ष आहार
शिराओं को नुकसान करता है । प्रोसेस किया आहर हृदय रोग पैदा करता है । उसके बदले तिल का तेल, गाय का घी,
मक्खन खाइए उसमें ओेगा-६ का प्रमाण कम होता है ।
हमारे आयुर्वेद में कहा गया है कि कर्ज लेकर भी गाय का घी खाना चाहिए ।
शोध (ीशीशरीलह) के नाम पर कोलेस्ट्रोल कम करवाया, पूरी दुनिया में हो… हा… करवाई और अब कहते हैं कि
हमारी गलती थी ।
भ्रामकता (१०) : ज्वर (बुखार)
बुखार रोग है और दवाई लेकर उसे तुरंत ठीक करना चाहिए ।
भ्रामकता का निवारण
ज्वर रोग नहीं है । रोग से बचने हेतु शरीर द्वारा की गई प्रतिक्रिया है । भविष्य में इसी प्रकार का रोग न हो इस
लिए रोग प्रतिकारक शक्ति उत्पन्न करने में बुखार उपयोगी है । अधिक बुखार मतलब गहरी बिमारी यह मान्यता गलत है ।
मस्तिष्क में ईजा हुई हो, किसी भी प्रकार की गांठ हुई हो, लू लगी हो इत्यादि कारणों में उच्च जर को तुरंत काबू
में लेना जरूरी है । लेकिन जिवाणु से आये हुए बुखार के लिए जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है । १०२/१०३ बुखार
हो तो डरो नहीं, उसे दबाने की कोशिश मत कीजिए । यह बुखार तो फायदाकारक है । इस बुखार से शरीर की ेशेतकण
(ुलल) की फैक्टरी अधिक प्रज्वलित होती है, रोग का समना करने हेतु अनेकगुना अधिक ेशेतकण बनाती है । अधिक
ुलल ेशेतकण काउन्ट से डरो नहीं । इस प्रकार के ज्वर में १५% जितने वायरस, बेक्टेरिया आदि जीवाणु का नाश होता
है । ४ से ६ घण्टे तक बुखार १०४ हो जाता है तो भी डरने की जरूरत नहीं । इस बुखार से पुराने रोग भी ठीक हो
जाते हैं । इस प्रकार के बुखार से ऐसे रोग जिस पर एन्टीबायोटिक की असर नहीं होती ऐसे सिफिलिस जैसे रोग भी ठीक
हो जाते हैं । २४ घंटे बुखार को नापते रहो और लिखते रहो, जरूरत होने पर डॉक्टर को दिखाओ । उसी के आधार पर
डॉक्टर तय करेंगे कि बुखार कौन सा है – मलेरिया, टाईफोइड, बेक्टेरियाजनित या वायरल ।
भ्रामकता (११) : बाईपास
हृदय की शिराओं में चरबी जमा होती है और शिराएँ बंद हो जाती है । अतः उनका ओपरेशन नई शिराओं को
जो‹ड कर बायपास सर्जरी करवाना जरूरी है ।
भ्रामकता का निवारण
शरीर का धर्म है जरूरत प‹डने पर वह स्वयं बायपास कर लेता है । शरीर में कहीं भी खून की नली (नस) कट
जाती है या बंद हो जाती है तो अपनेआप ही वहाँ खून पहुँचाने की व्यवस्था शरीर खुद कर लेता है ।
दृष्टान्त : हृदय में बायपास सर्जरी के लिए पैर या हाथ की नली काटते हैं तब उसके हाथ या पाँव खून न मिलने
से खराब नहीं हो जाते । वहाँ तुरंत बायपास व्यवस्था शुरू हो जाती है । यह कोई नई शोध नहीं है । मैं जब १९६५ में
प‹ढता था तब मैंने इस विषय पर टिप्पणी लिखी थी । इस क्रिया को मेडिकल भाषा में कोलेटर सरक्युलेशन लेश्रशींशीरश्र
लळीर्लीश्ररींळेप कहते हैं ।
५
पुनःश्च : हम बायपास सर्जरी करवा लें वहाँ बात पूर्ण नहीं होती क्योंकि यह व्यवस्था तो पाईप लाईन का टुक‹डा
बदलने की है । बायपास आये ही नहीं और अगर करवा ली हो तो बाद में क्या करना चाहिए इसके बारे में मैं अपनी
‘निःशुल्क आरोग्य कथाङ्क में विस्तार से बताता हूँ । आप चाहें तो इसका आयोजन अपने शहर में कर सकते हैं ।
भ्रामकता (१२) : ग्लूकोज
ग्लूकोज में अद्भुत शक्ति है । वह तुरंत राहत देता है ।
भ्रामकता का निवारण
केवल ग्लूकोज ही नहीं कोई भी पेय शक्ति देता है । ग्लूकोज में शक्कर, नमक आदि आते हैं । यह पेय अत्यंत
महंगा है । गरमी के दिनों में हम अगर गु‹ड को पानी में मिलाकर पीते हैं तो भी उतनी ही शक्ति मिलेगी । ग्लूकोज में
हानिकारक प्रिजर्वेटिव आते हैं । हमारा गु‹ड सस्ता, ताजा तथा लोह तत्त्व से युक्त आता है । गु‹ड तो टोनिक भी है ।
प्रतिदिन एक तोला गु‹ड खाने से कभी भी शरीर में लोह तत्त्व की कमी नहीं आएगी । अगर गु‹ड के पानी का नीबू शरबत
बनाकर पीते हैं तो ग्लूकोज तो मिलेगा ही साथ में नीबू के फायदे भी मिलेंगे ।
भ्रामकता (१३) : चाय
चाय पीने से स्फूर्ति और ताजगी आ जाती है । थकान दूर हो जाती है । चाय पिने के बाद हम पुनः अपने काम
पर दुगुनी शक्ति से जु‹ड जाते हैं ।
भ्रामकता का निवारण
चाय हमें स्फूर्ति या शक्ति नहीं देती । चाय के बहाने हम जो १०/१५ मिनट का आराम करते हैं वह हमें शक्ति देता
है । वास्तविकता यह है कि लगातार दो घण्टे काम करने के बाद हमारा मस्तिष्क थक जाता है । उसे घ‹डी-दोघ‹डी विराम
चाहिए । अगर हम बैठे-बैठे बातें करते हों तो भी दो घण्टे बाद थक जाते हैं और कुछ-न-कुछ पीने का मन करता है ।
इसका मतलब यह हुआ कि हर दो-चार घंटे बाद हमारे मस्तिष्क को ग्लूकोज की कमी महसूस होती है, वह ऊब जाता है ।
यह कमी वह चाय में रही शक्कर (चीनी) से पूर्ण करता है । अगर हम चाय के स्थान पर नीबू शरबत पीते हैं तो भी स्फूर्ति
आ जाती है । अगर कुछ न करना हो तो एक छोटा सा चक्कर लगा लें और तीन चार गहरी साँस लें तो भी स्फूर्ति आ
जाएगी । शक्कर का एक टुक‹डा मुँह में रख लें तो भी हम ‘फ्रेशङ्क हो जाएँगे । मस्तिष्क ‘चार्जङ्क हो जाएगा ।
कहा जाता है कि चाय में रहे ‘केफिनङ्क से स्फूर्ति आती है, और हम ‘फ्रेशङ्क हो जाते हैं । ऐसा नहीं है । चाय से
ज्यादा केफीन तो कोफी में होता है फिर भी हम कोफी क्यों पसंद नहीं करते ? दूसरे हम निश्चित जगह या दुकान की
ही चाय क्यों पसंद करते हैं ? मतलब कि चाय महत्त्वपूर्ण नहीं है हमारी धारणा महत्त्वपूर्ण है कि फलां दुकान की या
होटल की चाय पीयेंगे तो फ्रेश हो जायेंगे । यह आदत निश्चित समय की और हमारी धरणा की है, चाय की आदत नहीं
है । बरसों की आदत के कारण हम मानने लगे हैं कि चाय से हमें स्फूर्ति मिलती है ।
चाय हमारे पाचनतंत्र को नुकसान करती है । हमारी भूख को कम करती है । चाय से कब्ज होती है, बदहज्मी
होती है । दूध उत्तम टोनिक है । उसमें कई प्रकार के विटामिन, प्रोटिन और मिनरल्स है । दूध के इन सभी सद्गुणों का
नाश चाय में स्थित टेनिन नामक तत्त्व कर देता है । अगर चाय ही पीनी हो तो काली चाय पीयो ताकि आपको शुद्ध
‘केफीनङ्क मिले और दूध का नुकसान न हो ।
चाय के बदले गाय का दूध पीना चाहिए । वह आपको उपयोगी होगा । चाय के कारण हमारे घर में गाय का उत्तम
दूध आना बंद हो गया । चाय को और अधिक गाढा बनाने के लिए भैंस के दूध का उपयोग होने लगा । परिणाम यह हुआ
कि मांग ब‹ढने से दूध महंगा हो गया और हमारे बच्चे दूध से वंचित होने लगे ।
हमें चाहिए के आयुर्वेदिक चाय पीयें, जो देसी औषधों से युक्त होती है । इससे हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और
पाचनतंत्र भी मजबूत बनेगा । फिलहाल तो हम चाय और दूध दोनों को बिगा‹डते हैं और हमें देखकर हमारे बच्चे बिग‹डते हैं
यह अलग ।
भ्रामकता (१४) : ज्यूस/जुस/जूस
जूस पिने से शरीर को सीधा पोषण मिलता है । अतः जूस खूब पीना चाहिए । अगर ताजा नहीं मिलता है तो डिब्बे
में बंद बाजारू जूस भी पी सकते हैं । अपने बच्चों को भी खूब पिलाना चाहिए ।
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भ्रामकता का निवारण
जूस शरी के लिए बहुत अच्छा है परन्तु वह बाजारू जूस नहीं । घर पर बनाया गया ताजा जूस । संतरे, नारंगी,
आम, आँवला, बिट, अनार आदि का जूस सेहत के लिए उत्तम है । जूस का नियम है कि एक घंटे के अधिक अगर
पुराना हो तो उसमें डिकन्सट्रक्शन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और फिर वह उतना गुणकारी नहीं रहता जितना कि
ताजा हो ।
बाजार में मिलनेवाले जूस ताजे नहीं होते । डिकन्स्ट्रक्शन की प्रक्रिया को रोकने के लिए उसमें रसायण मिलाए
जाते हैं । जिसे अंग्रेजी में प्रिझर्वेटिव कहते हैं । हमारे शरीर में शक्कर नमक आदि पदार्थ जाते हैं तो जरूरत से ज्यादा
पदार्थ शरीर बाहर निकाल फैंकता है । मतलब कि यह सब पदार्थ शरीर में द्राव्य हैं । प्रिझर्वेटिव हमारे शरीर में द्राव्य नहीं
है अतः शरीर में कहीं-न-कहीं प‹डा रहता है । अधिकांश तो ब‹डे आंत/आंथ में प‹डा रहता है । कालांतर में कभी भी
आंत/आंथ का कैन्सर होता है । जिसके लिए जूस का सेवन जिम्मेदार होता है । जिसका हमें पता तक नहीं होता । हम
तो यह मानते है कि हम तो रोज जूस पीते थे फिर भई हमें कैन्सर क्यों हुआ ? अतः हमें चाहिए कि हम बासी,
एसेंसवाले, प्रिझर्वेटिववाले, कृत्रिम रंग-रसायणवाले जाम, शरबत, सिरप, आचार, चटनी, केचप आदि का उपयोग न करें
और विविध रोगों को निमन्तरण न दें ।
भ्रामकता (१५) : चिकनगुनिया/डेंगू एन्टीबायोटिक से तत्काल ठीक होते हैं ।
आधुनिक सुश्रुषा पद्धति में एन्टीबायोटिक एक चमत्कारी औषध और किसी भी रोग को ठीक करने की ताकत
उसमें है ।
भ्रामकता का निवारण
वास्तव में ऐसा नहीं है । एलोपथी में रोग की नहीं रोग के लक्षणों की सारवार की जाती है । बुखार, सरदर्द,
शरीरदर्द आदि रोग के लक्षण हैं रोग नहीं । आधुनिक सुश्रुषा में वायरस जन्य रोगों को कोई उपचार नहीं है । वे केवल
लक्षणों का उपचार करते हैं और रोग ज्यों-का-त्यों रहता है । दवाई बंद करने से तकलीफें पुनः शुरू हो जाती है ।
इलाज बहुत लम्बा चलता है और खर्च भी अनेकगुना होता है ।
वायरस अन्य रोगों के लिए आयुर्वेद अक्सीर है । आयुर्वेद में बताए गए घरेलु नुस्खे अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुए हैं ।
हाथ और पैरों के जो‹ड तक‹ड जाए तब सेंक करने से अधिक लाभ होता है । ४२ अंस सेंटीग्रेड तापमान में वायरस जिन्दा
नहीं रहते । कमरे का तापमान भी ४२ अंस सेंटीग्रेड रखें ताकि वहाँ से भी वायरस और बेक्टेरिया नष्ट हो । अस्पताल के
एयरकंडीशन में तथा आईसीयु में यह लाभ नहीं मिलेगा । वायरस और बेक्टेरिया को वहाँ नष्ट करना संभव नहीं ।
टिप्पणी
डेंगू में प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं जो कभी-कभी मृत्यु की ओर ले जाते हैं । आधुनिक शास्त्र में इसकी दवाई नहीं
है । पपीता के पान का रस निकालकर ३ चम्मच सुबह शाम लेने से २४ घंटे में ही प्लेटलेट्स के काउन्ट ब‹ढ जाते हैं ।
इस हेतु मैं निःशुल्क आरोग्यकथा करता हूँ । अभी तक गुजरात में १३७ कथा कर चुका हूँ । गुजरात के बाहर ५
कथा कर चुका हूँ । कथा का समय ४५ मिनट से ८ घन्टे तक का होता है । जैसा आयोजन ऐसी कथा ।
कथा में दर्शाया जाता है कि आधुनिकता के नाम पर व्यक्ति, परिवार, समाज और देश को कैसे बरबाद किया जा
रहा है । तन, मन और धन से हम कैसे पायमाल हो रहे हैं उसका वैज्ञानिक निरुपण किया जाता है ।
विटामिन, मिनरल्स, टॉनिक, डायाबिटीस, जो‹डों का दर्द, हृदयरोग आदि पाँव से सर तक के रोगों के इलाज की
९०% बाजी हमारे हाथों में होती है उसकी ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है । इसके उपरांत कौन से रोग में कौन सी
कसरत (व्यायाम) उपयोगी है इसका भी निदर्शन में करता हूँ । इसके हेतु हिन्दी में लिखी गई पुस्तिका ‘आप ही अपने
उद्धारकङ्क की २.५ लाख प्रतियाँ केवल २ वर्ष में बिकी है । आज बस इतना ही । ज्यादा फिर कभी । जय गुरुदेव ।
डॉ. हर्षद पंडित, ॐ, ४ करणपरा, राजकोट ३६० ००१ (गुजरात)
फोन : ०२८१-२२२९३८५ मो. : ९४२८२९९६३७