शत्राु पर विजय प्राप्ति की दृष्टि से खालसा दल के नायक बंदा सिंह बहादुर ने अगला कदम मलेरकोटला की ओर बढाया। यहां के नवाबों ने श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी पर शाही सेना की ओर से बढ़-चढ़ कर आक्रमण किये थे। भले ही गुरूदेव के सपुत्रों की हत्या करवाने में उन का कोई हाथ नहीं था। इस समय उस परिवारके सभी पुरूष सदस्य गुरूदेव के हाथों अथवा छप्पड़ चीरी के रणक्षेत्रा मे मारे जा चुके थे।
जब दल खालसा मलेरकोटला पहुंचा तो वहां की स्थानीय जनता रक्तपात होने के भय से कांप उठी, उन्होंने तुरन्त अपना एक प्रतिनिध् िमण्डल बहुत बडी़ ध्न राशि नज़राने के रूप में देकर दल खालसा के नायक बंदा सिंह के पास भेजा। बंदा सिंह इस नगर को किसी प्रकार की क्षती पहुंचने के पक्ष में नहीं था क्योकि उसे ज्ञात हो गया था कि यहां के नवाब शेर मुहम्मद खान ने गुरूदेव के दोनों छोटे सुकुमारों की हत्या का विरोध् किया था।
साहबजादों के प्रति दिखाई सहानुभूति के कारण किसी प्रकार के प्रतिशोध् का प्रश्न ही नहीं उठता था। अतः वह प्रतिनिध् िमण्डल से बहुत सद्भावना भरे वातावरण में मिले और नज़ारने स्वीकार कर लिए, इस प्रतिनिध् िमण्डल में एक स्थानीय साहुकार किशन दास ने बंदा सिंह को पहचान लिया। लगभग दस वर्ष पूर्व एक बैरागी साध्ु के रूप में अपने गुरू रामदास के साथ माधे दास के नाम से उनके यहां जो व्यक्ति ठहरा था, वह यही बंदा सिंह बहादुर है।
इस रहस्य के प्रकट होते ही भय-प्रसन्नता में प्रवृत हो गया और सभी आपस में घुल मिल गये। तभी बंदा सिंह जी ने स्थानीय प्रतिनिध् िमण्डल को वचन दिया यदि यहां के शासक हमारी अध्ीनता स्वीकार कर लें तो यहां किसी का बाल भी बांका नहीं होने दिया जायेगा। तभी उन को बताया गया कि दल खालसा के आने की सूचना पाते ही वहां का फौजदार भाग गया है।लेरकोटला पर आक्रमण
(सोजन्य : क्रन्तिकारी गुरु नानक देव चैरिटेबल ट्रस्ट , लेखक : सरदार जसबीर सिंह)