सूर्य-ग्रह : यह ग्रह पुरुष जाति , रक्त वर्ण , पित्त प्रकृति , तथा पूर्व दिशा का स्वामी है ||
यह आत्मा आरोग्य स्वभाव राज्य देवालय का सूचक एवं पितृकारक है ||
इसके द्वारा शारीरिक रोग , मन्दाग्नि , अतिसार , सिरदर्द , मानसिक रोग , नेत्र विकार , उदासी शोक , अपमान , कलह आदि का विचार किया जाता है ||
मेरुदण्ड , स्नायु , कलेजा , नेत्र आदि अवयवो पर इसका विशेष प्रभाव रहता है ||
इससे पिता के सम्बन्ध में विचार किया जाता है ||
सूर्य-लग्न से सप्तक स्थान में बली तथा मकर राशि से छ: राशियों तक चेष्टा बली होता है ||
सूर्य को पाप ग्रह माना गया है ||
बुध-ग्रह : यह नपुंसकजाति श्यामवर्ण उत्तर दिशा का स्वामी त्रिदोषप्रकृति तथा पृथ्वी तत्व वाला है ||
यह ज्योतिष चिकित्सा शिल्प कानून व्यवसाय चतुर्थस्थान तथा दशमस्थान का कारक है ||
इसके द्वारा गुप्त रोग संग्रहणी वातरोग श्वेतकुष्ट गूंगापन बुद्घिभ्रम विवेक शक्ति जिह्वा तथा तालु आदि शब्द के उच्चारण से सम्बन्धित अवयवो का विचार किया जाता है ||
बुध सूर्य मंगल केतु शनि
इन अशुभ ग्रहों के साथ हो तो अशुभ फल देता है ||
पूर्ण चन्द्र गुरु अथवा शुक्र इन शुभ ग्रहों के साथ हो तो शुभ फलदायक रहता है ||
यदि यह चतुर्थ स्थान में बैठा हो तो निष्फल रहता है ||
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार
बुध जैसे ग्रहों के साथ हो वैसा ही शुभ अथवा पाप ग्रह बन जाता है ||
बुध अकेला हो तो शुभ ग्रह है ||