मंगल-ग्रह : यह ग्रह पुरुष जाति रक्तवर्ण दक्षिण दिशा का स्वामी अग्नि तत्व वाला पित्त प्रकृति वाला है ||
यह धैर्य तथा पराक्रम का स्वामी भाई-बहन का कारक रक्त एवं शक्ति का नियामक कारक है ||
ज्योतिष शास्त्र इसे पाप ग्रह मानता है ||
यह उत्तेजित करने वाला तृष्णा कारक तथा सदैव दुःखदायी रहता है ||
मंगल 3रे तथा 6ठे स्थान में बली होता है ||
10वें स्थान में दिगबली होता है ||
चन्द्रमा के साथ रहने पर चेष्टाबली होता है ||
द्वितीय स्थान में निष्फल बलहीन होता है ||
मंगल
उन नव ग्रहों में से एक ग्रह का नाम
जो सौरमंडल के सदस्य है ||
यह लाल आभा युक्त ग्रह जब चक्कर लगाते हुए पृथ्वी के करीब पहुँचता है तो उस समय लाल अंगारे के समान दिखाई देता है ||
इसकी मुख्य विशेषता कि
जब यह पृथ्वी के करीब आता है तब इसका उदय माना जाता है ||
इसके अर्थात उदय के पश्चात
300 दिनों के बाद यह वक्री मार्गी होकर 60 दिनों तक चलता है ||
बाद में अपने सामान्य परिक्रमा मार्ग पर आकर 300 दिनों तक संचालित रहता है || ऐसी स्थिति में इसको अस्त माना जाता है ||
मंगल ग्रह की उत्पत्ति
भगवान विष्णु जी के पसीने के बूंद से पृथ्वी द्वारा हुई थी ||
महाभारत के अनुसार
मंगल-ग्रह का जन्म भगवान कार्तिकेय के शरीर से हुआ था ||
वामन पुराण के अनुसार
भगवान शिवजी ने जब असुर अंधक का वध किया था तब मंगल-ग्रह की उत्पत्ति हुई थी ||
मंगल ग्रह पृथ्वी का पुत्र है इसीलिए इसको भौम के नाम से भी जाना जाता है ||
मंगल-ग्रह का गोत्र भारद्वाज है क्योंकि इसे भारद्वाज मुनि का वंशज माना गया है और वे ब्राह्मण जाति के है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज