श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी दक्षिण भारत में गुरमति का प्रचार प्रसार करने के लिए विचरण कर आगे
बढ़ रहे थे कि महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों ने गुरूदेव को बताया कि गोदावरी नदी के तट पर एक वैरागी साधू रहता है जिसने योग साध्ना के बल से बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त की हुई हैं। जिनका प्रयोग करके वह अन्य
महापुरूषों का मजाक उड़ाता है। इस प्रकार वह बहुत अभिमानी प्रवृत्ति का स्वामी बन गया है। यह ज्ञात होने
पर गुरूदेव के हृदय में इस चंचल प्रवृत्ति के साधू की परीक्षा लेने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। अतः वह नादेड़ नगर
के उस रमणीक स्थल पर पहुँचे, जहाँ इस वैरागी साधू का आश्रम था। संयोगवश वह साधू अपने आश्रम में नहीं
था, उद्यान में तप साध्ना में लीन था। साधू के शिष्यों ने गुरूदेव का शिष्टाचार से सम्मान नहीं किया। इसलिए
गुरूदेव रूष्ट हो गये और उन्होंने अपने सेवकों ;सिक्खोंद्ध को आदेश दिया कि यहीं तुरन्त भोजन तैयार करो।
इस कार्य के लिए यहीं आश्रम में बकरे भÚटका डालो। उनके आदेश का पालन किया गया। बकरों की हत्या
देखकर वैरागी साध्ु के शिष्य बौखला गये किन्तु वे अपने को असमर्थ और विवश अनुभव कर रहे थे। सिक्खों
ने उनके आश्रम को बलात् अपने नियन्त्राण में ले लिया था और गुरूदेव स्वयँ वैरागी साध्ु के पलंग पर विराजमान
होकर आदेश दे रहे थे। वैरागी साधू के शिष्य अपना समस्त सिद्धियाँ का बल प्रयोग कर रहे थे जिस से
बलात् नियन्त्राकारियों का अनिष्ट किया जा सके किन्तु वह बहुत बुरी तरह से विफल हुए। उनकी कोई भी
चमत्कारी शक्ति काम नहीं आई। उन्होंने अन्त में अपने गुरू वैरागी साधू माधेदास को सन्देश भेजा कि कोई
तेजस्वी तथा पराकर्मी पुरूष आश्रम में पधरे हैं जिनको परास्त करने के लिए हमने अपना समस्त योग बल प्रयोग
करके देख लिया है परन्तु हम सफल नहीं हुए। अतः आप स्वयँ इस कठिन समय में हमारा नेतृत्त्व करें। संदेश
पाते ही माधेदास वैरागी अपने आश्रम पहुँचा। एक आगन्तुक को अपने पलंग ;आसनद्ध पर बैठा देखकर, अपनी
अलौकिक शक्तियों द्वारा पलंग उलटाने का प्रयत्न किया परन्तु गुरूदेव पर इन चमत्कारी शक्तियों का कोई
प्रभाव न होता देख,माधे दास जान गया कि यह तो कोई पूर्ण पुरूष हैं, साधरण व्यक्ति नहीं। उसने एक दृष्टि
गुरूदेव को देखा – नूरानी चेहरा और निर्भय व्यक्ति। उसने बहुत विनम्रता से गुरूदेव से प्रश्न किया – आप कौन
हैं? गुरूदेव ने कहा – मैं वही हूँ जिसे तू जानता है और लम्बे समय से प्रतीक्षा कर रहा है।
माधेदास – तभी माधेदास अन्तर्मुख हो गया और अन्तःकरण में झाँकने लगा। कुछ समय पश्चात्
सुचेत हुआ और बोला – आप गुरू गोबिन्द सिंह जी तो नहीं?
गुरूदेव – तुमने ठीक पहचाना है मैं वही हूँ।
माधे दास – आप इध्र कैसे पधरे? मन में बड़ी उत्सुकता थी कि आप के दर्शन करूँ किन्तु कोई
संयोग ही नहीं बन पाया कि पँजाब की यात्रा पर जाऊँ। आपने बहुत कृपा की जो मेरे हृदय की व्यथा जानकर
स्वयँ पधरे हैं।
गुरूदेव – हम तुम्हारे प्रेम में बाँध्े चले आये हैं अन्यथा इध्र हमारा कोई अन्य कार्य नहीं था।
माधे दास – मैं आप का बंदा हूँ। मुझे आप सेवा बताएं और वह गुरू चरणों में दण्ड्वत प्रणाम करने
लगा।
गुरूदेव – उसकी विनम्रता और स्नेहशील भाषा से मंत्रामुग्ध् हो गये। उसे उठाकर कंठ से लगाया और
आदेश दिया – यदि तुम हमारे बंदे हो तो फिर सँसार से विरक्ति क्यों? जब मज़हब के जनून में निर्दोष लोगों
की हत्या की जा रही हो, अबोध् बालकों तक को दीवारों में चुना जा रहा हो। और आप जैसे तेजस्वी लोग
हथियार त्याग कर सन्यासी बन जायें तो समाज में अन्याय और अत्याचार के विरू( आवाज कौन बुलंद करेगा?
यदि तुम मेरे बंदे कहलाना चाहते हो तो तुम्हें समाज के प्रति उत्तरदायित्त्व निभाते हुए कर्त्तव्यपरायण बनना ही
होगा क्योंकि मेरा लक्ष्य समाज में भ्रातृत्त्व उत्पन्न करना है। यह तभी सम्भव हो सकता है जब स्वार्थी, अत्याचारी
और समाज विरोध्ी तत्त्व का दमन किया जाये। अतः मेरे बंदे तो तलवार के ध्नी और अन्याय का मुँह
तोड़ने का संकल्प करने वाले हैं। यह समय सँसार से भाग कर एकान्त में बैठने का नहीं है। तुम्हारे जैसे वीर
और बलिष्ठ यो(ा को यदि अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो चूकना नहीं चाहिए क्योंकि यह बलिदान घोर
तपस्या से अध्कि फलदायक होता है।
माधेदास ने पुनः विनती की कि मैं आपका बंदा बन चुका हूँ। आपकी प्रत्येक आज्ञा मेरे लिए
अनुकरणीय है। फिर उसने कहा – मैं भटक गया था। अब मैं जान गया हूँ, मुझे जीवन चरित्रा से सन्त और
कर्त्तव्य से सिपाही होना चाहिए। आपने मेरा मार्गदर्शन करके मुझे कृत्तार्थ किया है जिससे मैं अपना भविष्य
उज्ज्वल करता हुआ अपनी प्रतिभा का परिचय दे पाउँगा।
गुरूदेव, माधे दास के जीवन में क्रान्ति देखकर प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे गुरूदीक्षा देकर अमृतपान
कराया। जिससे माधेदास केशधरी सिंह बन गया। पाँच प्यारों ने माधेदास का नाम परिवर्तित करके गुरूबख्श
सिंह रख दिया। परन्तु वह अपने आप को गुरू गोबिन्द सिंह जी का बन्दा ही कहलाता रहा। इसी लिए इतिहास
में वह बंदा बहादुर के नाम से प्रसि( हुआ।
गुरूदेव को माधेदास ;बंदा बहादुरद्ध में मुग़लों को परास्त करने वाला अपना भावी उत्तराध्किारी दिखाई
दे रहा था। अतः उसे इस कार्य के लिए प्रशिक्षण दिया गया और गुरू इतिहास, गुरू मर्यादा से पूर्णतः अवगत
कराया गया। कुछ दिनों में ही उसने शस्त्रा विद्या का पुनः अभ्यास करके फिर से प्रवीणता प्राप्त कर ली। जब
सभी तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी तो गुरूदेव ने उसे आदेश दिया – ‘कभी गुरू पद को धरण नहीं करना में न बंध्
ना, अन्यथा लक्ष्य से चूक जाओगे। पाँच प्यारों की आज्ञा मानकर समस्त कार्य करना। बंदा बहादुर ने इन उपदेशों
के सम्मुख शीश झुका दिया। तभी गुरूदेव ने अपनी खड़ग ;तलवारद्ध उसे पहना दी। किन्तु सिक्ख इस कार्य से
रूष्ट हो गये। उनकी मान्यता थी कि गुरूदेव की कृपाण ;तलवारद्ध पर उनका अध्किार है, वह किसी और को
नहीं दी जा सकती। उन्होंने तर्क रखा कि हम आपके साथ सदैव छाया की तरह रहे हैं जब कि यह कल का
योगी आज समस्त अमूल्य निध् िका स्वामी बनने जा रहा है।
गुरूदेव ने इस सत्य को स्वीकार किया। खड़ग के विकल्प में गुरूदेव जी ने उसे अपने तरकश में से
पाँच तीर दिये और वचन किया जब कभी विपत्तिकाल हो तभी इनका प्रयोग करना तुरन्त सफलता मिलेगी।
आशीर्वाद दिया और कहा – जा जितनी देर तू खालसा पंथ के नियमों पर कायम रहेगा। गुरू तेरी रक्षा करेगा।
तुम्हारा लक्ष्य दुष्टों का नाश और दीनों की निष्काम सेवा है, इससे कभी विचलित नहीं होना। बन्दा सिंह बहादुर
ने गुरूदेव को वचन दिया कि वह सदैव पंच प्यारों की आज्ञा का पालन करेगा। गुरूदेव ने अपने कर-कमलों
से लिखित हुक्मनामे दिये जो पँजाब में विभिन्न क्षेत्रों में बसने वाले सिक्खों के नाम थे जिसमें आदेश था कि वह
सभी बन्दा सिंह की सेना में सम्मिलित हो कर दुष्टों को परास्त करने के अभियान में कार्यरत हो जाएं और साथ
ही बन्दा सिंह को खालसे का जत्थेदार नियुक्त करके ‘बहादुर’ खिताब देकर नवाज़ा और पाँच प्यारों – भाई
विनोद सिंह, भाई काहन सिंह, भाई बाज सिंह, भाई रण सिंह और रामसिंह की अगुवाई में पँजाब भेजा। उसे
निशान साहब ;झंडाद्ध नगाड़ा और एक सैनिक टुकड़ी भी दीऋ जिसे लेकर वह उत्तरभारत की ओर चल पड़ा।
(सोजन्य : क्रन्तिकारी गुरु नानक देव चैरिटेबल ट्रस्ट , लेखक : सरदार जसबीर सिंह)
I really like this article. .government never tought us. .this kind of worriers story ..I appreciate. .regards.