ये लेख मैं अपने पूज्य श्रीअयोध्या प्रसाद शुक्ला जी के चरण कमलो में समर्पित
गुरु एक ब्रह्माण्डीय शक्ति का नाम है || एक शाश्वत शक्ति !!! हर जन्म में माता-पिता अलग हो सकते है || माता-पिता अलग होंगे तो भाई-बहन भी अलग हो सकते है || हर जीवन में मित्र भी अलग हो सकते है || कभी जन्म कहाँ कभी कहाँ होता रहता है || लेकिन जिस जन्म में रहोगे पर गुरु सर्वदा एक ही होगा ||
किस जन्म में पहचान सकोगे कि मेरे कौन वास्तविक गुरु है ? गुरु का तातपर्य आपके जीवन का वह समुद्र जहाँ आपको पूर्ण विलीन हो जाना है || एक बार विलीन हो जाने के बाद फिर समुद्र से नदी भी नही निकलती है || क्योंकि वहां आकर पूर्ण हो जाती है || समुद्र उसे अपने जैसा बना देता है || इसीतरह गुरु भी शिष्य को अपने ज्ञान सागर में एकाकार कर अपने जैसा बना देते है || यह वह महान क्रिया जो कोई और सम्पन्न कर ही नही सकता ||
शंकराचार्य के शतश्लोकी के अनुसार दृष्टान्ता नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठने सदगुरोर्ज्ञानदातु: स्पर्शश्वेत्तत्र कल्प्य: स नयति यदहो स्वर्णतामश्मसारम | न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरणयुगे सदगुरु: स्वीयशिष्ये स्वीयं साम्यं विधत्ते भवति निरुपमस्तेन वा लौकिकेकोSपि || अर्थात इस त्रिभुवन में ज्ञानदाता सदगुरु के लिए देने योग्य कोई दृष्टान्त ही नही दिखता ||
उन्हें पारस मणि उपमा दे तो यह भी ठीक नही जँचती कारण लोहे को सोना तो बना देता है पर पारस नही बनाता || परन्तु सदगुरु चरण युगल का आश्रय लेने वाले शिष्य को सदगुरु निज साम्यता ही दे डालते है || इसलिए सदगुरु की कोई उपमा नही || शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज