डॉ विवेक आर्य , केरल : दक्षिण भारत का अति सुन्दर प्रदेश जिसे आदि शंकराचार्य की भूमि के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का सरकारी रूप से देवताओं की भूमि का नाम दिया गया हैं जबकि मेरे विचार से इसका व्यवहारिक नाम मिशनरियों की फैक्ट्री होना चाहिए। सम्पूर्ण भारत के किसी भी कौने में जाकर देख लीजिए। केरल से निकली ईसाई नन आपको ईसाई धर्मान्तरण करती दिख जाएगी। पालघाट के नाम से उत्तर केरल में एक जिला है। मुख्य रूप से जंगल और पहाड़ों से सुसज्जित इस जिले की हिन्दू आबादी आदिवासी समाज से सम्बंधित है। ईसाई मिशनरियों ने सुनियोजित रूप से 500 करोड़ रुपये विदेश से मंगवाकर इस जिले के हिन्दू आदिवासियों को ईसाई बनाने के लिए निवेश किये है। जमीनी हकीकत यह है कि स्थिति बहुत गम्भीर है। करोड़ो रुपये एवं प्रॉपर्टी के ऊपर बैठे हिन्दू मठाधीश ऐशो-आराम में मस्त हैं. हिन्दू समाज बॉलीवुड, क्रिकेट, धन संग्रह, विदेश यात्रा, होटलों और शॉपिंग मॉल में मस्ती करने में लगे है। ऐसी विकट स्थिति में ईश्वर ही हिन्दुओं को रक्षक है। आर्यसमाज ने केरल में सर्वप्रथम 1921 में मोपला दंगों के समय केरल में प्रचार कार्य आरम्भ किया था। मुसलमानों द्वारा हज़ारों हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया गया था। लाहौर से उठकर आर्यसमाज के प्रतिनिधि केरल गए और जबरन मुसलमान बनाए गए हिन्दू भाइयों को शुद्ध कर वापिस वैदिक धर्म में प्रवेश दिलवाया गया था। तब से लेकर आज तक केरल में अनेक आर्य मिशनरियों ने अपना श्रमदान दिया। केरल के प्रथम आर्य मिशनरी पंडित ऋषिराम जी, महात्मा आनंद स्वामी जी, वेदबंधू शर्मा जी, आचार्य नरेंदर भूषण जी, वेलायुद्ध आर्य जी ऐसे कुछ महान तपस्वी नाम हैं जिनका जीवन हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। जातिवाद, कम्युनिस्ट, नास्तिकतावाद, अल्पसंख्यक के नाम पर ईसाइयत एवं इस्लाम का पोषण करने वाली राजनीती के चलते हिन्दुओं की दशा केरल में अत्यन्त विषम है।