शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : भृगसहिता ज्योतिषशास्त्र में भाव का महत्व
कुण्डली का द्वितीय भाव : प्रथम भाव में मनुष्य को शरीर तो मिल गया परन्तु खाद्यपदार्थ न मिले तो यह शरीर नही चल सकता है ||
यही कारण है कि खाद्यसामग्री कोष धनादि का सम्बन्ध द्वितीय भाव से ही होता है ||
लग्न या प्रथमभाव अर्थात प्रथम अंग सिर का प्रतिनिधि है तो द्वितीयभाव द्वितीय अंग
अर्थात मुख मुख की शोभा बनावट आँखों आदि का ||
द्वितीयभाव का कारक ग्रह बृहस्पति है परन्तु कालपुरुष की कुण्डली के अनुसार द्वितीयभाव में वृषराशि है जिसका स्वामी शुक्र होता है और चन्द्रमा यहाँ उच्च का माना जाता है ||
द्वितीयभाव जातक की प्रतिष्ठा एवं सञ्चितधन को दर्शाता है ||
दूसरे भाव के धन का अर्थ जो सात्विक ढंग से बचाया गया हो ||
मकान [ पैतृकसम्पत्ति ] या दूकान आदि का भी निर्धारण इसीभाव से होता है ||
बृहस्पति के इस घर के कारक होने के कारण यह भाव प्रारम्भिक आयु के ज्ञान को दर्शाता है ||
यह भाव मिटटी खेती एवं उड़ने वाली गैसों से भी सम्बन्ध रखता है ||
इसके अतिरिक्त द्वितीयभाव कुमारावस्था रूपलावण्य वाणीविकार प्रबलवाकशक्ति संगीतकलाविज्ञान अंधापन सन्यास मारकदशा गोदलियाजाना शासन प्रारम्भिकशिक्षा आदि का द्योतक है ||
प्राथमिकता के गुण के कारण लग्न से जन्मकालीन तथा शैशवकालीन बातो पर विचार किया गया है ||
इसी आधार पर द्वितीयभाव से शैशवावस्था के तुरन्त बाद की कुमारावस्था का विचार किया जाता है ||
यह भाव “उत्तरपश्चिम” दिशा को दर्शाता है ||
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में द्वितीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में तृतीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में चतुर्थ भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में पञ्चम-भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में षष्ठ भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में सप्तम भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में अष्टम भाव)