शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : भृगसहिंता ज्योतिषशास्त्र में भावों का महत्त्व
तृतीय भाव : बल बाहु परिश्रम पराक्रम का है ||
तीसरे भाव से जातक के जिम्मेदार होने फर्ज निभाने और दूसरे की सहायता करने की गुण को व्यक्त करता है ||
तीसरे भाव से उत्साह स्फूर्ति दृष्टि के प्रभावशाली होने चोरी एवं बिमारी के बारे में स्पष्ट होता है ||
जातक के जीवन में उतार चढाव को भी यही घर बताता है ||
तीसरे घर का कारक मंगल ग्रह और स्वामी बुध ग्रह है परन्तु मंगल का अधिक अधिकार होने के कारण बुध यहां शुभ फल नही देता है क्योंकि मंगल बुध को कमजोर कर देता है ||
तीसराभाव दक्षिण दिशा को व्यक्त करता है ||
मेष वृश्चिक मकर राशि का मंगल शुभ होता है ||
तीसरेभाव से छोटे भाई बहनो का पता चलता है यदि यह भाव शुभ होगा तो भाई बहनो से सम्बन्ध अच्छा होगा भाई बहनो की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होगी ||
तीसरे भाव से जातक का निजत्व आत्मघात मित्रता लेखन हाथ पर्याप्त धन छोटी मोटी यात्राये हवाई यात्रा गहरी खोज का पता चलता है ||
रिश्तेदारो की आर्थिक स्थिति भी यही घर दर्शाता है || मकान के अंदर रखे सामानों को भी दर्शाता है ||
यदि यह भाव में अशुभ ग्रह है तो परिश्रम का पूरा फल नही मिलेगा ||
तीसराभाव आँख की पलको जिगर खून की मात्रा खून में आक्सीजन की मात्रा अन्य रक्त दोषो को भी दर्शाता है ||
यह भाव आयु यौवन को भी दर्शाता है ||
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में द्वितीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में तृतीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में चतुर्थ भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में पञ्चम-भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में षष्ठ भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में सप्तम भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में अष्टम भाव)