सरोज शैली द्वारा लिखित कविता :
ये साल भी चला गया
मैं देखती रही ,
वो सामने से गुजरता चला गया
कुछ ज़ख्म और गहरा गए
बिना सिले,खुले ही रह गए
मैं सोचती रही और ज़ख्म दर्द बढ़ता रहा
कुछ अनकही सी बात
फिर जुबान से न निकल सकी
कुछ अन्सुना सा वोह ….
सुन-ने को तरसते रहे….
इंतज़ार अब कुछ और बढ़ गया
कुछ पुराना बचाने की कोशिश मैं
कुछ नया भी ना जुड़ा सके
पर चाह भी थमी नहीं
आँख भी थकी नहीं
एक नई आस मैं ज़िन्दगी फिर बढ़ चली…
मुमकिन है इस बार शायद …
कुछ रफ़्तार ले सकू
वक़्त के साथ कदम मिला सकू
ज़ख्मों से दूूर,
टूटे-रूठे रिश्तों से
एक बार फिर शुरुवात कर सकू…
उम्मीद…है आने वाले साल से
एक और उम्मीद….
एक और नया साल….