के के शर्मा : क्या आपने कभी सोचा है कि आपका कोई दोस्त या परिजन बहुत उदास दिखता है और लंबे समय तक थका हुआ या सुस्त नज़र आता है? आपने नोट किया होगा कि वह व्यक्ति बहुत ख़ामोश हो गया है, रोज़ाना के काम में उसकी दिलचस्पी ख़त्म हो गई है, ठीक से नहीं खाता है या काम से उसका ध्यान उचट गया है. ऐसे संकेत बताते हैं कि उक्त व्यक्ति अवसाद से पीड़ित हो सकता है.अवसाद एक सामान्य मनोरोग है जिसके कुछ निश्चित लक्षण होते हैं जो व्यक्ति के विचारों, भावनाओं, व्यवहार, संबंध, कार्य प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं और अत्यंत गंभीर मामलों में मृत्यु तक भी हो सकती है.किसी बुरी घटना या परिस्थिति पर उदास होना स्वाभाविक ही है. लेकिन अगर ये भावना लंबे समय तक बनी रहे (दो सप्ताह से ज़्यादा) या बार बार आती रहे और सामान्य जीवन और स्वास्थ्य को बाधित करे तो ये चिकित्सा परिभाषा में अवसाद की श्रेणी में आ जाता है जिसके इलाज की ज़रूरत पड़ती है. अवसाद कमज़ोरी या मानसिक अस्थिरता का संकेत नहीं है. मधुमेह या हृदय की समस्याओं की तरह ये भी एक बीमारी है. अवसाद जीवन के किसी पड़ाव में कभी भी किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है.अवसाद का इलाज संभव है.
अवसाद ज़िंदगी के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है और उसके लक्षण इस तरह से हैं :–
ज़्यादातर समय उदास और मन डूबा हुआ महसूस करना.
दैनिक गतिविधियों को पूरा करने में अनिच्छा और कठिनाई. दिन भर थकान और सुस्ती. पहले जिन चीज़ों में मन लगता था, उनसे मन ऊब जाना, आनंद महसूस न कर पाना.
ध्यान केंद्रित करने में, सोचने में और फ़ैसला करने में कठिनाई (उदाहरणः हॉबी, पढ़ाई आदि)
आत्मविश्वास और आत्म सम्मान में कमी.
अपने बारे में, जीवन के बारे में और भविष्य को लेकर नकारात्मक ख़्याल
भूख न लगना, ज़्यादा खा लेना
अपराधबोध महसूस करना और पुरानी नाकामियों के लिए खुद को दोषी ठहराना, खुद को किसी चीज़ के लायक न समझना
काम से अनुपस्थित रहने लगना या काम करने में असमर्थ हो जाना
भविष्य को लेकर निराशा की भावना
नींद में गतिरोध, नींद न आना
यौनेच्छा का अभाव, सेक्स में अरुचि
पूरे शरीर में दर्द महसूस करना, सिरदर्द, गर्दन दर्द, ऐंठन, मोच आदि
अपना नुकसान कर लेने या आत्महत्या कर लेने के ख़्याल
अवसाद कई सारे कारणों के मिलेजुले असर से हो सकता है जैसे आनुवंशिकी, जीवन में घटी घटनाएँ या तनाव:–
• मनोविकार: अवसाद ऐसे अन्य मनोविकारों के साथ मौजूद रह सकता है जिनकी पहचान न हो पाई हो जैसे ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर, सामाजिक भय ग्रंथि या सोशियल फ़ोबिया और शिज़ोफ़्रेनिया. ऐसे मामलों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से एक विस्तृत आकलन की सलाह दी जाती है.
जीवन में तनाव के कारक: वयस्कों में तनाव पैदा करने वाले कारण कार्य संबंधी, अंतरवैयक्तिक (पारिवारिक या वैवाहिक), वित्तीय और अन्य हो सकते हैं.
शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ: बेकाबू बीमारियाँ जैसे डायबिटीज़ और थायरॉयडहृदय रोग, कैंसर या एचआईवी जैसी गंभीर , से अवसाद हो सकता है.
व्यक्तित्व: व्यक्तित्व समस्या या शरीर की छवि से (बहुत मोटा या बहुत पतला होना, बहुत लंबा या नाटा होना), पूर्णतावाद, आत्मविश्वास में कमी, स्कूल, कॉलेज या दफ्तर में अनुचित प्रतियोगिता, और सहकर्मियों या सहपाठियों का दबाव.
अल्कोहल या ड्रग की लतः अल्कोहल एक अवसादक है और अधिक सेवन अवसाद को बढ़ा सकता है. ड्रग और अन्य हानिकारक पदार्थों की लत व्यक्ति को परिवार और दोस्तों से दूर कर देती है. लंबे समय तक सेवन और नशा न मिलने की स्थिति में पलायनकारी लक्षण आने लगते हैं और अवसाद भी पैदा होता है.
देर रात तक टीवी या कंप्यूटर से बढ़ता अवसाद–तेजी से बदलती जीवनशैली और तकनीक पर मनुष्य की बढ़ती निर्भरता के चलते आजकल अवसाद एक सामान्य समस्या बन गया है। दफ्तर हो या घर, बच्चे हों युवा हों या बड़े, स्कूल व दफ्तर से लेकर घर तक अधिकांश लोग कंप्यूटर पर निर्भर रहते हैं। और बाकी की कसर टीवी कर ही देता है। यही नहीं दफ्तर हो या घर, कामकाजी हो या स्कूल/ कॉलेज स्टूडेंट सभी देर रात तक या तो कंप्यूटर पर काम कर करने के आदी बन चुके हैं या टीवी देखने के।यदि आप देर रात तक टीवी या कंप्यूटर के सामने बैठे रहते हैं और इन्हें चलता ही छोड़कर सो जाते हैं, तो सावधान हो जाएं, ऐसा करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। कई शोध बताते हैं कि वे लोग जो देर रात तक टीवी या कंप्यूटर के सामने बैठे रहते हैं, उन्हें अवसाद की शिकायत अधिक होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार भारत में अवसाद के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इस सर्वे के मुताबिक भारत में करीब 36 प्रतिशत लोग गंभीर अवसाद से ग्रस्त हैं। मनोचिकित्सक अवसाद को ऐसी बीमारी बताते हैं जो कुछ रोगियों को आत्महत्या की ओर ले जाती है। कुछ शोधों की मानें तो भारत में अवसाद दसवीं सबसे सामान्य बीमारी हो चली है। कुछ सर्वे बताते हैं कि भारत में अन्य विकाशील व विकसित देशों की तुलना में अवसाद के मरीज ज्यादा हैं।भारत में सबसे ज्यादा, 36 प्रतिशत लोग मेजर डिप्रेसिव एपिसोड (एमडीई) का शिकार हैं। इस सर्वेक्षण में दूसरे स्थान पर यूरोपीय देश फ्रांस आया है, जहां 32.3 प्रतिशत लोग अवसाद से ग्रस्त हैं। वहीं तीसरे स्थान पर अमेरिका आया जहां मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर से ग्रस्त लोगों की संख्या 30.9 प्रतिशत पायी गयी,इस सूची में सबसे नीचे चीन आया, जहां सिर्फ 12 प्रतिशत लोग अवसाद के शिकार हैं। 2020 तक अवसाद दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मानसिक बीमारी हो जाएगी.
आपको यदि अवसाद से बचना है तो खुद को व्यवस्थित कर लीजिए। इसमें कोई खर्च नहीं है, सिर्फ अपनी दिनचर्या और काम-काज को सही तरीके से करने की जरूरत है। साथ ही सेहत का भी ध्यान रखिए। ताजा प्राकृतिक भोजन ही आपकी सेहत के लिए सबसे बढ़िया है।
इसके अलावा अवसाद को दूर भगाने के और उपाय हैं जो कि इस तरह से हैं-
आत्मिक जागरूकता—स्थिति की मांग के अनुसार आत्म जागरूकता की कमी के कारण लोग अपने आपको अवसाद की स्थिति में डाल लेते हैं।
अच्छी तरह पूरी नींद सोयें एक अच्छी और पूरी रात की नींद सकारात्मक उर्जा को प्राप्त करने के लिए बहुत जरूरी है। अध्ययनों से पता चला है कि रोज 7 से 8 घंटे सोने वाले लोगों में अवसाद के लक्षण कम होते हैं।
रोजाना व्यायाम करें –व्यायाम अवसाद को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। इससे न केवल एक अच्छी सेहत मिलती है बल्कि शरीर में एक सकारात्मक उर्जा का संचार भी होता है। व्यायाम करने से शरीर में सेरोटोनिन और टेस्टोस्टेरोन हारमोंस का स्त्राव होता है जिससे दिमाग स्थिर होता है और अवसाद देने वाले बुरे विचार दूर रहते हैं।
मदद मांगे –जिंदगी में कठिन परिस्थितियों में किसी की मदद मांगने में कोई शर्म नहीं है। कोई भी जिंदगी का बोझ अकेला नहीं उठा सकता है। अपने बुरे समय मेंअपने परिवार , सहकर्मी और दोस्त की सहायता लेने से आपको भावनात्मक बोझ से छुटकारा मिलेगा।
नियमित रूप से छुट्टियाँ लें -आपके अन्दर सकारात्मकता लाने के लिए एक दिन का ट्यूर ही काफी है। आगे से यदि आप अवसादग्रस्त महसूस करें तो अपना बैग पैक करें और निकल पड़ें छुट्टी पर।नियमित रूप से छुट्टी पर जाने वाले लोग जीवन की एकरसता और बोरपन से जल्दी निकल जाते हैं बजाय की लगातार कई सप्ताह तक काम में लगे रहने वाले लोगों के।
डायरी लिखें- अपनी रोजाना की गतिविधियों और भावनाओं को लिखने से आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण करने में आपको मदद मिलती है। एक डायरी रखें जिसमे रोजाना लिखें की आप जीवन के बारें में क्या महसूस करते हैं। यह आपके अवसाद को दूर करने में सहायक होगा।
नकारात्मक लोगों से दूर रहें –कोई भी ऐसे लोगों के बीच में रहना पसंद नहीं करता जो कि लगातार दूसरों को नीचे गिराने में लगे रहते हैं। ऐसे लोगों से दूर रहने से मन को शांति और विवेक प्रदान करने में आपको मदद मिलेगी।
अपने आपको दुनिया से दूर करने से बचें –जब आप अवसादग्रस्त हों तो अपने आपको दुनिया से दूर करना आसान होता है लेकिन ऐसा करने से आप अवसाद मुक्ति का अवसर गँवा रहें हैं। यदि पूरा समाधान भी नहीं हो रहा है तो भी लोगों के बीच रहने से निराशाजनक विचारों से अपना ध्यान हटाने में मदद मिलेगी।
हर किसी से यह आशा नहीं करें कि वह आपको समझे –लोग अपनी जिंदगी दूसरों को खुश करने के लिए जीते है और इसमें असफल होने पर अपनी जिंदगी को अवसाद और गम में डुबो लेते हैं। सबको खुश करना संभव नहीं है इसलिए अपनी संतुष्टि पर ध्यान दें बजाय कि दूसरों को महत्त्व देने के।
संगीत से नाता जोड़े और मधुर संगीत सुनें जब आप अवसादग्रस्त होते है तो अच्छा संगीत आपके परेशान मूड को काफी जल्दी ठीक कर सकता है। संगीत में मूड बदलने, मन को उपर उठाने और भावनाओं से उपर उठाने की ताकत होती है।
एक डॉगी को पालें– पालतू डॉगी अपने मालिक से जुड़ने का एक अच्छा तरीका जानते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि पालतू पशु रखने वालें लोग अवसाद से जल्दी निकलते हैं बजाय कि जो लोग अकेले रहते हैं। भावनात्मक रूप से अपने पालतू जानवर से जुड़े रहने से आपको नकारात्मक सोच को दूर करने में मदद मिलेगी।
आज के लिए जिएं –अपनी पुरानी भूलों और गलतियों का शिकवा करने और अनिश्चित भविष्य के बारे में चिंता करने का कोई मतलब नहीं है। जब यह आपके नियंत्रण में ही नहीं है तो अपनी भावनाओं को ख़राब करने से कोई फायदा नहीं। अब, यहाँ, और आज पर फोकस करें बजाय कि कब, कहाँ, और कल।
सेक्सुअल चाहत को नजरंदाज नहीं करें– हालाँकि अवसाद के समय लोग यौन आनंद को प्राप्त करने में संदेह महसूस करते हैं, लेकिन बहूत से लोग यह स्पष्ट रूप से अनुभव के बाद मानते हैं कि सेक्स से अवसाद को दूर करने में मदद मिलती है। इस समय जो हारमोंस स्त्रावित होते हैं वे अवसाद को दूर करते हैं और मानसिक दबाव से राहत प्रदान करते हैं।
मनोचिकित्सक से सलाह लें -अवसाद को दूर भगाने का सबसे मुख्य और आसान तरीका है कि आप मनोचिकित्सक की सलाह लें । मनोचिकित्सक की सलाह से आपको अवसाद की जड़ तक जाने और इसे दूर करने में मदद मिलेगी ।मनोचिकित्सा जबकि एक जानीमानी स्थापित चिकित्सा पद्धति और विशेषज्ञता है, इसके बावजूद इसे लेकर कई तरह की भ्रामक धारणाएं देखी जाती हैं, जिनकी वजह से मनोविकार-संबंधी मुश्किलों के हल में अवरोध आ जाते हैं.ये अवरोध समस्या के कारणों से जुड़े भ्रमों को लेकर होते हैं. जैसे क्या चीज़ कारगर रहेगी, मनोचिकित्सक क्या करेगा, दवाओं का और अस्पताल जाने और वहां भर्ती होने का डर इत्यादि. मनोचिकित्सकों के पास जाने से जुड़ी शर्म या लोकलाज और ये धारणा कि जो भी मनोचिकित्सक से मिलने जाता है उसे ‘पागल’ कहा जाने लगेगा, ये सब मिथक इस मामले से अक्सर जुड़े पाए गए हैं.कुछ लोगों को डर रहता है कि अवसाद या घबराहट की भावना को स्वीकार करना कमज़ोरी की निशानी है, और इसलिए वे इलाज ही नहीं कराते. लेकिन इन अवरोधों से निकलना और समय पर मनोविशेषज्ञ से सलाह लेना बहुत ज़रूरी है.
आकशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने भी कहा, ‘‘मैं देशवासियों से कहना चाहूंगा कि अवसाद ऐसा नहीं है कि उससे मुक्ति नहीं मिल सकती है. एक मनोवैज्ञानिक माहौल पैदा करना होता है और उसकी शुरुआत होती है. पहला मंत्र है, अवसाद से दबने की बजाय उसे व्यक्त करने की जरूरत है.’’ उन्होंने कहा कि अपने साथियों के बीच, मित्रों के बीच, मां-बाप के बीच, भाइयों के बीच, शिक्षक के साथ खुल कर के कहिए आपको क्या हो रहा है. कभी-कभी अकेलापन खास कर के हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को तकलीफ ज्यादा हो जाती है. हमारे मित्र, परिवार, परिसर, माहौल – ये मिलकर के ही हमें अवसाद में जाने से रोक सकते हैं और अगर चले गए हैं, तो बाहर ला सकते हैं. एक और भी तरीका है, अगर अपनों के बीच में आप खुल करके अपने को व्यक्त नहीं कर पाते हों, तो एक काम कीजिए, अगल-बगल में कही सेवा-भाव से लोगों की मदद करने चले जाइए. मन लगा के मदद कीजिए, उनके सुख-दुख को बांटिए, आप देखना, आपके भीतर का दर्द यूं ही मिटता चला जाएगा आपके अन्दर एक नया आत्मविश्वास पैदा होगा. आप अपने मन के बोझ को बहुत आसानी से हल्का कर सकते है.
के के शर्मा , नवल सागर कुंआ , बीकानेर