डा. निशान्त गुप्ता : आप या आपकी नजर में कोई जटिल मूत्र या गुर्दा रोगी (किड्नी फेल) रोगी है तो यह लेख पढ़ें व फॉरवर्ड करें, ऐसी सटीक व नया जीवन देने वाले ईलाज की जानकारी शायद ही मिलती है,इसे सेव करके भी रखें
क्या आपको पता है कि भूख का लगातार कम होना या कमर दर्द रहना बहुत भयानक गुर्दा फ़ेल की ओर इशारा कर सकते है इस रोग के प्रति सजगता न होने से हर वर्ष भारत में ही लगभग 1 लाख रोगी मरते हैं भूख का कम होते जाना,उल्टीयाँ लगने जैसे लक्षण को पेट या लीवर की मामूली बीमारी मानते हुए लाक्षणिक चिकित्सा शुरू कर दी जाती है लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसे मामूली से दिखने वाले लक्षण किड्नी फ़ेल की और इशारा कर सकते हैंl
दूसरा चौंकाने वाला तथ्य है कि आधुनिक चिकित्सा में आज तक किड्नी फ़ेल व संबंधित रोगों का कोई इलाज है ही नही,केवल डायलिसिस(एक तरह से बाहरी-नकली किड्नी द्वारा खून बदलकर आवश्यक कार्य कराना जिससे किड्नी अपना थोडा-बहुत काम भी भूलकर और ज्यादा खराब होती जाती है और डायलिसिस पर निर्भर हो जाती है)व अंतत:गुर्दा प्रत्यारोपण हैl
वहीं दूसरी और आयुर्वेद में “वृक्कर्मण्यता” के नाम से जानलेवा किड्नी फ़ेल जैसे रोगों का सटीक उपचार हजारों वर्ष पहले ही खोज लिया थाl इस ही विध्या द्वारा आज भी भारत में हर वर्ष हज़ारों रोगियोँ को ठीक किया जाता है वो अलग बात है की किड्नी रोग का पंचकर्मा व औषधियों के आधार पर सटीक उपचार कुछ ही आयुष चिकित्सकों के पास उपलब्ध हैl यह तो पक्का है कि आप एलोपैथी चिकित्सक को दिखा चुके होंगे व भली-भाँति यह भी आभास हो चुका होगा कि आरंभिक स्तर पर एंटीबायोटिक से व गुर्दा फेल जैसी स्थितियों में सिवाय डायलिसिस आदि से कंट्रोल करने के लिए एलोपैथी चिकित्सा में आज तक ऐसे रोगों का कोई इलाज है ही नहीँ
पर हो सकता है आपको यह पता ही न हो कि आयुर्वेद में ऐसे गुर्दा रोगों तक का सटीक इलाज ‘वृक्करोगाधिकारः’ के अंतर्गत हज़ारों वर्ष पहले लिख दिया गया था जिनमें आधुनिक चिकित्सक गुर्दा प्रत्यारोपण(किड्नी ट्रांसप्लांट)ही एकमात्र विकल्प बता देते हैं।
किड्नी रोग के लक्षण- भूख कम होते जाना,उल्टी या उब्काई आना,कमजोरी,ज्यादातर मुँह व पैरों पर सूजन आना,पेशाब संबंधी कोई भी दिक्कत,चमडी का रंग काला पडना,कमर के निचले हिस्से में दर्द,पेट व कमर पर खुजली रहना आदि
मुख्य कारण- शुगर होना,हाई बी.पी रहना,पथरी होना,शराब का अति सेवन,दुर्घटना आदि में चोट लगना आदि, गुर्दे के मुख्य कार्य- शरीर के विजायतीय द्रव्यों को छानकर मूत्र द्वारा निश्कासित करना,खून में कैल्शियम का स्तर व बी.पी नियन्त्रित करना,हीमोग्लोबिन(रक्त कण)का निर्माण करनाl
किड्नी रोग को कैसे सुनिश्चित करें-उप्रलिखित लक्षण दिखने पर कुशल चिकित्सक से सम्पर्क कर किड्नी फंक्शन टैस्ट,जी.ऐफ़.आर,अल्ट्रlसाउंड,आई.वी.पी,मूत्र जाँच आदि करायेंl
रोग पुश्टि होने पर-अच्छे गुर्दा रोग विशेश्ग्य से तुरंत इलाज शुरू करायें(संभव हो तो शुरुआत में ही आयुर्वेदिक चिकित्सक से)व डायलिसिस की सलाह मिलने पर कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक ढूँढकर तुरंत चिकित्सा शुरू करें ,पूरी संभावना है आप डायलिसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण(दोनो प्रोसेस अत्यन्त महंगे व आम आदमी के वश से बाहर हैं) मुक्त जीवन यापन कर सकेंगेl
क्या न करें- ऐसे हकीम-वैध्य जो अक्सर आकर्षण पैदा करने के लिये जंगलों में बैठते हैं,अलग-अलग स्तर की जटिलताओं वाले रोगियों को एक जैसी ही दवा बाँटते हैं,कुछ दवायें रोगी से मँगाकर बाकी दवायें खुद बनाकर-मिलाकर देने की बात करते हैं,ऐसे लोगों से इलाज कराने से बचें व
सोशियल मीडिया आदि पर घूमने वाले आकर्षक लेख (गोखरू-कासनी काढा द्वारा घरेलू इलाज)बिल्कुल न करें क्योंकि गुर्दा रोग जैसे कष्टसाध्य रोग का इलाज घरेलू नुस्खों द्वारा संभव नही व यह अपने साथ लीवर,हृदय आदि अँगो को जरूर प्रभावित करता है इसलिये ये रोग एक कुशल चिकित्सक ही सम्भाल सकता हैl
ईश्वर आपको स्वस्थ रखे
एलोपैथी चिकित्सक आजकल ऐसे रोगियों को अपनी अन्भिग्यता या कई बार जान-बूझकर आयुर्वेदिक दवायों में हैवी मैटल्स पडा होने का डर दिखाकर न खाने की हिदायत देते हैं,
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यहाँ एक बात और समझने वाली है कि हाँलाकि लगभग हर आयुर्वेदिक चिकित्सक गुर्दा रोगों का इलाज करने का दावा करते हैं व गुर्दा रोगों में प्रयुक्त होने वाली 90% औषधियों का सभी को पता होता है लेकिन सबसे बड़ा फ़र्क़ यही है कि ऐसे जटिल रोगों में यह बात बहुत मायने रखनी है कि यदि ये औषधियाँ उसी शास्त्रोक्त विधि से बनी होंगी तो अपना प्रभाव देंगी अन्यथा नहीँ।अधिकतर आयुर्वेदिक फार्मेसी द्वारा ऐसी औषधियों में डलने वाले घटक और बनाने की विधि इतनी न्यून स्तर की कर दी गयी हैं कि वें अपना प्रभाव ही नहीँ देती।
अधिकतर सम्मानित वैद्यगण मेहनत से बचने के लिए या फिर ऐसी औषधियाँ बनाने का ज्ञान न होने के कारण ऐसी अधूरी विधि,कच्ची भस्म युक्त औषधियाँ प्रयोग करते हैं जिनके कारण प्रभाव नहीँ मिलता।गुर्दा रोग में बहुतायत प्रयोग होने वाली बाज़ारू चंद्रप्रभा वटी,गोक्षुरादि गुग्गुलु तक अल्प परिणाम वाली हो गई है व ‘सर्वतोमाहेश्वर वटी,निर्विशियादि वटी आदि जैसी औषधियाँ तो अब कोई भी विश्वसनीय फार्मेसी बनाती ही नहीँ।
ऐसी औषधियाँ स्वयं बनाकर उनसे इलाज करने के कारण ही चंद आयुर्वेदिक चिकित्सक आज भारतवर्ष में गुर्दा फेल जैसे रोगियों का सफल इलाज कर पा रहे हैं,इसके अलावा यह बिंदु भी समझने वाला है कि अलग-अलग कारण से अलग-अलग मूत्र-गुर्दा रोग पनपते हैं तो फिर उनके लिए एक जैसी दवाओं की किट बनाकर व बेचकर कैसे इस प्रकार के जटिल मूत्र-गुर्दा रोगों को ठीक किया जा सकता है(अधिकतर तथाकथित विशेषज्ञों द्वारा इसी प्रकार का अपूर्ण,गैर वैज्ञानिक चिकित्सा व्यापार देखने को मिल रहा है