अतीत ; अग्निचयन आयुर्वेद आयुर्विज्ञान की प्राचीन भारतीय पद्धति है। यह आयु का वेद अर्थात आयु का ज्ञान है। जिस शास्त्र के द्वारा आयु का ज्ञान कराया जाय उसका नाम आयुर्वेद है। शरीर, इन्द्रिय सत्व और आत्मा के संयोग का नाम आयु है। प्राण से युक्त शरीर को जीवित कहते है। आयु और शरीर का संबंध शाश्वत है। यह मनुष्य के जीवित रहने की विधि तथा उसके पूर्ण विकास के उपाय बतलाता है, इसलिए आयुर्वेद अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह एक चिकित्सा पद्धति मात्र नही है, अपितु सम्पूर्ण आयु का ज्ञान है।
आयुर्वेद में आयु के हित (-पथ्य, आहार, विहार), अहित (-हानिकर, आहार, विहार), रोग का निदान और व्याधियों की चिकित्सा कही गई है। हित आहार, सेवन एवं अहित आहार त्याग करने से मनुष्य पूर्ण रुप से स्वस्थ रह सकता है। आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के चरम लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। पुरुषार्थ चतुष्टयं की प्राप्ति का मुख्य साधन शरीर है अतः उसकी सुरक्षा पर विशेष बल देते हुए आयुर्वेद कहता है कि धर्म अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति का मुख्य साधन शरीर है। अतः मनुष्य को हर तरीके से शरीर की रक्षा करना चाहिए।
भाव प्रकाश में कहा गया है कि जिस शास्त्र के द्वारा आयु का ज्ञान, हित और अहित आहार विहार का ज्ञान, व्याधि निदान तथा शमन का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसको आयुर्वेद कहते हैं।
आयुर्वेद का उद्देश्य :: आयुर्वेद का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी हो जाने पर उसके विकार का प्रशमन करना है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर से ही सम्भव है। अतः आत्मा के शुद्धिकरण के साथ शरीर की शुद्धि व उत्तम स्वास्थ्य भी जरूरी है।
आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थ :: चरक संहिता-चरक, सुश्रुत संहिता-सुश्रुत, अष्टांग हृदय-वाग्भट्ट, वंगसेन-वंगसेन, माधव निदान-माधवाचार्य, भाव प्रकाश-भाव मिश्र
इन ग्रन्थों के अतिरिक्त वैद्य विनोद, वैद्य मनोत्सव, भैषज्य रत्नावली, वैद्य जीवन आदि अन्य वैद्यकीय ग्रन्थ हैं। वैद्य जीवन के रचयिता पंडितवर लोलिम्बराज हैं। उनके इस ग्रन्थ को अतीत में एवं आधुनिक काल में अधिक श्रद्धा के साथ वैद्यों ने अपनाया है।
आयुर्वेद अवतरण :: इसकी उत्त्पत्ति ब्रह्मा जी से है, जिन्होंने ब्रह्मसंहिता की रचना की थी। ब्रह्मसंहिता में दस लाख श्लोक तथा एक हजार अध्याय हैं। आयुर्वेद का वर्णन सभी चारों वेदों में किया गया है। अथर्ववेद में इसकी गहन व्यख्या-वर्णन है। आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है। ऋग्वेद में आयुर्वेद को उपवेद की संज्ञा दी गयी है। महाभारत में भी आयुर्वेद को उपवेद कहा गया है। पुराणों में भी आयुर्वेद का वृहद-विस्तृत वर्णन है। आयुर्वेद को पांचवां वेद कहा गया है।
चरक संहिता के अनुसार ब्रह्मा जी नें आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान दोनों अश्विनी कुमार को दिया, अश्वनी कुमारों ने यह ज्ञान इन्द्र को दिया, इन्द्र ने यह ज्ञान भरद्वाज को दिया, भरद्वाज ने यह ज्ञान आत्रेय पुनर्वसु को दिया, आत्रेय पुनर्वसु ने यह ज्ञान अग्निवेश, जतूकर्ण, भेल, पराशर, हरीत, क्षारपाणि को दिया ।
सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान अश्वनी कुमारों को दिया, अश्वनीकुमारों से यह ज्ञान धन्वन्तरि को दिया, धन्वन्तरि ने यह ज्ञान औपधेनव, वैतरण, औरभ, पौष्कलावत पौष्कलावत, करवीर्य, गोपुर रक्षित और सुश्रुत को दिया। कश्यप संहिता के अनुसार ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद का ज्ञान अश्वनीकुमारों को दिया और अश्वनीकुमारों ने यह ज्ञान इन्द्र को दिया और इन्द्र ने यह ज्ञान कश्यप, वशिष्ठ, अत्रि, भृगु आदि को दिया।अत्रि ने यह ज्ञान अपने एक पुत्र और अन्य शिष्यों को दिया। सृष्टि के प्रणेता ब्रह्मा जी के द्वारा एक लाख सूत्रों में आयुर्वेद का वर्णन किया गया और इस ज्ञान को दक्ष प्रजापति द्वारा ग्रहण किया गया तत्पश्चात् दक्ष प्रजापति से यह ज्ञान सूर्यपुत्र अश्विन कुमारों को और अश्विन कुमारों से स्वर्गाधिपति इन्द्र को प्राप्त हुआ। इन्द्र के द्वारा यह ज्ञान पुनर्वसु आत्रेय को यह प्राप्त हुआ। शल्य शास्त्र के रुप में यह ज्ञान आदि धन्वन्तरि को प्राप्त हुआ और स्त्री एवं बाल चिकित्सा के रुप में यह ज्ञान इन्द्र से महर्षि कश्यप को दिया गया। चिकित्सा कार्य को करने के लिए स्वर्गाधिपति इन्द्र की अनुमति आवश्यक थी। चरक संहिता को कश्मीर के आयुर्वेदज्ञ दृढ़बल नें पुर्नसंगृहित किया। इस समय के प्रसिद्ध आयुर्वेदज्ञों में मत्त, मांडव्य, भास्कर, सुरसेन, रत्नकोष , शम्भु, सात्विक, गोमुख, नरवाहन, इन्द्रद, काम्बली, व्याडि आदि रहे हैं।
महात्मा बुद्ध के समय में आयुर्वेद विज्ञान नें सबसे अधिक प्रगति रस चिकित्सा विज्ञान और रस विद्या में किया है। रस विद्या तीन भागों :: (1). धातु विद्या (2). रस चिकित्सा (3). क्षेम विद्या, में विभाजित हुई।