पलाश को शास्त्रों में ब्रह्मा के पूजन अर्चन हेतु पवित्र माना है। पलाश के तीन पत्ते भारतीय दर्शनशास्त्र के त्रित्व के प्रतीक है। इसके त्रिपर्नकों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास माना जाता है। पलाश का वृक्ष समस्त भारत में मैदानी इलाकों से लेकर 1200 मीटर कि ऊंचाई तक पाए जाते हैं। इसका तना प्राय: टेढ़ा मेढ़ा तथा पत्तियां 3-3 के समूह में लगी होकर कुछ मोटी व् एक तरफ से खुरदुरी व् दूसरी तरफ से कुछ चिकनी व् अधिक गहरी होती है। इसके फूल गहरे केशरिया लाल वर्ण के होते हैं। जिनके दलपत्र गहरे गहरे कत्थई वर्ण के अवम मोटे व् मखमली होते हैं। बसंत के आगमन पर जब वे वृक्ष पतझड़ के पश्चात फूलों से लड़ते है, तब दूर से देखने पर वृक्ष समूह अग्निज्वाला कि भाँती दिखाई देते हैं, इसलिए इसे जंगल कि आग भी कहते हैं।
विभिन्न भाषाओँ में इसके नाम .
हिंदी – पलाश, परास, ढाक, टेसू, छिडल, संस्कृत – पलाश, किंशुक, क्षार श्रेष्ठ, बंगला – पलाश गाछ, मराठी – पलस, गुजरती – खासरो, फारसी – दरख्तेपल, अंग्रेजी – बस्टर्ड टीक
पलाश की प्रजातियाँ
पलाश की दो प्रजातियाँ पायीं जाती हैं, सफ़ेद और लाल, लाल पलाश तो सर्व सुलभ है मगर सफ़ेद पलाश दुर्लभ ही मिलता है। पलाश ढेरों आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर है।
आइये जानते हैं इसके स्वास्थय लाभ .
छाल : नाक, मल-मूत्र मार्ग या योनि द्वारा रक्तस्त्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें।
पलाश का गोंद : पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध या आँवला रस के साथ लेने से बल-वीर्य की वृद्धी होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं। यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
श्वेत कुष्ठ उपचार में .
प्रारंभिक अवस्था का श्वेत कुष्ठ पलाश कि जड़ के चूर्ण के सेवन से ठीक हो जाता है। उसके लिए पलाश की जड़ को भली प्रकार सुखाकर उसके चूर्ण कि 5 ग्राम मात्रा जल से लेनी चाहिए। जड़ को घिसकर उस स्थान पर लगाया भी जा सकता है।
रक्त एवम पित्त विकार में .
पलाश कि ताज़ा निकाली हुई छाल के काढ़े का सेवन कुछ दिनों तक करें। काढ़ा जल में बनाये .इस हेतु २०० मि. ली. जल में १० ग्राम छाल को प्रयाप्त उबालकर काढा तैयार करें।
आंखों के रोग :-
पलाश की ताजी जड़ का 1 बूंद रस आंखों में डालने से आंख की झांक, खील, फूली मोतियाबिंद तथा रतौंधी आदि प्रकार के आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
पलाश की जड़ का प्रयोग रतौंधी (रात में दिखाई न देना) को ठीक करने, आंख की सूजन को नष्ट करने तथा आंखों की रोशनी को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
नकसीर (नाक से खून आना) :-
पलाश के 5 से 7 फूलों को रात भर ठंडे पानी में भिगोएं। सुबह के समय में इस पानी से निकाल दें और पानी को छानकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर पी लें इससे नकसीर में लाभ मिलता है।
मिर्गी :-
4 से 5 बूंद टेसू की जड़ों का रस नाक में डालने से मिर्गी का दौरा बंद हो जाता है।
गलगण्ड (घेंघा) रोग :-
पलाश की जड़ को घिसकर कान के नीचे लेप करने से गलगण्ड मिटता है।
अफारा (पेट में गैस बनना) :-
पलाश की छाल और शुंठी का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा सुबह और शाम पीने से अफारा और पेट का दर्द नष्ट हो जाता है।
उदरकृमि (पेट के कीड़े) :-
पलश के बीज, कबीला, अजवायन, वायविडंग, निसात तथा किरमानी को थोड़े सी मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर रख लें। इसे लगभग 3 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ देने से पेट में सभी तरह के कीड़े खत्म हो जाते हैं। टेसू के बीजों के चूर्ण को 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के सभी कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं।
प्रमेह (वीर्य विकार) :-
पलाश की मुंहमुदी (बिल्कुल नई) कोपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ में मिलाकर लगभग 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से प्रमेह नष्ट हो जाता है।
टेसू की जड़ का रस निकालकर उस रस में 3 दिन तक गेहूं के दाने को भिगो दें। उसके बाद दोनों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) और कामशक्ति की कमजोरी दूर होती है।
वाजीकरण (सेक्स पावर) :-
5 से 6 बूंद टेसू के जड़ का रस प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव (शीघ्रपतन) रुक जाता है और काम शक्ति बढ़ती है।
टेसू के बीजों के तेल से लिंग की सीवन सुपारी छोड़कर शेष भाग पर मालिश करने से कुछ ही दिनों में हर तरह की नपुंसकता दूर होती है और कामशक्ति में वृद्धि होती है।
लिंग कि दृढ़ता हेतु .
पलाश के बीजों के तेल कि हल्की मालिश लिंग पर करने से वह दृढ होता है. यदि तेल प्राप्त ना कर सकें तो पलाश के बीजों को पीसकर तिल के तेल में जला लें तथा उस तेल को छानकर प्रयोग करें .इससे भी वही परिणाम प्राप्त होते है।
स्तम्भन एवम शुक्र शोधन हेतु .
इसके लिए पलाश कि गोंद घी में तलकर दूध एवम मिश्री के साथ सेवन करें . दूध यदि देसी गाय का हो तो श्रेष्ठ है।
हाथी पाँव में.
पलाश कि जड़ का चूर्ण अरंडी के तेल में मिलाकर लगाने से लाभ होता है.इस हेतु आवश्यकतानुसार जड़ का चूर्ण एवम तेल का प्रयोग करें।
रक्तार्श (खूनी बवासीर) :-
टेसू के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) की राख लगभग 15 ग्राम तक गुनगुने घी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में आराम होता है। इसके कुछ दिन लगातार खाने से बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।
अतिसार (दस्त) :-
टेसू के गोंद लगभग 650 मिलीग्राम से लेकर 2 ग्राम तक लेकर उसमें थोड़ी दालचीनी और अफीम (चावल के एक दाने के बराबर) मिलाकर खाने से दस्त आना बंद हो जाता है।
टेसू के बीजों का क्वाथ (काढ़ा) एक चम्मच, बकरी का दूध 1 चम्मच दोनों को मिलाकर खाने के बाद दिन में 3 बार खाने से अतिसार में लाभ मिलता है।
सूजन :-
टेसू के फूल की पोटली बनाकर बांधने से सूजन नष्ट हो जाती है।
सन्धिवात (जोड़ों का दर्द) :-
टेसू के बीजों को बारीक पीसकर शहद के साथ दर्द वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात में लाभ मिलता है।
बंदगांठ (गांठ) :-
टेसू के पत्तों की पोटली बांधने से बंदगांठ में लाभ मिलता है।
टेसू के जड़ की तीन से पांच ग्राम छाल को दूध के साथ पीने से बंदगांठ में लाभ होता है।
अंडकोष की सूजन :-
टेसू के फूल की पोटली बनाकर नाभि के नीचे बांधने से मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) के रोग समाप्त हो जाते हैं और अंडकोष की सूजन भी नष्ट हो जाती है।
टेसू की छाल को पीसकर लगभग 4 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सुबह और शाम देने से अंडकोष का बढ़ना खत्म हो जाता है।
हैजा :-
टेसू के फल 10 ग्राम तथा कलमी शोरा 10 ग्राम दोनों को पानी में घिसकर या पीसकर लेप बना लें। फिर इसे रोगी के पेडू पर लगाएं। यह लेप रोगी के पेड़ू पर बार-बार लगाने से हैजा रोग ठीक हो जाता है।
गर्भनिरोध :-
टेसू के बीजों को जलाकर राख बना लें और इस राख से आधी मात्रा हींग को इसमें मिलाकर रख लें। इसमें से तीन ग्राम तक की मात्रा ऋतुस्राव (माहवारी) प्रारंभ होते ही और उसके कुछ दिन बाद तक सेवन करने से स्त्री की गर्भधारण करने की शक्ति खत्म हो जाती है।
टेसू के बीज दस ग्राम, शहद बीस ग्राम और घी 10 ग्राम सब को मिलाकर इसमें रुई को भिगोकर बत्ती बना लें और इसे स्त्री प्रसंग से 3 घंटे पूर्व योनिभाग में रखने से गर्भधारण नहीं होता है।
बांझपन में .
बांझपन में पलाश कि फली को सुखाकर जलाकर इसकी राख बना लें .इस राख को देसी गाय के दूध के साथ सेवन करने से बांझपन दूर होता है .
ढाक पलाश का पत्ता भी गर्भधारण करने में बहुत सहयोगी हैं। गर्भधारण के पहले महीने १ पत्ता, दूसरे महीने २ पत्ते, इसी प्रकार नौवे महीने ९ पत्ते ले कर १ गिलास दूध में पकाकर प्रात: सांय लेना चाहिए। ये प्रयोग जिन्होंने भी किया हैं उनको चमत्कारिक फायदा हुआ हैं।
पलाश के पत्तल .
पलाश के पत्तों से बने पत्तल पर नित्य कुछ दिनों तक भोजन करने से शारीरिक व्याधियों का शमन होता है। यही कारण है के प्राचीनकाल से पलाश के पत्तों से निर्मित पत्तलों पर भोजन किया जाता है।