कुमार गिरीश साहू , जयपुर : एड्स का अर्थ है रुक्वायर्ड इम्युनो डेफिसियेन्सी सिन्ड्रोम। यह रोग संभोग अथवा सुई के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्तियों तक पहुंचती है। एड्स से ग्रस्त रोगी का खून यदि भूल से किसी अन्य व्यक्ति को चढ़ा दिया जाए तो वह व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त हो जाता है। इस रोग में रोगी के खून में सफेद कण कम हो जाते हैं जिसके कारण शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस रोग के लक्षण काफी साल बाद रोगी के शरीर में नज़र आते हैं।
लक्षण-
एड्स का रोग होने के लगभग 8 से 9 वर्ष बाद रोगी के शरीर पर लाल-लाल दाने उभरने लगते हैं जिनमेंखुजली होती रहती है। इसके अलावा एड्स के रोगी को बार-बार बुखार होना, बीच-बीच में पैखाना अधिक आना आदि लक्षण उभरते हैं।
चिकित्सा:
1. बड़ी चोबचीनी: 40 ग्राम बड़ी चोबचीनी की जड़ का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से संभोग के कारण उत्पन्न हुए फोड़े-फुंसी आदि दूर हो जाते हैं।
2. हाऊबेर: हाऊबेर एक अच्छी औषधि है। इसे किसी भी तरह के संक्रमण में प्रयोग करना लाभकारी रहता है। यहां तक कि हाऊबेर औषधि स्थूलान्त्र दण्डाणु जैसे जीवाणुओं को भी खत्म करने में सक्षम होती है। कठिन से कठिन संक्रमण में भी इसकी 2 से 6 ग्राम की मात्रा प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से रोग होने का डर नहीं रहता है। इसलिए इसे एड्स जैसे भयंकर रोगों में भी प्रयोग किया जा सकता है।
3. हल्दी: 4 ग्राम हल्दी को प्रतिदिन गाय के पेशाब के साथ सेवन करने से खाने से खून पूरी तरह साफ हो जाता है।
4. लताकस्तूरी: लताकस्तूरी के पत्तों एवं फूल के लुआव में मिश्री मिलाकर सुबह शाम खाने से संभोग करने से उत्पन्न होने वाले रोगों में लाभ होता है।
5. फिटकरी: 20 ग्राम फिटकरी की भस्म में 1 ग्राम मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह और शाम खाने से एड्स रोग में आराम मिलता है।
6. अन्नतमूल: 40 से 80 मिलीलीटर अन्नतमूल के फांट या घोल को प्रतिदिन दिन में 3 बार पीना एड्स जैसे रोगों में लाभकारी होता है।
7. दालचीनी: दालचीनी एड्स के रोगियों के लिये बहुत ही लाभदायक होती है क्योंकि इससे खून में सफेद कणों की वृद्धि होती है, जबकि एड्स रोग में सफेद कणों का कम होना ही अनेक रोगों को आमन्त्रित करता है। इसके साथ ही दालचीनी पेट के कीड़ों को साफ करने, घाव को भरने आदि में लाभकारी होती है। लगभग आधा ग्राम दालचीनी का चूर्ण या तेल 1 से 3 बूंद की मात्रा में प्रतिदिन 3 बार सेवन करना चाहिए।
8. गिलोय: 7 से 10 मिलीलीटर गिलोय का रस, शहद या कड़वे नीम के रस अथवा हरिद्रा, खदिर एवंआंवला के साथ प्रतिदिन 3 बार खाने से एड्स रोग में लाभ होता है। यह उभरते घाव, प्रमेह कारणमूत्रसंस्थान के रोग आदि में लाभदायक होता है।
9. पित्तपापड़ा: पित्त पापड़ा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा प्रतिदिन सुबह-शाम 25 से 50 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से खून के विकार दूर होते हैं।
10. ब्राह्मी: ब्राह्मी का रस 5 से 10 मिलीलीटर अथवा चूर्ण 2 ग्राम से 5 ग्राम सुबह शाम लेना लाभकारी होता है क्योंकि यह गांठों को खत्म करता है और शरीर को गलने से रोकता है। इसे निर्धारित मात्रा से अधिक लेने से चक्कर आदि आ सकते हैं।
11. अनन्तमूल: अनन्तमूल को कपूरी, सालसा आदि नामों से जाना जाता है। यह अति उत्तम खून शोधक है। इसके चूर्ण के सेवन से मूत्र की मात्रा दुगुनी या चौगुनी हो जाती है। मूत्र की अधिक मात्रा होने से शरीर को कोई हानि नहीं होती है। यह जीवनी शक्ति को बढ़ाता है, शक्ति प्रदान करता है। यह मूत्र साफ लाने वाला, खून साफ करने वाला, त्वचा साफ करने वाला,, घाव भरने वाला, शक्ति बढ़ाने वाला, जलनखत्म करने वाला होता है। इसका चूर्ण लगभग 1 ग्राम के चौथे भाग की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से सुजाक जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं।
12. वायबिडंग: एड्स रोग में जीवनी शक्ति की कमी और जीवाणु जनित दोषों की वृद्धि होती है। जबकि वायबिडंग समस्त प्रकार के जीवाणुओं को खत्म करने में सफल माना जाता है। लगातार 2 महीने तक प्रतिदिन वायबिडंग का सेवन करने से स्मरण शक्ति, धारण शक्ति और ग्रहण शक्ति बढ़ती है और शरीर स्वास्थ रहता है। इसे एड्स रोग में 1 वर्ष तक खाने से अधिक लाभ होता है। यह वायु रोग, पित्त, बलगम, एवं सत्व, तम, रज आदि दोषों को खत्म करता है। प्रथम 3 महीने तक इसे 10 ग्राम तथा बाद में 5 ग्राम प्रतिदिन सुबह-शाम खाना चाहिए।
13. लाल चित्रक: लाल चित्रक (लाल चीता) को आधा से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से शरीर स्वस्थ होता है।
14. तिल का तेल एंटीबायोटिक का कार्य करता है! क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पुनः संपादित करके सुचारू रूप से नई कोशिकाओं का बनना शुरू कर देता है है, जिसमें कैसर तथा ऐड्स के रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है, इसलिए भोजन में तिल का तेल का उपयोग अवश्य करें!