नारायण दत्त, उत्तराखंड : ध्यान रहे,परमपिता परमात्मा ने प्राणियों के आहार को निर्धारण स्वतः ही किया है जैसे-गाय,हिरण,हाथी,घोड़े,गदहों के लिए घास और बाघ,सिंहादि के लिए मांस,तो परमात्मा ने उन-उन प्राणियों के शरीर की रचना भी आहार को सहजता से खाने एवं पचाने योग्य बना दी है।
जब परमात्मा ने ही हिंसक प्राणी यथा-सिंहादि का आहार मांस बनाया है तो यदि वे प्राणी किसी अन्य प्राणी को मारकर अपनी भूख मिटाते हैं तो उसमें पाप-पुण्य,हिंसा इत्यादि नहीं होती।
अब देखिये कग मांसाहारी और शाकाहारी प्राणियों के शरीर की रचना में परमात्मा ने किस प्रकार भेद निर्माण किया है,यथा-
(1) शाकाहारी–प्राणियों के मुख म़े दाढ़े होती हैं जिसे वे अन्न को पीस देते हैं।दांतों में अंतर नहीं होता।
(1)मांसाहारी:-प्राणियों के मुख के अग्र भाग में तीक्ष्ण नुकीले दो दांत किल्ले रुप में होते हैं ताकि वो अन्य प्राणियों को फाड़-फाड़कर खा सकें और उनके दाढ़े नहीं होने से यह मांस रुपी भोजन को सीधा सटकते हैं,पीसकर नहीं खाते तथा दांतों में भी अन्तर होता है।
(2) शाकाहारी–प्राणी होंठ से पानी पीते हैं।
(2) मांसाहारी–जीभ से चाट-चाट कर(चप चप करके) पानी पीते हैं।
(3) शाकाहारी–इनकी संतान की आंखें पैदा होते ही खुलती हैं,बंद नहीं रहती।
(3) मांसाहारी–इनके बच्चों की आंखें पैदा होने पर बंद रहती हैं,जो 2-3-4 दिनों बाद खुलती हैं।
(4) शाकाहारी–तीक्ष्ण नाखून नहीं होते,एक शफ या दो शफ रहते हैं,पंजे नहीं होते।
(4) मांसाहारी–पंजों पर नाखून तीक्ष्ण व नुकीले होते हैं ताकि शिकार को आसानी से फाड़कर उसे खा सकें।
(5) शाकाहारी–पांव की रचना से चलते समय आवाज हो सकती है।
(5) मांसाहारी–पांव के तलवे ऐसे(गद्दीदार) होते हैं जिससे चलने में आवाज न हो,ताकि अपने शिकार को सुगमता से प्राप्त कर सकें।
(6) शाकाहारी–बचपन के दांत गिरकर पुनः नये दांत आते हैं।
(6) मांसाहारी–बचपन के दांत गिरकर पुनः दूसरे नये दांत नहीं आते।
(7) शाकाहारी-आंतों की लम्बाई उनके शरीर से 8 से 10 गुना बड़ी होती है।
(7) मांसाहारी–आंतों की लम्बाई कम होती है,कारण? मांस आंतों में ज्यादा समय न रहे।
(8) शाकाहारी–हरित द्रव्य पचाने की शक्ति होती है।
(8) मांसाहारी–हरित द्रव्य पचाने की क्षमता नहीं होती।
(9) शाकाहारी–लीवर व पित्ताशय छोटा होता है।
(9) मांसाहारी–लीवर व पित्ताशय शरीर के परिमाण से बड़ा रहता है।
(10) शाकाहारी–आंखें बादाम जैसी आकृति की होती हैं और रात्रि/अंधेरे में पूर्णतः नहीं देख सकते।
(10) मांसाहारी–आंखें गोल होती हैं,रात्रि/अंधेरे में स्पष्ट दिखायी पड़ता है।
(11) शाकाहारी–साधारणतः रात्रि में सोते हैं तथा दिन में जागते एवं चलते फिरते हैं।
(11) मांसाहारी–रात्रि में चलते-फिरते हैं,दिन में प्रायः सोते रहते हैं।
(12) शाकाहारी–क्रूरता,धोखाधड़ी आदि नहीं करते,बलवान होते हैं,इनके कार्य करने की क्षमता अधिक होती है तथा इनमें आत्मिक व शारिरिक बल अधिक पाया जाता है।
(12) मांसाहारी–क्रूर,धोखेबाज,दगाबा
(13) शाकाहारी–भूखा रहने की क्षमता बहुत होती है तथा भूख रहने पर भी किसी को हानि पहुंचाने की भावना नहीं रखते।
(13) मांसाहारी–भूख न रहने पर भी दूसरे प्राणियों को मारते हैं।
(14) शाकाहारी–ये स्वभावतः साधन होते हुए भी शिकार नहीं करते,और न ही ये शिकार कला में निपुण होते हैं।
(14) मांसाहारी–किसी हथियार या साधन के बिना ही शिकार कर सकते हैं।मांसाहारी जीव शिकार कला में स्वाभाविक ही निपुण होते हैं।
(15) शाकाहारी–श्वास-प्रश्वास क्रिया धीमी अर्थात् मंद गति होने के कारण ये दीर्घ जीवन(लम्बी आयु) वाले होते हैं तथा समाज में रहनि पसंद करते हैं।
(15) मांसाहारी–श्वसन प्रक्रिया तेज अर्थात् गतिमान होने के कारण ये दीर्घ आयु वाले नहीं होते तथा समूह में अर्थात् झुंड़ में रहना पसंद नहीं करते।
(16) शाकाहारी–भाग-दौड़(परिश्रम) करने पर पसीना आता है।
(16) मांसाहारी–छलांग मारते हुए अर्थात् बहुत दौड़ने(परिश्रम) पर भी पसीना नहीं आता।
(17) शाकाहारी–खून पीने की इच्छा स्वाभाविक रुप से नहीं होती इसलिए खून पचा भी नहीं सकते तथा इनका रक्त क्षारयुक्त होता है।
(17) मांसाहारी–खून पीने की तीव्र इच्छा होती है और खून पचा सकते हैं।इनका रक्त आम्लयुक्त होता है।
(18) शाकाहारी–शरीर की बाहरी ऊर्जा का उत्सर्जन जिसे आभा कहते हैं अधिक होता है।
(18) मांसाहारी–शरीर की ऊर्जा कम उत्सर्जित होती है,अतः शरीर से बाहर उत्सर्जन कम मात्रा में होता है।
(19) शाकाहारी–माँ का वात्सल्य (प्रेम) अधिक रहता है,भूख लगने पर अपने बच्चों को माँ कदापि नहीं खाती।
(19) मांसाहारी–हिंसक जीव मातृत्व में क्रूरता से भूख लगने पर अपने बच्चों को स्वयं खा जाते हैं।(मैंने स्वयं घरेलू बिल्ली को खुद ही अपने बच्चों को खाते हुए देखा,तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा।-“लाजपत राय अग्रवाल”)
(20) शाकाहारी–खाद्य पाचन के लिए जो इन्झीमीज तैयार होता है वह केवल वनस्पती-जन्य पदार्थों को ही पचा सकता है।वनस्पति के सेवन से एसिड,टोझीन्स नहीं होते,उत्तेजना न होने से स्वभाव शान्त व दयालु किस्म का होता है।
(20) मांसाहारी–मांस को पचाने वाला इन्झीमीज तैयार होता है।मांस में एसिड और Toyins बहुत हैं जिसके कारण उत्तेजना होती है,परन्तु शक्ति नहीं आती तथा हिंसक प्राणियों का स्वभाव क्रूर व भयानक किस्म का होता है।
परमात्मा ने सर्वश्रेष्ठ मानव प्राणी को शाकाहारी ही बनाया है इसकी शरीर रचना से यह सिद्ध होता है।जन्म से प्राप्त मन के झुकाव को Nature स्वभाव कहते हैं और जन्म के बाद सीखी हुई बातों को Habit आदत कहते हैं।
मनुष्य स्वभावतः शाकाहारी है,मांसाहार एक आदत है।६-७ मास का शिशु है,उसके सामने लाल-लाल पपीते के टुकड़े थाली में रक्खें और दूसरी थाली में रक्त से सने हुए मांस के लाल-लाल टुकड़े रक्खें,जब शिशु को उन थालियों की दिशा में छोड़ा गया,तो यह दृश्य देखा गया कि वह निष्पाप अजान निरामिस शिशु पपीते के टुकड़े की और ही गया,मांस के टुकडे़ उसे आकर्षित नहीं कर सके।अतः मनुष्य मांसाहारी प्राणी नहीं है,शाकाहारी है इसकी पुष्टि इस बात से भी हो जाती है