मोदी जी , अपने Ecosystem का भी ध्यान करिए
“तीन राज्यों की हार पर मेरा मूल्याँकन “
सबसे पहले हमें तीनों राज्यों की हार का मूलभूत कारण और दूसरा परिस्थितियों का मुक़ाबला करने की बीजेपी की तैयारी पर भी हमें देखना होगा ।
सबसे पहले सूक्ष्म विश्लेषण जो की सभी लोग कर रहे हैं ।
01. छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव ही नही घर घर में एक बात पहुँचा दी गई थी की एक ही शब्जी खाते खाते हर कोई ऊब जाता है अत: कितनी भी अच्छी कटहल का शब्जी क्यो न हो लोग कभी कभी बदलाव के लिए सादे आलू की सूखी भुजिया भी खाते हैं ।
बीजेपी को स्वंयम नई शब्जी , नए मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहिए था ।
02. राजस्थान में महारानी के विरूद्ध जो ग़ुस्सा और करणी सेना के द्वारा क्षत्रिय मतों में ज़बरदस्त सेंध के बाद तो यह लगता है की परिणाम बहुत बुरे नहीं हैं ।
03. एम पी , भी माइक्रो मिसमैनेजमेंट में गया है । आपके 15 वर्षो की एन्टी इंकम्बेंसी , दूतों को हर वोट , कुछ नोटा के नाम पर कटाव ने काम बिगाड़ दिया ।
पर यह सब लिखने के लिए मैने यह पोस्ट नहीं लिखी है बल्कि यह समझाने के लिए की कैसे बीजेपी अपना जनाधार खो रही है ।
भारत की स्थिति को ठीक से समझने के लिए पहले आप युरोप और अमेरिका की स्थिति को समझना पड़ेगा और फिर हो सके तो यह पोस्ट बीजेपी के नेताओं के पास पहुँचाइए ।
मेरी अपनी क्वालिफ़िकेशन MBA है , मैं , इंग्लैंड में नौकरी करता हूँ, 30 वर्ष का अनुभव है और न केवल गीता ब्रह्मसूत्र उपनिषद भागवत रामचरितमानस ,बल्कि , हेगल, स्वॉपनहार , मार्क्स , सुकरात , अरस्तू पर भी समान अधिकार रखता हूँ ।
तो समझिए , युरोप और अमेरिका प्राय: दो भाग में बँटा है । एक Right wing है और दूसरा Left wing है ।
Right Wing के साथ चर्च, बड़े और छोटे बिज़नेस , स्वरोज़गारपरक लोग , किसान ( युरोप और अमेरिका में किसान सम्पन्न होता है ) तथा लैंड लार्ड होते हैं । इनकी अपनी मीडिया है जिसे Right Wing की सरकार जम कर सहायता देती है । जैसे Fox News या Daily Mail, Sun इत्यादि ।
उसी प्रकार Left Wing के साथ मुसलमान , वर्किंग क्लास , कुछ बिज़नेस को लोग और सबसे अनुदान पर ज़िंदा रहने वाले , स्टूडेंट्स होते हैं । इनका मीडिया पर प्रभाव लगभग 90% है । हालीवुड इत्यादि लेफ़्ट विंग के साथ रहते हैं । CNN, BBC, Mirror इत्यादि प्रमुख लेफ़्ट विंग मीडिया हाऊस हैं ।
आप एक Right Wing को नेवला और Left Wing को साँप समझ सकते हैं ।
पर भारत की परिस्थिति में दुनिया भर के साँप और नेवले एक साथ हो गए हैं । ध्यान दीजिए पूरी दुनिया के समाचार के लिए Fox News और CNN आपस में विरोधी समाचार देंगे पर बीजेपी की निंदा करते समय दोनो एक साथ हो जाएँगे क्योकि BJP से मॉस्क भी चिढ़ता है और चर्च भी ।
अब इसका उपाय क्या है ? कैसे साँप और नेवले से लड़ा जाय ? इसका उत्तर है अपना Ecosystem बना कर । आपने पिछले चार वर्षो से मंदिरों को कितनी स्वायत्ता दी ? जिस प्रकार चर्च और मॉस्क सरकारी नियंत्रण से मुक्त हैं उसी प्रकार सभी मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करिए ।
सनातन का समर्थन करने वाले मीडिया का खुल कर समर्थन करिए तथा जो समुदाय जी जान से सनातन की रक्षा कर रहा हो उसके क्षेत्र में विशेष ध्यान दीजिए । जो पत्रकार या अध्यापक या सरकारी कर्मचारी सनातनी हो उसे यह अनुभव होना चाहिए की सरकार उनके सहयोग का आदर करती है ।
यदि आप अपना Ecosystem नहीं बनाएँगे तो ध्यान रखिए की साँप और नेवले दोनो मिलकर सनातन को खा जाएँगे ।
और हाँ चलते चलते , चाहे मैं सांख्य , बौद्ध , चार्वाक , वैयाकरण , जैन या वैशेषिक मत का कितना भी बड़ा विद्वान होऊँ मेरे मत की क़ीमत और एक दारू की बोतल पर बिकने वाले ढोंगी लाल जी की क़ीमत बराबर होती है ।
मोदी जी अपने Ecosystem पर ध्यान दीजिए । चैरिटी सबसे पहले घर से प्रारम्भ होती है फिर बाहर करनी होती हे ।
जय श्री राम
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राज शेखर तिवारी
मैं दुःखी और चिंतित हूँ। इसका कारण लोकतांत्रिक जय-पराजय नहीं है। लोकतंत्र तो मात्र संख्याबल का खेल है। मुझे चिंता छत्तीसगढ़ की है जहाँ आसुरी शक्तियों का पुनः उदय हुआ है। अब वहाँ माओवादी और चर्च द्वारा पोषित ईसाई मिशनरी भेड़िये खुले घूमेंगे। चिंता इसकी भी है कि हमारा मनोबल इतना न टूट जाये कि हम 2019 में सत्ता आसुरी शक्तियों के हवाले कर दें। इन साढ़े चार सालों में मैंने पढ़ना लिखना अपना मत रखना सीखा है। मेरे सैकड़ों लेख यहाँ वहाँ प्रकाशित हैं। चार साल पहले मैं देश और समाज सम्बन्धित किसी विषय पर अपना मत प्रकट करने की स्थिति में नहीं था। मेरे जैसे अनेकों युवाओं ने स्वतः स्फूर्त प्रेरणा से बिना किसी पारिश्रमिक के सोशल मीडिया को इतना समृद्ध बनाया है। कोई प्राइवेट नौकरी करता है, कोई मेरे जैसा शिक्षक है, कोई व्यापारी है, कोई हिंदी में लिखता है तो कोई अंग्रेजी में। इन सब लोगों ने बड़ी मेहनत से सनातन परंपरा का एक नैरेटिव खड़ा किया है। हम 2014 के पश्चात वामपंथ के अंधेरे तहखाने से बाहर निकले हुए लोग हैं। लिबरल सेक्युलर बिरादरी यह सोचती है कि हमें भाजपा से पैसे मिलते हैं। सत्य यह है कि हमें तो पैसे की चिंता ही नहीं है। रोजी रोटी का जुगाड़ करने के अनेक रास्ते हैं और उसके लिए जिसको जो करना है वह कर रहा है। अभी तो हम नींद से जागे हैं और आगे बहुत से काम करने हैं। वेब पोर्टलों से आगे बढ़कर वामपंथियों का अकादमिक किला ध्वस्त करना है। भारत की ज्ञान परम्परा की पुनर्स्थापना हमारा लक्ष्य है। लेकिन यदि 2019 में कांग्रेसी आसुरी शक्तियां फिर से आ गईं तो ये सब किया कराया नाश हो जायेगा। राष्ट्रवाद का पौधा बड़ा होने से पहले ही उखाड़ कर फेंक दिया जायेगा। सनातन धर्म के पक्ष में बोलने वाले की अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता कुचल दी जाएगी। फिर से एक गूंगा बहरा देश का प्रधानमंत्री बना दिया जायेगा… मैं सोचकर ही डर जाता हूँ।
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यशार्क पाण्डेय
ऐसे हार की तो हिन्दू परंपरा ही है। आप को चाहिए तो इसे गौरवशाली वैभवशाली भी कहने को स्वतंत्र हैं ।
अब देखिये, अपने देवताओं की, धर्मग्रंथों की सर्वाधिक ठिठोली किसने की है तो हमसे बढ़कर कौन ? यह भी इतना सारा नुकसानदेह न होता अगर देश हिन्दू शासित होता, प्रबल अ-हिन्दू शत्रु का अस्तित्व न होता। वैसे तो फिरके को लेकर फिकरे मुसलमानों में कम नहीं चलते, लेकिन ना वे हम तक आते हैं और ना ही हमें वे समझ आते हैं कि वे फिकरे हैं भी । और सब से बड़ी बात है कि हम उनको वे फिकरे नहीं सुनाते क्योंकि हमें यह भी पता नहीं होता कि वे किस फिरकेपर लागू होते हैं । और उनके खौफ को डिस्काउंट क्यों करे, उसके बारे में भी सोचना ही होगा।
इसाइयत की भी वही बात है । हम उनके बारे में काफी अज्ञानी हैं । डिनोमिनेशन का अर्थ कितने जानते हैं पता नहीं ।
और इन दोनों की बात ये हैं कि महाभारतवाला सबक – (शत्रु से लड़ते समय) हम एकसौपाँच हैं – ये हम से अधिक समझते हैं । चूंकि हम विश्वगुरु हैं, ज्ञान देना हमारा काम है, लेना और समझना नहीं, है ना ?
धर्मग्रन्थों और श्रद्धास्थानों की जो बात है, वही बात इनके नेताओं की भी है । नेता इनके भी होते हैं, वे भी हम नहीं जानते। क्यों नहीं जानते ? क्योंकि वे उस सत्ता की स्पर्धा में नहीं है । उनका ध्येय जो है वह भी दोहराने की आवश्यकता नहीं ।
बात इतनी ही है कि विवादित हो जाएँ ऐसी बातें उनका नेतृत्व करता ही नहीं ऐसा मानना मुश्किल है, लेकिन जिस तरह से ये इनसे संबन्धित खबरें मैनेज कराते रहते हैं, यह बात अधिक विश्वसनीय लगती हैं कि ऐसे विवादित बयान भी मैनेज किए जाते ही होंगे या आने भी दिये जाते नहीं होंगे । वामियों की असली मीटिंग्स सार्वजनिक नहीं होती, कोई आईबी वाला परिचित हो तो पूछ लीजिये । बाकी इनकी मीटिंग्स भी पोस्टर लगाकर नहीं बल्कि फोनाफोनी से ही खबर पहुँचती है और जिनकी उपस्थिती आवश्यक है वे पहुँच जाते हैं । काम होते जाते हैं, निर्णय परिणाम में परिवर्तित हो तो शायद खबरों में चढ़ जाता है अन्यथा वह भी नहीं ।
मुद्दा विवादित बयानों को लेकर विवाद जगाते रहने का है । याद कीजिये फेसबुकपर ही हिन्दू नेताओं और संतों के बयानों को लेकर कितनी जुगाली की गई । जिसका नुकसान हम ने ही उठाया है ।
कभी लगता है हम पत्नियों को बेकार में बदनाम करते हैं कि वे भूलनेलायक बातों को ही याद रखकर हमेशा गलत समय पर याद कराती रहती है । यह बात अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन समानता के इस युग में हम भी इस गुनाह के कम दोषी नहीं हैं । और उनका वह याद दिलाना आप का इतना नुकसान नहीं करता जितना हम सब का इस अंतहीन और अर्थहीन याद दिलाते रहने ने किया है । वे पड़ोसी के सामने भी आप को नीचा नहीं दिखाती, माइकेवालों के सामने भी नहीं ।
Cognitive Dissonance जो होता है, वह यह है कि व्यक्ति खूद की भूल स्वीकार नहीं करता और उसे नकारने में अहंकार के कारण और भी नुकसान कर बैठता है । इसलिए मैं किसी पर ऊँगली नहीं उठानेवाला, बस आईने में खुद से ही दो सवाल कर लीजिये ।
क्योंकि जैसा मैंने कहा है, सवाल शत्रुओं का है, इसका उन्होने कितना फायदा उठाया है यह भी देख लीजिये । हमारे शत्रु यही देखते हैं कि हम उनका कोई ऐसा लाभ उठा न पाये, और हम हैं कि….. जितना कहे उतना कम है ।
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आनन्द राजाध्यक्ष